अंकीय चित्र प्रणाली द्वारा पोंग (राणा प्रताप सागर) जलाशय का तलछट आंकलन

Submitted by Hindi on Sat, 12/24/2011 - 12:25
Source
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, चतुर्थ राष्ट्रीय जल संगोष्ठी, 16-17 दिसम्बर 2011

जलाशयों के साथ अवसाद या तलछट का होना एक मुख्य घटक है। जो कि जलाशयों की अवधि को हानी पहुँचाता है। अवसाद कण साधारणतः दूर तक फैले आवाह क्षेत्र में नदी बहाव से हुए मृदा अपरदन प्रक्रिया से उत्पन्न होते हैं। जब नदी का बहाव जलाशय में कम होता है तो उसके साथ-साथ अवसाद भी जलाशय में जमा हो जाता है और इसकी जलधारण क्षमता को कम कर देता है। जलाशय की जलधारण क्षमता में सीमा से परे हुई क्षति हमारे मूल उद्देश्य में बाधा उत्पन्न करती है जिसके लिए जलाशय का निर्माण किया गया होता है। इसीलिए जलाशयों की उपयोगी अवधि और तलछट जमा होने की दर को ज्ञात करने के लिए आवश्यक है कि उनका एक निश्चित अंतराल पर आंकलन किया जाए। इस आंकलन हेतु कुछ पारंपरिक विधियाँ जैसे कि जल सर्वेक्षण एवं अन्तर्वाह-बहिवाह प्रक्रम उपयोग में लाई जाती हैं जो कि मंहगी होने के साथ-साथ ज्यादा समय लेती है। इसीलिए समय और मंहगी होने के कारण पिछले कुछ वर्षों से सुदूर संवेदन विधि का इस क्षेत्र में सफलता पूर्वक प्रयोग हुआ है। जिसमें उपग्रह द्वारा जलाशय के फैलाव क्षेत्र का आसानी से अध्ययन किया जा सकता है।

यह विधि हिमालय की तराई में बने भारत गंगेय मैदान के ऊपरी किनारे पर स्थित ब्यास नदी पर बने पोंग जलाशय के तलछट जमा होने की दर की जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयोग में लाई गई है। यह जलाशय हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जनपद में स्थित है। इस विधि में जलाशय में एकत्रित अवसाद मात्रा को ज्ञात करने के लिए भारतीय उपग्रह (पी-6) के संवेदक लिस-तृतीय से प्राप्त आंकड़ों का वर्ण क्रमीय विश्लेषण किया गया है। यह प्रपत्र दर्शाता है कि जलाशय के सजीव संग्रहण क्षेत्र की क्षमता 7292 मिलियन घ.मी. तथा निर्जीव संग्रहण क्षेत्र की क्षमता 8570 मिलियन घ.मी. है। पूर्व रूपेण भरे जलाशय का फैलाव क्षेत्र लगभग 240 वर्ग कि.मी. तथा पोंग बांध तक इसकी नदी ब्यास का आवाह क्षेत्र लगभग 12377.496 वर्ग किमी. है।

जलाशय के अस्थाई विमीय क्षेत्र में होने वाले सामायिक परिवर्तन को ज्ञात करने के लिए भारतीय उपग्रह (पी-6) के संवेदक लिस-तृतीय से प्राप्त आठ तिथियों के आंकड़ों (10 अक्टूबर 2008 से 4 जुलाई 2009 को प्रयोग में लाया गया है। जिसमें अक्टूबर माह अधिकतम जल स्तर 426.72 मी. तथा जुलाई माह न्यूनतम जल स्तर 338.696 मी. को दर्शाता है। जल फैलाव क्षेत्र की गणना के लिए नार्मलाइस्ड डिफरेंस वाटर इंडिसिस (NDWI) विधि का प्रयोग किया गया है। विश्लेषण से प्राप्त आंकड़े दर्शाते हैं कि अधिकतम जलस्तर पर जलाशय की धारण क्षमता 7233.622 मिलियन घ.मी. जल फैलाव क्षेत्र 246.356 वर्ग कि.मी. तथा तलक्षट जमा होने की दर लगभग 18.08 मिलियन घन मी. प्रतिवर्ष है। यह प्रपत्र भारतीय उपग्रह (पी-6 के संवेदक लिस-तृतीय के आंकड़ों तथा सुदूर संवेदन विधि की उपयोगिता की भी व्याख्या करता है।

अंकीय चित्र प्रणाली द्वारा पोंग (राणा प्रताप सागर) जलाशय का तलछट आंकलन (Assessment of sedimentation in pong (Rana Pratap Sagar) reservoir using digital image processing technique)


सारांश:


जलाशयों के साथ अवसाद या तलछट एक मुख्य घटक हैं जो कि जलाशयों की अवधि को हानि पहुँचाते हैं। अवसाद कण साधारणतः दूर तक फैले आवाह क्षेत्र में नदी बहाव से हुए मृदा अपरदन प्रक्रिया से उत्पन्न होते हैं। जब नदी का बहाव जलाशय में कम होता है। तो उसके साथ-साथ अवसाद भी जलाशय में जमा हो जाता है। और इसकी जलधारण क्षमता को कम कर देता है। जलाशय की जलधारण क्षमता में सीमा से परे हुए क्षति हमारे मूल उद्देश्य में बाधा उत्पन्न करती है जिसके लिये जलाशय का निर्माण किया गया होता है इसीलिये जलाशयों की उपयोगी अवधि और तलछट जमा होने की दर को ज्ञात करने के लिये आवश्यक है कि उनका एक निश्चित अन्तराल पर आकलन किया जाए। इस आकलन हेतु कुछ पारंपरिक विधियाँ जैसे कि जल संरक्षण एवं अन्तर्वाह बहिर्वाह प्रक्रम उपयोग में लायी जाती है जोकि महँगी होने के साथ-साथ ज्यादा समय लेती हैं। इसलिये समय और महँगी होने के कारण पिछले कुछ वर्षों से सुदूर संवेदन विधि का इस क्षेत्र में सफलतापूर्वक प्रयोग हुआ है जिसमें उपग्रह द्वारा जलाशय के फैलाव क्षेत्र का आसानी से अध्ययन किया जा सकता है। यह विधि हिमालय की तराई में बने भारत गंगेय मैदान के ऊपरी किनारे पर स्थित व्यास नदी पर बने पोंग जलाशय के तलछट जमा होने की दर की जानकारी प्राप्त करने के लिये प्रयोग में लायी गई है। यह जलाशय हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जनपद में स्थित है। इस विधि में जलाशय में एकत्रित अवसाद मात्रा को ज्ञात करने के लिये भारतीय उपग्रह (पी-6) के संवेदक लिस-तृतीय से प्राप्त आँकड़ों का वर्ण क्रमीय विश्लेषण किया गया है। यह प्रपत्र दर्शाता है कि जलाशय के सजीव संग्रहण क्षेत्र की क्षमता 7292 मिलियन घमी. तथा निर्जीव संग्रहण क्षेत्र की क्षमता 8570 मिलियन घमी. है। पूर्ण रूपेण भरे जलाशय का फैलाव क्षेत्र लगभग 240 वर्ग किमी. तथा पोंग बाँध तक इसकी नदी व्यास का आवाह क्षेत्र लगभग 12377.496 वर्ग किमी. है। जलाशय के अस्थाई विमीय क्षेत्र में होने वाले सामयिक परिवर्तन को ज्ञात करने के लिये भारतीय उपग्रह (पी-6) के संवेदक लिस-तृतीय से प्राप्त आठ तिथियों के आँकड़ो (10 अक्टूबर 2008 से 4 जुलाई 2009) को प्रयोग में लाया गया है जिसमें अक्टूबर माह (अधिकतम जल स्तर 426.72 मी.) तथा जुलाई माह (न्यूनतम जल स्तर 338.696 मी.) को दर्शाता है। जल फैलाव क्षेत्र की गणना के लिये नार्मलाइज्ड डिफरेंस वाटर इंडिसिस (NDWI) विधि का प्रयोग किया गया है। विश्लेषण से प्राप्त आँकड़े दर्शाते हैं। कि अधिकतम जलस्तर पर जलाशय की धारण क्षमता 7233.622 मिलियन घमी, जल फैलाव क्षेत्र 246.356 वर्ग किमी. तथा तलछट जमा होने की दर लगभग 18.08 मिलियन घन मी. प्रतिवर्ष है। यह प्रपत्र भारतीय उपग्रह (पी-6) के संवेदक लिस-तृतीय के आँकड़ों तथा सुदूर विधि की उपयोगिता की भी व्याख्या करता है।

Abstract


All lakes created on natural rivers are subjected to reservoir sedimentation. Sedimentation in the reservoir is one of the principal factors. Sedimentation reduces the storage capacity. When the flow of a river is stored in a reservoir, the sediment settles in the reservoir and reduces its capacity. Reduction in the storage capacity of a reservoir beyond a limit hampers the purpose for which it was designed. Thus, assessment of sediment deposition becomes very important for the management and operation of such reservoirs. Some conventional methods, such as hydrographic survey and inflow-outflow approaches, are used for estimation of sediment deposition in a reservoir, but these methods are eumbersome, time consuming and expensive. Therefore an effective and time consuming technique, remote sensing approach has been attempted for this study. This method has been used for the assessment of sediment in pong reservoir created on the Beas river in the low foothills of Himalaya on the northern edge of Indo Gangetic plain, located in the Kangra district, Himachal Pradesh. A method has been developed based on spectral mixture analysis, to estimate the concentration of suspended sediment in Reservoir from IRS (P6) LISS-III images. Paper represented the reservoir live storage capacity was 7290M cum and dead storage capacity was 8570Mcum. The reservoir’s water spread area at full reservoir level (FRL) was 240 Sq Km and the catchment area of its associated river Beas is about 12377 496 sq. Km up to pong dam. Eight dates of IRS (P6) LISS-III data (from 10 oct. 2008 to 4 July 2009) between 426.720 m and 388.696 water level were used to assess temporal and spatial patterns of lake area and dimensions of suspected sediment concentration in pong Reservoir. The Normalize Different Water Indices (NDWI) approach was used for delineating water spread area of reservoir. Revised live storage was estimated as 7233.622 M cum. The water-spread area at FRL was 246.356 Mm2. The estimated sediment yield was 18.20 Mm3 in the live storage area. The study also illustrates the advantage of remote sensing and demonstrates the value of IRS (P6) LISS-III data for use in mapping geographic variations in water area and major flood event. The paper presents research results that help to better understand of this physical phenomenon. Which contributes to reservoir sedimentation.

प्रस्तावना


जलाशयों के साथ अवसाद या तलछट का होना एक मुख्य घटक है जो जलाशय की जलधारण क्षमता को बहुत प्रभावित करता है। अवसाद का मुख्य कारण मृदा अपरदन का होना है जो इसके आवाह क्षेत्र में होता है मृदा का अपरदन मुख्यतः वर्षा तथा वायु के कारण होता है जो अवसाद के विस्तृत विस्थापन के लिये भी उत्तरदायी होते हैं। मृदा अपरदन और इसका जलाशय में विस्थापन व अनुवर्ती जमाव एक व्यापक समस्या है। जब अवसाद जलाशय में बहता है तो बहाव गति कम हो जाने के कारण बड़े अवसाद कण जलाशय के ऊपरी भाग में पहले जमा होते हैं। तत्पश्चात सूक्ष्म पदार्थ इसी के आस-पास जमा होने लगता है।

पोंग जलाशय में अवसाद का भराव मुख्य रूप से व्यास नदी द्वारा लाये गये तलछट भार से होता है। यदि हमें इसके जमा होने की दर तथा कारण ज्ञात हो जाएं तो इसे कम करने के उपाय को भी कार्यान्वित किया जा सकता है। जलाशय के अच्छे प्रबन्धन के लिये विभिन्न मौसमों के दौरान समय-समय पर तलछट भार जमा होने की दर के विषय में जानकारी होना आवश्यक है जो जलाशय की आयु ज्ञात करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके लिये दो प्रमुख विधियाँ जैसे कि जल सर्वेक्षण एवं अन्तर्वाह-बहिर्वाह प्रक्रम उपयोग में लायी जाती है। ये विधियाँ कुछ महँगी होने के साथ-साथ समय भी बहुत अधिक लेती हैं।

पिछले कुछ वर्षों से सुदूर संवेदन तकनीक का प्रयोग हम जलविज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कर रहे हैं। जलाशयों में तलछट जमाव की दर का अध्ययन करने के लिये पहले इस विधि से जलाशय के जल फैलाव क्षेत्र को ज्ञात किया जाता है। एक निश्चित समयन्तराल पर जल फैलाव क्षेत्र में कमी जलाशय में तलछट जमा होने की पुष्टि करता है। मूले आदि (1986) ने वूलर चिल्का डल झीलों और रिहन्द जलाशय के बहुदिनीय बहुबेंड लैंडसेट प्रतिबिम्बों की दृश्यीय व्याख्या (visual interpretation) की ओर प्रदर्शित किया कि हरा बेंड और अवरक्त बेंड के अंतर का अनुपात जल फैलाव क्षेत्र. की गणना करने में काफी हद तक सही है। जैन, सिंह एवं गोयल (1999) ने लिस-तृतीय उपग्रह से प्राप्त आँकड़ों का प्रयोग करके भाखड़ा नांगल बाँध में तलछट जमाव की दर का आकलन किया जिसकी तुलना जल सर्वेक्षण विधि से किये गये निरीक्षण से करने पर परिणाम लगभग एक जैसे पाये गये।

आँकड़े व अध्ययन क्षेत्र


प्रस्तुत अध्ययन के लिये हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में व्यास नदी पर बने पोंग जलाशय (राणा प्रताप सागर जलाशय) को चुना गया। जो हिमालय की तराई में बने भारत गंगेय मैदान के उत्तरी किनारे पर स्थित है। इस जलाशय का निर्माण सन 1975 में किया गया। जलाशय के निर्देशांक क्रमशः 32 डिग्री 59’ 40’’ तथा 76 डिग्री 02’ 27’’ हैं।

Fig-1 प्रस्तुत अध्ययन के लिये भारतीय उपग्रह (पी-6) के संवेदक लिस-तृतीय से प्राप्त आठ तिथियों के आँकड़ों को प्रयोग में लाया गया जिसमें संवेदक के ऊपर से गुजरने की तिथियाँ क्रमशः 13 अक्टूबर 2008, 6 नवम्बर 2008, 24 दिसम्बर 2008, 6 मार्च 2009, 23 अप्रैल 2009, 17 मई 2009, 10 जून 2009, तथा 4 जुलाई 2009 है। संवेदक की विभाजक क्षमता 23.5 मी. तथा पथ और पंक्ति क्रमशः 94 व 48 हैं।

विधि


उपग्रह के किसी क्षेत्र से गुजरने की तिथि पर उससे प्राप्त चित्रों की सहायता से अंकीय चित्र विश्लेषण से जल विस्तार क्षेत्र का मान ज्ञात करते हैं। यद्यपि इन चित्रों में जल के संकेत अन्य भौतिक पदार्थों जैसे वनस्पति मृदा व भवन के संकेतों से काफी अलग होते हैं। फिर भी जल क्षेत्र को अन्य निकटतम वस्तुओं से अलग करना काफी कठिन कार्य है। यह पृथक्करण विश्लेषक की क्षमता पर निर्भर करता है जो गहरा जल होता है वो आसानी से पृथक हो जाता है। लेकिन उथले जल में मृदा व जल की मिलावट के काफी संकेत मिलते हैं। इनको केवल रंग द्वारा अलग नहीं किया जा सकता है। अतः देखकर परिभाषित करने के अलावा अन्य विधियाँ भी प्रयोग में लायी जाती हैं। जैसे नॉर्मलाइज्ड डिफ्रेंस वाटर इंडिसिस (NDWI) एवं नॉर्मलाइज्ड वेजीटेसन इंडिसिस (NDVI) प्रमुख हैं। इस अध्ययन के लिये नॉर्मलाइज्ड डिफ्रेंस वाटर इंडेक्स (NDWI) विधि प्रयोग में लायी गई है।

.NDWI से प्राप्त स्वेत-श्याम चित्रों को थ्रेशोल्डिंग से जल पिक्सल को और अधिक साफ बना दिया जाता है। इस विधि में पूरे श्वेत श्याम चित्र को दो वर्गों जल और जल रहित वर्गों में विभाजित कर दिया जाता है।

अनियमित पिक्सल व वाहिकाओं का हटाना


किसी जलस्तर पर समोच्च रेखाओं से घिरा क्षेत्र केवल अविच्छिन्न जल क्षेत्र को प्रदर्शित करता है। जलाशय में स्थित द्वीपों में या इसकी बाहरी सीमा में स्थानीय गड्ढों में उपस्थित जल के पिक्सल जल विस्तार क्षेत्र का भाग नहीं होते हैं अतः इनको हटा देते हैं। इसके अलावा जलाशय के पुच्छ छोर पर जो वाहिकायें होती हैं उनको भी हटा दिया जाता है। बचा हुआ शेष भाग अब जलाशय का जल फैलाव क्षेत्र है।

जलाशय क्षमता की गणना


प्रयुक्त चित्रों को जल सीमा का अन्तिम रूप देने के पश्चात हिस्टोग्राम का विश्लेषण करके उपग्रह चित्र में जल के पिक्सलों की संख्या की गणना की जाती है। किसी उपग्रह चित्र के सापेक्ष निश्चित जलस्तर पर जल पिक्सलों की कुल संख्या एक पिक्सल के आकार से गुणा करके जल विस्तार क्षेत्र की गणना करते हैं। दो निकटवर्ती जलस्तरों के मध्य जलाशय संचयन धारिता की गणना निम्न सूत्र की सहायता से की जाती है:

.जहाँ
V = दो निकटवर्ती जलस्तरों के मध्य आयतन
A1 = पहले जलस्तर पर जल विस्तार क्षेत्र
A2 = दूसरे जलस्तर पर जल विस्तार क्षेत्र
△ = जलस्तर में अन्तर मी. में

विभिन्न जलस्तरों के मध्य संचयन धारिता को ज्ञात करने के पश्चात विश्लेषण के निम्नतम जलाशय स्तर से आरम्भ करके विभिन्न जलस्तरों के लिये क्रमिक संचयन द्वारा संचयन धारिता की गणना करके जलस्तर क्षेत्रफल धारिता सारणी तैयार की जाती है। यह विधि केवल जलाशय के सजीव भण्डारण क्षेत्र की क्षमता में आयी कमी एवं तलछट के जमा होने की दर के आकलन के लिये प्रयोग में लायी जाती है।

परिणाम एवं व्याख्या


सुदूर संवेदन विधि द्वारा अनुमानित क्षेत्रफल का प्रयोग अनुमानित धारिता निकालने के लिये किया गया। सभी दिनांक के जल फैलाव का आकलन किया गया तथा कुछ तिथियों (13 अक्टूबर 2008 तथा 4 जुलाई 2009) के जल फैलाव क्षेत्र को चित्र 2 में दर्शाया गया है। एक निम्न तल से ऊपर लगातार स्तरों पर निकाली गई संचित धारिता को जोड़कर उच्चतम स्तर पर मूल व अनुमानित धारिताओं को ज्ञात किया। मूल संचित धारिता एवं अनुमानित संचित धारिता का अन्तर जलाशय की तलछट के जमा होने के कारण कम हुई धारिता को बताता है।

Fig-2
Sarni-1पोंग जलाशय के प्राप्त परिणामों के मान्यकरण के लिये सुदूर संवेदी तकनीक से प्राप्त परिणामों की तुलना जल सर्वेक्षण के परिणामों से की गई। सुदूर संवेदी तकनीक से प्राप्त परिणामों से ज्ञात हुआ है कि 35 वर्षों के समयान्तर में तलछट के घन फल का अंतर निम्न एवं उच्च तलों पर (388.69 व 422.929) 632.844 मि.घन मी. है। यदि प्रारंभ से तलछट दर समान है। तो 2008 व 2009 की विवेचना द्वारा दर 18.08 मि. घन. मी. प्रति वर्ष होगी। भाखड़ा व्यास प्रबन्धन समिति द्वारा किये गये जल सर्वेक्षण आँकड़ों को निम्नलिखित सारणी 1 में दिखाया गया है।

निष्कर्ष


प्रस्तुत अध्ययन पोंग जलाशय में तलछट के जमा होने की दर एवं उसके घनफल को ज्ञात करता है। जल के प्रसार क्षेत्र को ज्ञात करने के लिये उपग्रह पी-6 के लिस-तृतीय का सन 2008 के अक्तूबर माह से लेकर जुलाई 2009 तक के आँकड़े प्रयोग में लाये गए। जलाशय में तलछट भार की मात्रा के मानचित्रण में बहुतिथि प्रतिबिम्ब अत्यन्त लाभदायक होते हैं। पोंग जलाशय की क्षमता और जल संग्रहण क्षेत्रफल का विश्लेषण 388.69 से 422.91 मी. के बीच आठ स्तरों पर भारतीय उपग्रह (पी-6) लिस-तृतीय से प्राप्त प्रतिबिम्बों के उपयोग द्वारा किया गया। ट्रापेजाइडल सिद्धांत द्वारा उच्चतम एवं न्यूनतम तलों पर धारितायें ज्ञात की गई। गणना (calculation) से ज्ञात किया गया कि धारिता में क्षय की औसत दर 35 वर्षों में 18.08 मि.घन.मी. है। जो कि जल सर्वेक्षण (hydrographic survey) से प्राप्त दर 18.20 मि.घन.मी. से मिलान करती है जो हमारी परिशुद्धता का मूल्यांकन करती है। यह प्रपत्र भारतीय उपग्रह के संवेदक लिस-तृतीय के आँकड़ों तथा सुदूर संवेदन विधि की उपयोगिता की भी व्याख्या करता है।

संदर्भ
1. जैन संजय कुमार, सिंह प्रताप एवं गोयल मनमोहन उपग्रह (आई.आर.एस.) 1998-1999 का प्रयोग कर भाखड़ा जलाशय की धारिता का आकलन, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की (1999)

2. मोंरिस जी एल एवं फैन जे, रिजरवायर सेडिमेन्ट्स हैण्ड बुक-डिजाइन एण्ड मैंनेजमेंट ऑफ डैम्स, रिजरवायर एण्ड वाटर शेड्स फॉर सस्टेनेबिल यूज, टाटा मैग्रोहिल, न्यूयार्क (1997).

3. गोयल एम के, जैन शरद कुमार, जैन संजय कुमार एवं अग्रवाल पी के, उपग्रह आँकड़ों का प्रयोग करके जलाशय में तलछट जमाव की प्रवृत्ति का तलछट आकलन, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की (1999).

सम्पर्क


संदीप शुक्ला, संयज कुमार जैन एवं जयवीर त्यागी, Sandeep Shukla, Sanjay Kumar Jain & Jaivir Tyagiराष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की, National Institute of Hydrology Roorkee

भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान पत्रिका, 01 जून, 2012

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