मन मोह लेने वाले प्राकृतिक नजारों के लिए मशहूर हिमाचल प्रदेश में ग्लोबल वार्मिंग का असर यहां की बर्फ पर पड़ा है। एक अध्ययन में यहां की बर्फ में कमी दर्ज की गई है। अध्ययन में कहा गया है कि इसका असर भविष्य में जलसंकट के रूप में सामने आ सकता है। आंकड़ों के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग के चलते यहां की कुल बर्फ में 0.72 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। वैज्ञानिकों ने इस अंतर को खतरनाक संकेत बताया है।
साल 2018-19 और साल 2019-20 की तुलना में हिमाचल प्रदेश में बर्फ का कुल औसत क्षेत्र 20210.23 वर्ग किलोमीटर से घटकर 20064.00 वर्ग किलोमीटर हो गया है। यह आंकड़ा हिमाचल जलवायु परिवर्तन केंद्र के वैज्ञानिकों की ओर से किए गए एक अध्ययन में सामने आया है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि हिमालय की बर्फ ज्यादा तेजी से पिघली तो आने वाले समय में गंभीर जलसंकट का सामना करना पड़ा सकता है।
सर्दियों के महीनों (नवंबर से जनवरी) के दौरान, हम कह सकते हैं कि राज्य के दक्षिणपूर्वी हिस्से में 2019-20 की सर्दियों में अधिक बर्फ पायी गई, बल्कि बेसिन (जैसे ब्यास और रावी) की तुलना में सतलुज बेसिन मुख्य रूप से शामिल था। जबकि, चिनाब में 2018-19 की तुलना में 2019-20 में बर्फ आवरण क्षेत्र में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं दिखा। अन्य सर्दियों के महीने यानी अक्तूबर, फरवरी और मार्च, सभी बेसिन में 2019-20 की तुलना 2018-19 से करने पर, बर्फ आवरण में कमी पायी गई, जो यह दर्शाता है कि शेष सर्दियों के महीनों के दौरान जनवरी के बाद में गिरावट आई हैं।
हिमाचल प्रदेश सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के मुताबिक गर्मियों के महीनों यानी अप्रैल और मई के विश्लेषण से पता चला है कि चिनाब बेसिन में, अप्रैल में कुल बेसिन क्षेत्र का 87 प्रतिशत और मई में लगभग 65 प्रतिशत अभी भी बर्फ के प्रभाव में है जो यह दर्शाता है कि कुल बेसिन क्षेत्र के लगभग 22 प्रतिशत हिस्से में बर्फ अप्रैल और मई में पिघल चुकी हैं। दूसरे शब्दों में, हम यह सकते हैं कि कुल बेसिन क्षेत्र का लगभग 65 प्रतिशत अगले (जून से अगस्त) के दौरान पिघल जाएगा, जो चिनाब नदी के बहाव में योगदान देगा।
इसी तरह, अप्रैल और मई के महीने में ब्यास बेसिन में कुल बेसिन क्षेत्र का 49 प्रतिशत और लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा बर्फ आवरण पर प्रभाव डालता है, जो यह दर्शाता है कि कुल बेसिन क्षेत्र का 4 प्रतिशत हिस्से की बर्फ ब्यास नदी में पिघल। इसी तरह ब्यास के कुल बेसिन क्षेत्र का 45 प्रतिशत गर्मियों में पिघल कर पानी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध होगा।
रावी बेसिन में अप्रैल में 44 प्रतिशत और मई में कुल बेसिन क्षेत्र का लगभग 26 प्रतिशत क्षेत्र बर्फ के अंतर्गत आता है, जो यह दर्शाता है कि अप्रैल और मई के बीच कुल बेसिन क्षेत्र की 18 फीसद बर्फ पिघली। इसी प्रकार कुल बेसिन क्षेत्र का केवल 26 प्रतिशत बर्फ का पानी अगले महीनों के दौरान रावी बेसिन से पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए उपलब्ध होगा।
इसी तरह, बसपा, पिन और स्पीति के सतलुज बेसिनों से पता चलता है कि अप्रैल में बेसिन क्षेत्र का लगभग 72 प्रतिशत और मई में 50 प्रतिशत हिस्सा बर्फ के अंतर्गत था, जो दर्शाता है कि सतलुज बेसिन में, अप्रैल और मई के दौरान लगभग 22 प्रतिशत बर्फ पिघली और शेष 50 प्रतिशत बर्फ का पानी अगले वर्ष 2019-20 पानी की जरूरतों को पुरा करने के लिए उपलब्ध होगा।
नदियों के बहाव पर भी पड़ सकता है असर
अमर उजाला अखबार की खबर के मुताबिक इसके साथ ही बर्फ में लगातार कमी आने से गर्मियों के मौसम के दौरान नदियों का बहाव भी प्रभावित हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि तेजी से बर्फ पिघलने के कारण आने वाले दिनों में नदियों में पानी की कमी हो सकती है। इस अध्ययन के तहत जलवायु परिवर्तन केंद्र ने राज्य में स्नो कवर एरिया (बर्फ से ढका क्षेत्र) की मैपिंग की थी। इसकी रिपोर्ट में सामने आया कि व्यास और रावी बेसिन के मुकाबले सतलज बेसिन में बर्फ का आवरण ज्यादा देखा गया है।
पर्यावरण विज्ञान एवं तकनीकी विभाग के निदेशक डीसी राणा कहते हैं कि चिनाब बेसिन में अप्रैल में कुल क्षेत्र का 87 फीसदी और मई में करीह 65 फीसदी अभी बर्फ के प्रभाव में है। इससे साफ होता है कि कुल क्षेत्र में करीब 22 फीसदी बर्फ अप्रैल और मई में पिछली है। कुल बेसिन क्षेत्र की बर्फ का करीब 65 फीसदी हिस्सा जून से अगस्त के दौरान पिघल जाएगा। रावी बेसिन में अप्रैल-मई के बीच क्षेत्र की 18 फीसदी बर्फ पिघली है और व्यास नदी में चार फीसदी बर्फ कम हुई है।
इन राज्यों के लिए खड़ा हो सकता है संकट
हिमाचल में अगर नदियों में पानी की कमी हुई तो उन राज्यों के लिए भी भारी संकट उत्पन्न हो जाएगा जहां हिमाचल की नदियों से पानी जाता है। ऐसी स्थिति होने पर पंजाब, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य प्रमुखता से संकट का सामना करेंगे। यानी ब्यास नदी के जलग्रहण क्षेत्र से चार फीसदी बर्फ कम हो गई है। हिमाचल में मुख्यत: तीन नदियां- चिनाब, रावी, सतलज और व्यास हैं। इनमें चिनाब जम्मू से होकर पंजाब और पाकिस्तान के मैदानी इलाकों में बहती है।
रावी नदी हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में रोहतांग दर्रे से निकल कर हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और पंजाब होते हुए पाकिस्तान से बहती हुई झांग जिले की सीमा पर चिनाब नदी में मिलती है। व्यास नदी हिमाचल के अलावा पंजाब में बहती है। वहीं, सतलज नदी हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ पंजाब और पाकिस्तान तक जाती है। इन नदियों में अगर पानी की कमी होती है तो इन राज्यों में संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।