मानव द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला ताजा जल जो भूमिगत जल, झीलों, नदियों,और वायुमंडल में उपलब्ध है कुल जल का मात्र एक प्रतिशत से भी कम है। पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल 97.5 प्रतिशत भाग महासागरों, सागरों, झीलों में खारे जल के रूप में संग्रहीत है। जो सामान्य रूप से मानवीय कार्यों के लिए अनुपयोगी है। उपयोगी शेष 2.5 फीसद साफ जल की ही मनुष्य अनदेखी कर रहा है। जो आगे चलकर दुनिया के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है।
जल संकट की मौजूदा स्थिति को देखते हुए भविष्य में यदि पानी की राशनिंग कर दी जाए तो आश्चर्य न होगा। भविष्य में पानी की प्रचुरता हो और अगली पीढ़ी को पर्याप्त पानी पीने को मिले, इस तरह के प्रयास हमें आज से ही करने होंगे लेकिन दुखद है कि भ्रष्टाचार, कालाधन, ग्लोबल वार्मिंग, घटती हरियाली आदि मुद्दों ने जल जैसे विराट मुद्दे को गर्त में धकेल दिया है। देश की बढ़ती आबादी के मद्देनजर यदि जल संकट को लेकर सरकार ने पहले से ही प्रयास नहीं किए तो आने वाले समय में साफ और स्वच्छ जल तक पहुंच केवल उच्च वर्ग के लोगों की ही होगी। करोड़ों गरीब लोग इसके लिए तरसते नजर आऐंगे। मानव सूचकांक के मुताबिक भारतीय शहरों में केवल 74 फीसद लोगों को ही पर्याप्त पानी उपलब्ध है। दूसरी तरफ गांवों के हालात बद से बदतर हैं।
गांवों में केवल 25 फीसद घरों में ही पानी सप्लाई किया जाता है। मौजूदा दौर में भारत की शहरी आबादी यहां की कुल जनसंख्या का एक तिहाई है। सवाल है कि 2020 तक क्या हालत होगी, जब देश की तकरीबन 50 फीसद से ज्यादा आबादी शहरों में आकर रहने लगेगी। विश्व बैंक की हाल की रिपोर्ट में एशिया के 27 शहरों की प्रतिदिन जल उपलब्धता की एक सूची शामिल है। इस सूची में उन शहरों को शामिल किया गया है जिनकी आबादी 10 लाख से ज्यादा है। सूची से पता चलता है कि देश में जल उपलब्धता के मामले में सबसे खराब स्थिति दिल्ली और चेन्नई की है। दूसरे नंबर पर मुंबई और चौथे पर कोलकाता है। हैरानी वाली बात यह है कि जल उपलब्धता के मामले में महानगरों के अलावा उपनगरों की स्थिति और भी दयनीय है।
दिल्ली से सटे गुडगांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद जैसे जिले जल उपलब्धता के मामले में पिछड़े साबित हो रहे हैं। विश्व बैंक के मुताबिक पूरी दुनिया में जितने भी भूमिगत जल का उपयोग किया जाता है, उसमें से एक चौथाई हिस्सेदारी भारत की है। एक तरफ तो भूजल का उपयोग किया जा रहा है। लेकिन उसे रिचार्ज करने के उपायों को नहीं खोजा जा रहा है। यही कारण है कि मनुष्य पानी का उपयोग तो कर रहा है लेकिन जल को संरक्षित करने पर ध्यान नहीं दे रहा है। आधुनिकता की दौड़ में हम जल के महत्व को समझ नही पा रहे हैं। जिनका हमारे जीवन से गहरा संबंध है। जरूरत इस बात की भी है कि हमारे पूर्वजों की जो विरासत बची हुई है। उसे बचाए रखना नई पीढ़ी की जिम्मेदारी है।
वैसे भी मानव द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला ताजा जल जो भूमिगत जल, झीलों, नदियों,और वायुमंडल में उपलब्ध है कुल जल का मात्र एक प्रतिशत से भी कम है। पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल 97.5 प्रतिशत भाग महासागरों, सागरों, झीलों में खारे जल के रूप में संग्रहीत है। जो सामान्य रूप से मानवीय कार्यों के लिए अनुपयोगी है। उपयोगी शेष 2.5 फीसद साफ जल की ही मनुष्य अनदेखी कर रहा है। जो आगे चलकर दुनिया के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है। राष्ट्रीय विकास में जल की महत्ता को देखते हुए सभी को जल संरक्षण को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखकर कारगर जन-जागरण अभियान चलाने की आवश्यकता है। जल सरक्षण के कुछ परंपरागत उपाय तो बेहद ही सरल और कारगर रहे हैं। जिन्हें हम न जाने क्यों विकास और फैशन की अंधी दौड़ में भूल बैठै हैं।