भारत के लिए चुनौती बनती मौसमी घटनाएं

Submitted by Shivendra on Sun, 07/26/2020 - 22:08

फोटो - News 18

वनों के कटान, विभिन्न मानवीय गतिविधियों और अधिक कार्बन उत्सर्जन के कारण विश्वभर में जलवायु परिवर्तन तेजी से बढ़ रहा है। जिस कारण असमय बारिश और बर्फबारी देखने को मिलती है। उपजाऊ जमीन बंजर होती जा रही है, तो वहीं अतिवृष्टि के कारण हर साल बाढ़ आती है। बिहार और असम के लिए बाढ़ ‘न्यू नार्मल’ है, जो हर साल आती ही है, तो वहीं अब हर साल बिजली गिरना, गर्म हवाएं (लू) और सर्द हवाएं चलना व हिमस्खलन आना भी ‘न्यू नार्मल’ हो गया है। इन सभी मौसमी घटनाओं में हर साल सैंकड़ों लोगों की जान जाती है और अरबों रुपयों की संपत्ति का नुकसान भी होता है, लेकिन अभी तक इन बढ़ती मौसमी घटनाओं का धरातल पर कोई समाधान न होने के कारण भारत के लिए ये चुनौती बनती जा रही हैं। यही मौसमी घटनाएं जल संकट का कारण भी बनती हैं।

वैसे तो गर्म हवाओं (लू) का जल संकट पर प्रत्यक्ष तौर पर प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन ‘लू’ के कारण सूखा बढ़ता है। मिट्टी ठीक प्रकार से बारिश के पानी को सोख नहीं पाती है और तूफान या अधिक बारिश के समय बाढ़ आसानी से आ जाती है। अतिवृष्टि के दौरान बाढ़ की ये समस्या और भी बढ़ जाती है। सरल भाषा में समझें तो गर्म हवाओं के कारण वाष्पीकरण की रफ्तार बढ़ जाती है और पर्याप्त बारिश न होने पर जल स्रोतों या जलस्तर पर प्रभाव पड़ता है। ऐसे में जल संकट की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है। ये स्थिति किसानों के सामने फसल संकट खड़ा करती है और देश में खाद्यान्न संकट भी खड़ा हो सकता है। तो वहीं बिजली गिरना आदि मौसमी घटनाएं भी आपस में जुड़े हुए हैं। ऐसी ही स्थितियां भारत में अब बढ़ती जा रही है, जिनके आंकड़ें आपको चौंका सकते हैं।

स्टेट आफ इंडियाज इनवायरमेंट 2020 इन फिगर्स के आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2014-15 में भारत में विभिन्न मौसमी घटनाओं के कारण 1674 लोगों की मौत हुई थी, जबकि वर्ष 2015-16 में 1460, वर्ष 2016-17 में 1487, वर्ष 2017-18 में 2057 और वर्ष 2018-19 में 2045 लोगों की मौत हुई थी। किसी भी आपदा में कभी भी केवल इसानों को ही नुकसान नहीं होता है, बल्कि इंसानों से ज्यादा नुकसान जानवरों को होता है, लेकिन जानवरों की जान की कोई कीमती नहीं होती और न ही किसी को उनकी मौत से फर्क पड़ता है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014-15 से 2018-19 के बीच  3 लाख 16 हजार 216 मवेशियों की मौत हुई थी। तो वहीं इन पांच सालों में 50 लाख 59 हजार 065 घर टूट गए थे। इसके अलावा 147.96 लाख हेक्टेयर खेती भूमि प्रभावित हुई थी।

आंकड़ें - State Of India's Environment 2020 in Figures

इन सभी के अलावा यदि मानवीय क्षति की बात करें तो वर्ष 2019 में बाढ़, अतिवृष्टि, बिजली गिरना, गर्म और सर्द हवाएं तथा हिमस्खलन में 1500 लोगों की मौत हुई। सबसे ज्यादा 306 मौतें बिहार में 11 जुलाई से 2 अक्तूबर के बीच बाढ़ और अतिवृष्टि से हुई थीं, जबकि 3 मई से 31 जुलाई के बीच बिजली गिरने से 71 मौतें और गर्म हवाओं के कारण 292 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद सबसे ज्यादा 136 मौतें महाराष्ट्र में बाढ़ और भारी बारिश के कारण हुई थी, तो वहीं 51 लोग आकाशीय बिजली गिरने और 44 लोग गर्म हवाओं के कारण मरे थे। ऐसी ही स्थिति जम्मू और कश्मीर, लेह, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, केरल, ओडिशा और झारखंड की भी है, जो आंकड़ों के साथ नीचे चार्ट में दी गई है।

आंकड़ें - State Of India's Environment 2020 in Figures

उत्तराखंड़ के ग्रीन एंबेसडर जगत सिंह जंगली बताते हैं कि ‘‘मौसमी घटनाओं के बढ़ने का कारण प्राकृतिक परिवेश में मानवीय हस्तक्षेप का बढ़ना है। जिसमें वनों को तेजी से काटा जा रहा है। प्राकृतिक जंगलों को काटकर जिन वनों को लगाया जा रहा है, वो उनकी भरपाई नहीं पाते हैं। तो वहीं नियमों को अनदेखा कर विकास की जो आधारशिला हमने रखी है, वो गलत है। हमें सतत विकास के माॅडल को अपनाना होगा, जहां किसी भी विकास कार्य में पर्यावरण संरक्षण प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिए।

इसके अलावा आम जनता को अपनी जरूरतों को समझना होगा, क्योंकि जिस प्रकार हम हर वस्तु का जरूरत से ज्यादा उपभोग कर रहे हैं, उसने भी जलवायु परिवर्तन को बढ़ाया है। जिससे मौसमी घटनाएं और जल संकट बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि सरकार और लोग भले ही इन घटनाओं को प्राकृतिक आपदा कहें, लेकिन जिस रफ्तार से ये बढ़ रही हैं, इन्हें मानवजनित आपदा कहा जाना चाहिए। जब तक हम इन्हें मानवजनित आपदा नहीं मानेंगे, तब तक गंभीरता से इनके समाधान की ओर ध्यान नहीं दिया जाएगा। यही जल संकट के साथ भी हो रहा है।

गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रो. पीसी जोशी ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण और जल संरक्षण में अहम भूमिका जैव विविधता निभाती है, जिसमें वनों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। वन भूमि में नमी को बनाए रखते हैं और भूजल को रिचार्ज भी करते हैं। एक तरह से जैव विविधता व वन पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखते हैं, वातावरण संतुलित रहता है, लेकिन वनों के कम होने से मौसमी घटनाएं (जलवायु परिवर्तन) बढ़ गई हैं।  इन्हें नियंत्रित करने के लिए हमें अपने वनों का संरक्षण करना होगा।

दरअसल, भारत के साथ ही पूरे विश्व को यह समझना होगा कि जलवायु परिवर्तन मानवीय गतिविधियों से उपजा है, इसलिए धन खर्च करके जलवायु परिवर्तन को नहीं रोका जा सकता। इसे रोकने के लिए आंदोलनों से ज्यादा मानवीय गतिविधियों या मानवीय जीवनशैली में बदलाव लाना बेहद जरूरी है, लेकिन देखा यह जाता है कि पर्यावरण के लिए आवाज उठाने वाले अधिकांश लोग अपनी जीवनशैली में परिवर्तन नहीं लाते। इसलिए उन सभी वस्तुओं का त्याग इंसानी जीवन से करना होगा, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण को हानि पहुंचाती हैं। साथ ही उद्योगों और परिवहन सेक्टरों पर भी सख्ती से लगाम लगानी होगी और हमें वनीकरण को प्राथमिकता में रखना होगा।


हिमांशु भट्ट (8057170025)