जीवन के लिए ओजोन की रक्षा बेहद जरूरी

Submitted by Shivendra on Tue, 07/30/2019 - 11:38
Source
दैनिक नवज्योति, 12 जून 2019

 जीवन के लिए ओजोन की रक्षा बेहद जरूरीधधकते जंगल।जीवन के लिए ओजोन की रक्षा बेहद जरूरी।

समूचा उत्तर भारत हर साल भंयकर गर्मी और भीषण लू की चपेट में आ जाता है। कहीं-कहीं तो तापमान 45 डिग्री से पाँच-सात डिग्री ऊपर तक चला जाता है। नतीजतन कहीं लोग राह चलते, कहीं बस में सफर करते मौत के मुँह में जा रहे हैं। राजस्थान में तापमान बढ़ोत्तरी में और भीषण लू चलने का बीते 75 साल का रिकॉर्ड टूट गया है।


 आज देश में भीषण गर्मी और सूरज के रौद्र रूप के चलते तपतपाती धूप कहर ढा रही है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित देश का उत्तरी भूभाग है। हरियाणा, दिल्ली समेत देश के तकरीबन 10 से ज्यादा राज्यों में गर्मी अपना कहर ढाती है। हालात की गम्भीरता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि वह चाहे उत्तरप्रदेश हो, हरियाणा हो, मध्यप्रदेश हो, राजस्थान हो या महाराष्ट्र, पंजाब हो या हिमाचल प्रदेश या फिर उत्तराखण्ड हो आदि बहुतेरे राज्यों में रेड अलर्ट जारी करने की नौबत आ पड़ती है। देश की राजधानी दिल्ली तक में भी मौसम विभाग ने ऑरेंज अलर्ट जारी कर दिया था। शिमला और मसूरी जैसी पहाड़ी जगहों पर भी सामान्य से चार से ज्यादा तापमान दर्ज किया गया। आए दिन भीषण गर्मी में मरने वालों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। सबसे बड़ी चिन्ता की बात यह कि इस गर्मी और चिलचिलाती तपती जानलेवा धूप का दुष्परिणाम ओजोन प्रदूषण में बढ़ोत्तरी के रूप में सामने आया है। 

विडम्बना यह कि एक ओर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था सफर एनसीआर सहित समीपस्थ राज्यों में हवा में ओजोन की मौजूदगी का दावा कर रही हैं तो वहीं हमारे केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर इसके विपरीत यह दावा कर रहे हैं कि दिल्ली एनसीआर की हवा इतनी भी खराब नहीं है, जितनी मीडिया पेश कर रहा है। उनका कहना है कि मीडिया ऐसी तस्वीर पेश कर रहा है जिससे यह लग रहा है कि प्रदूषण की वजह से लाखों लोगों की मौत हो रही है। यह हमारे देश के कर्णधारों का हाल है। उन्हें प्रदूषण तो दिखाई देता है लेकिन उससे मरने वालों की तादाद के सवाल पर वह मीडिया को दोष देने लग जाते हैं। गौरतलब यह है कि वही मीडिया है जो पहले एक सत्ताधारी दल का गुणगान करते अधाता नहीं था। उस समय मीडिया की भूमिका सराहनीय थी और अब खराब। यह इनकी सोच का जीता जागता सबूत है। वह तब है जबकि डब्ल्यूएचओ साफ कर चुका है कि भारत, चीन और रूस में वायु प्रदूषण का स्तर अमरीका से कहीं अधिक है,जबकि कार्बन उर्त्सजन के मामले में अमरीका पहले ही से शीर्ष पर है। 

हमारे देश के मौजूदा हालात बयां कर रहे हैं कि इस गर्मी से मैदान ही नहीं, पहाड़ भी अछूते नहीं हैं। इसमें दोराय नहीं है कि देश की राजधानी दिल्ली में सांस लेना अभी भी बहुत बड़ी मुसीबत है। असलियत यह है कि इन दिनों देश की राजधानी दिल्ली और उसके समीप के इलाकों की हवा में पीएम 10 और पीएम 2.5 से भी ज्यादा खतरनाक प्रदूषण कण यानी ओजोन की मात्रा रिकार्ड की जा रही है। यह खतरनाक तो है ही, साथ ही सतह पर पाए जाने वाले ओजोन कण मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत ही खतरनाक हैं। आमतौर पर हवा में प्रदूषक कण पीएम 10 और पीएम 2.5 के आधार पर हवा की गुणवत्ता को मापा जाता है। लेकिन जब यह मात्रा ज्यादा हो जाए तो स्थिति भयावह हो जाती है। सेन्टर फॉर साइन्स की मानें तो चिलचिलाती तपती धूप की किरणें वाहनों से निकलने वाले धुएँ से प्रतिक्रिया करके ओजोन के प्रदूषक तत्व बनाते हैं। यह वाहनों से निकलने वाले धुएँ के अलावा कचरा जलाने या औद्योगिक कल-कारखानों से निकलने वाले धुएँ से भी पैदा होते हैं। यह एक प्रकार का ऑक्साइड होता है। ठीक उसी प्रकार जिस तरह धातुओं पर जंग लग जाती है।
 
समूचा उत्तर भारत हर साल भंयकर गर्मी और भीषण लू की चपेट में आ जाता है। कहीं-कहीं तो तापमान 45 डिग्री से पाँच-सात डिग्री ऊपर तक चला जाता है। नतीजतन कहीं लोग राह चलते, कहीं बस में सफर करते मौत के मुँह में जा रहे हैं। राजस्थान में तापमान बढ़ोत्तरी में और भीषण लू चलने का बीते 75 साल का रिकॉर्ड टूट गया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार मध्य प्रदेश के शिवपुरी, गुना, राजस्थान के भीलवाड़ा, जयपुर, झालावाड़ और पश्चिमी त्रिपुरा के जिलों को मिलाकर कुल 35 जिले तापमान में चार-पाँच डिग्री से भी अधिक की बढ़ोत्तरी के चलते भंयकर गर्मी की चपेट में हैं। परिणामतः इन जिलों के तकरीबन 3.6 करोड़ लोगों के ऊपर मौत का साया मंडरा रहा है। यदि आईआईएम अहमदाबाद की रिपोर्ट की मानें तो देश के उत्तरी राज्यों के 346 जिलों में आने वाले दिनों/समय में भीषण गर्म हवाओं का खतरा बढ़ जाएगा। आंकड़ों की मानें तो बीते 50 सालों में लू चलने वाले दिनों की तादाद और इससे मरने वालों की तादाद दिनोदिन बढ़ती जा रही है। साल 2012 से 2016 तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि अकेले 2016 में 2012 की तुलना में तकरीबन चार करोड़ लोग लू के शिकार हुए। क्लाइमेंट ट्रेंड की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते तेज गरम हवाएँ जो पहले अप्रैल महीने में चलती थीं, अब वह मार्च में ही चलनी शुरू हो गई है। जाहिर है यह सब जलवायु परिवर्तन का नतीजा है।
 
जलवायु में भीषण परिवर्तन मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गया है। वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि बिजलीघरों, फैक्ट्रियों और वाहनों में जीवाष्प ईधनों के जलाने से पैदा होने वाली ग्रीन हाउस गैसें ग्लोबल वार्मिग के लिए जिम्मेदार हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है ग्रीन हाउस गैसों का पर्यावरण में फैलाव तथा जंगलों की बेहिसाब कटाई। यह सच है कि वृक्ष कार्बन डाई ऑक्साइड सोख लेते हैं और ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। वे कार्बन डाई ऑक्साइड भी उत्पन्न करते हैं, पर सोखने और उत्पन्न करने की निरन्तर प्रक्रिया से वे कार्बन डाई ऑक्साइड का सन्तुलन बनाए रखने में सहयोग देते हैं। वृक्षों के अभाव में जितनी भी कार्बन डाई ऑक्साइड पर्यावरण में छोड़ी जाती है, वह वहीं जमा होती रहती है और उसकी बढ़ोत्तरी तापमान में वृद्धि करती है और मौसम का मिजाज दिन-ब-दिन गर्म करती है।

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