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आज देश के नौ राज्य भयंकर सूखे की चपेट में हैं। देश के 91 जलाशयों में पानी का स्तर लगातार गिर रहा है। बीते दो सालों में अनुमान के अनुसार बारिश न होने के कारण स्थिति और गम्भीर हुई है। परिणामतः इन जलाशयों में बीते दस सालों की अपेक्षा औसत से 23.30 फीसदी पानी कम है। बारिश में देरी के कारण हालात और भयावह हुए हैं। यही वजह है कि बीते दिनों जल सप्ताह के समापन के अवसर पर देश के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को कहना पड़ा कि जलवायु परिवर्तन के कारण पारिस्थितिकी में बड़ा बदलाव आया है।
अभी देश में गर्मी का आगाज ही हुआ है कि देश की राजधानी दिल्ली में पानी का संकट गहराता जा रहा है। पानी की किल्लत पर लोगों का गुस्सा सड़कों पर फूट रहा है। दिल्ली के बुराड़ी, सन्तनगर, मुंडका, पांडव नगर, घोंडा, ब्रह्मपुरी, संगम विहार, देवली, खानपुर और अम्बेडकर नगर में पानी की कमी से लोगों का जीना मुहाल है।यह सच है कि गर्मी में पानी की जरूरत बढ़ जाती है लेकिन जहाँ तक आपूर्ति का सवाल है, दावे कुछ भी किये जाएँ, वह आम दिनों की अपेक्षा से भी काफी कम है। फिर गन्दे पानी की आपूर्ति ने समस्या को और विकराल बना दिया है। दरअसल दिल्ली में पानी की किल्लत के पीछे जल बोर्ड तो जिम्मेवार है ही, पानी माफियाओं की भी अहम भूमिका है।
लोगों का आरोप है कि मुफ्त में मिलने वाले पानी के लिये हमें पैसा देना पड़ रहा है। पिछले साल सप्ताह में एक बार पानी का टैंकर आता था, लेकिन इस बार उसके भी दर्शन दुर्लभ हैं। कई-कई दिन पानी के टैंकर का इन्तजार करना पड़ता है। जल बोर्ड के अधिकारियों की पानी माफिया से साठगाँठ है। यही कारण है कि जल बोर्ड पानी माफियाओं के दबाव में इन इलाकों में पानी के टैंकर नहीं भेज रहा और पानी माफिया पानी के मनमाने पैसे वसूल रहा है।
सरकारी नलों पर से पानी लेना आसान नहीं है। बमुश्किल वहाँ से एक बाल्टी पानी ले पाते हैं। तब कहीं जाकर गला तर कर पाते हैं लोग। इससे साबित होता है कि देश की राजधानी दिल्ली भी पानी के संकट से अछूती नहीं है। जब देश की राजधानी दिल्ली की यह हालत है, उस हालत में पूरे देश की हालत क्या होगी और मई-जून आते-आते पानी की समस्या कितना विकराल रूप लेगी, इसका सहज अन्दाजा लगाया जा सकता है।
पानी की समस्या की यह हालत कमोबेश पूरे देश की है। कहीं कम और कहीं ज्यादा। सबसे बुरी हालत देश के उत्तरी-दक्षिणी-पश्चिमी राज्यों की है। यहाँ पीने के पानी का संकट गहरा गया है।
बुन्देलखण्ड के लिये करोड़ों का पैकेज केन्द्र सरकार ने दिया है लेकिन वहाँ हालात जस-के-तस हैं। उनमें कोई बदलाव नहीं आया है। वह दशकों से प्यासा है और आज भी प्यासा है। करोड़ों की राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है और यहाँ के वासी आज भी राहत की बाट जोह रहे हैं। यहाँ बाँधों पर बन्दूकधारी इसलिये तैनात हैं कि कोई बाँध से पानी न चुरा ले। भूजलस्तर 105 मीटर से भी नीचे चला गया है। हैण्डपम्प सूखे पड़े हैं। टीकमगढ़ जिले में पुलिस के पहरे में पानी बँट रहा है। यहाँ के चन्देरा गाँव में गाँववालों को पुलिस थाने से पानी बाँट रही है।
स्कूल जाने के बजाय बच्चे स्कूल बैग की जगह पानी के डिब्बे लिये पानी लेने के लिये नलों पर कतार लगाए खड़े रहते हैं। पहाड़ी पारकर महिलाएँ पानी लाने के लिये जाने को मजबूर हैं। यहाँ की जानवी नदी पर हथियारबन्द लोग नगरपालिका ने तैनात कर रखे हैं कि लोग पानी न चुराकर ले जाएँ।
छतरपुर में थोड़े से पानी के लिये महिलाओं को कई-कई किलोमीटर मुश्किल रास्तों पर से होकर गुजरना पड़ता है। बैतूल के सालई ढाना गाँव में प्रदूषित गन्दा पानी पीने को मजबूर हैं लोग। जिस पानी को गाय, बैल, भैंस आदि जानवर पीते हैं, उसी को गाँववासी पी रहे हैं। उनके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है।
झारखण्ड की राजधानी राँची की हालत यह है कि यहाँ पानी के लिये सुबह से ही घंटों लाइन में खड़े रहते हैं लोग। ग्रामीण इलाकों में कुओं और नलों पर ताला जड़ा है। स्कूलों में बच्चों के लिये पानी की कोई व्यवस्था नहीं है जिसके कारण बच्चे पूरे समय प्यासे ही रहते हैं। घर में पानी है नहीं जो वे स्कूल ले जाएँ। प्यास से मर रहे हैं यहाँ के ग्रामीण अंचल के लोग। उनका कहना है कि बारिश हो तभी पानी मिल पाएगा। यह हालत राज्य के कमोबेश सभी गाँवों की है।
बिहार के लखीसराय जिले में उल नदी सूख चुकी है। वहाँ औरतें नदी की बालू खोदकर पानी निकाल कर अपनी प्यास बुझा रही हैं। मुजफ्फरपुर में भूजल का स्तर नीचे चले जाने के कारण जहाँ हैण्डपम्प सूख गए हैं, वहीं नगर निगम शहरवासियों को पानी दे पाने में खुद को असमर्थ पा रहा है। जमुई में गाँवों के लोग 10-12 किलोमीटर दूर से पानी ला रहे हैं।
गया के मानपुर प्रखण्ड में पानी की कमी के चलते लोग शादियों को टाल रहे हैं। उत्तर प्रदेश के बागपत, मथुरा गाजियाबाद, हाथरस, मेरठ, सहारनपुर, जालौन, हमीरपुर, जौनपुर, वाराणसी और इलाहाबाद में भूजलस्तर में भारी गिरावट आई है। झील और तालाब सूखे पड़े हैं। इलाहाबाद में पानी के लिये झगड़े आम हो गए हैं। कर्नाटक 40 साल के भयंकर सूखे की चपेट में है।
महाराष्ट्र का मराठवाड़ा और विदर्भ का इलाका भयंकर सूखे के चलते पैदा पानी के अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहा है। मराठवाड़ा के परभणी कस्बे में पानी के लिये झगड़ा न हो इसलिये मई के पहले हफ्ते तक धारा 144 लगा दी गई है। लातूर में अकाल जैसी स्थिति है। वहाँ टैंकर माफिया का राज है। सरकार का उन पर कोई अंकुश नहीं है। वहाँ पानी के लिये हाहाकार है।
सात दिन में एक बार टैंकर से पानी आता है जिसे लेने के लिये घंटों से कतार में लगे लोग टूट पड़ते हैं। इस मारामारी में आये दिन घायलों की तादाद बढ़ती जा रही है। औरंगाबाद में 12000 लीटर पानी वाला टैंकर मिनटों में ही खाली हो जाता है। पानी के झगड़े में अब तक महाराष्ट्र में 35 से ज्यादा लोग मौत के मुँह में चले गए हैं। पानी के अभाव में लोग पलायन कर रहे हैं। गर्भवती औरतें एक घड़ा पानी के लिये 10 से 12 किलोमीटर तक जाने को मजबूर हैं।
आज देश के नौ राज्य भयंकर सूखे की चपेट में हैं। देश के 91 जलाशयों में पानी का स्तर लगातार गिर रहा है। बीते दो सालों में अनुमान के अनुसार बारिश न होने के कारण स्थिति और गम्भीर हुई है। परिणामतः इन जलाशयों में बीते दस सालों की अपेक्षा औसत से 23.30 फीसदी पानी कम है। बारिश में देरी के कारण हालात और भयावह हुए हैं।
यही वजह है कि बीते दिनों जल सप्ताह के समापन के अवसर पर देश के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को कहना पड़ा कि जलवायु परिवर्तन के कारण पारिस्थितिकी में बड़ा बदलाव आया है। इसके असर से सूखा पड़ रहा है और बाढ़ का खतरा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। पूरी दुनिया में औद्योगीकरण की दर तेजी से बढ़ने के कारण पानी की खपत की दर भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है। लेकिन जल संरक्षण न हो पाने के कारण पानी की समस्या भयावह होती जा रही है। यह स्थिति बेहद खतरनाक है।
भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण भूजल का स्तर निरन्तर तेजी से गिरता जा रहा है। इसके उचित उपयोग पर पूरी दुनिया को ध्यान देना होगा। इसके बिना सारे प्रयास बेमानी होंगे। साथ ही यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है कि सभी को पर्याप्त पानी उपलब्ध हो। आज ओड़िशा, राजस्थान, असम, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, हरियाणा, बुन्देलखण्ड, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और गुजरात पानी के जबरदस्त संकट का सामना कर रहे हैं। इसलिये अब कुछ करना होगा अन्यथा बहुत देर हो जाएगी। तब हम पानी की एक-एक बूँद के लिये तरस जाएँगे। इसलिये पानी की बेतहाशा हो रही बर्बादी रोकने, जल संरक्षण, टिकाऊ जल प्रबन्धन और जनजागृति पर विशेष ध्यान देना होगा। इसके बिना पानी के संकट के निदान की आशा व्यर्थ है।