अनोमा नदी बौद्ध साहित्य में प्रसिद्ध नदी है।
बुद्ध की जीवन-कथाओं में वर्णित है कि सिद्धार्थ ने कपिलवस्तु को छोड़ने के पश्चात् इस नदी को अपने घोड़े कंथक पर पार किया था और यहीं से अपने परिचारक छंदक को विदा कर दिया था।
इस स्थान पर उन्होंने राजसी वस्त्र उतार कर अपने केशों को काट कर फेंक दिया था।
किंवदंती के अनुसार बस्ती ज़िला, उत्तर प्रदेश में खलीलाबाद रेलवेस्टेशन से लगभग 6 मील दक्षिण की ओर जो कुदवा नाम का एक छोटा-सा नाला बहता है वही प्राचीन अनोमा है और क्योंकि सिद्धार्थ के घोड़े ने यह नदी कूद कर पार की थी इसलिए कालांतर में इसका नाम 'कुदवा' हो गया।
कुदवा से एक मील दक्षिण-पूर्व की ओर एक मील लम्बे चौड़े क्षेत्र में खण्डहर हैं जहाँ तामेश्वरनाथ का वर्तमान मंदिर है।
युवानच्वांग के वर्णन के अनुसार इस स्थान के निकट अशोक के तीन स्तूप थे जिनसे बुद्ध के जीवन की इस स्थान पर घटने वाली उपर्युक्त घटनाओं का बोध होता था।
इन स्तूपों के अवशेष शायद तामेश्वरनाथ मंदिर के तीन मील उत्तर पश्चिम की ओर बसे हुए महायानडीह नामक ग्राम के आसपास तीन ढूहों के रूप में आज भी देखे जा सकते हैं।
यह ढूह मगहर स्टेशन से दो मील दक्षिण-पश्चिम में हैं। श्री बी0 सी0 लॉ के मत में गोरखपुर ज़िला की ओमी नदी ही प्राचीन अनोमा है।
बुद्ध की जीवन-कथाओं में वर्णित है कि सिद्धार्थ ने कपिलवस्तु को छोड़ने के पश्चात् इस नदी को अपने घोड़े कंथक पर पार किया था और यहीं से अपने परिचारक छंदक को विदा कर दिया था।
इस स्थान पर उन्होंने राजसी वस्त्र उतार कर अपने केशों को काट कर फेंक दिया था।
किंवदंती के अनुसार बस्ती ज़िला, उत्तर प्रदेश में खलीलाबाद रेलवेस्टेशन से लगभग 6 मील दक्षिण की ओर जो कुदवा नाम का एक छोटा-सा नाला बहता है वही प्राचीन अनोमा है और क्योंकि सिद्धार्थ के घोड़े ने यह नदी कूद कर पार की थी इसलिए कालांतर में इसका नाम 'कुदवा' हो गया।
कुदवा से एक मील दक्षिण-पूर्व की ओर एक मील लम्बे चौड़े क्षेत्र में खण्डहर हैं जहाँ तामेश्वरनाथ का वर्तमान मंदिर है।
युवानच्वांग के वर्णन के अनुसार इस स्थान के निकट अशोक के तीन स्तूप थे जिनसे बुद्ध के जीवन की इस स्थान पर घटने वाली उपर्युक्त घटनाओं का बोध होता था।
इन स्तूपों के अवशेष शायद तामेश्वरनाथ मंदिर के तीन मील उत्तर पश्चिम की ओर बसे हुए महायानडीह नामक ग्राम के आसपास तीन ढूहों के रूप में आज भी देखे जा सकते हैं।
यह ढूह मगहर स्टेशन से दो मील दक्षिण-पश्चिम में हैं। श्री बी0 सी0 लॉ के मत में गोरखपुर ज़िला की ओमी नदी ही प्राचीन अनोमा है।
Hindi Title
अनोमा नदी (भारतकोश से साभार)
अन्य स्रोतों से
आमी नदी (आनंद राय, गोरखपुर के ब्लॉग दीक्षा से)
आमी नदी सदियों की गौरवगाथा का दस्तावेज है। यह गौतम बुद्ध के गृह त्याग की गवाह है। कबीर की आख़िरी यात्रा की साक्षी है। महान गुरू गोरक्षनाथ और कबीरके शास्त्रीय संवाद की प्रतीक है। यह गाँव की गंगा है। सैकडो गाँवों के लोगों के लिए जीवनदायिनी रही है, लेकिन समाज की संवेदनहीनता ने इसे जहरीला कर दिया है।
अब आमी के जहरीले पानी से जीवन टूट रहा है। जो बच्चे इसके पानी में छपछपा छप छैया करते हुए जवान हुए वे इसे मरते हुए देख रहे हैं। लगभग ८० किलोमीटर लम्बी यह नदी सिद्धार्थ नगर जिले के डुमरियागंज तहसील के रसूलपुर परगना के पास राप्ती के छादन से निकल कर संतकबीर नगर जिले से होते गोरखपुर जिले के सोहगौरा के पास राप्ती नदी में मिल गयी है। इसके तट पर रसूलपुर से लेकर सोहगौरा तक ४०० से अधिक गाँव बसे हैं। इनमे मगहर से आगे कतका, मंझरिया, विनायका, सोहराम, बरवाल्माफी, जराल्ही, गादर, बेल्वादादी, तेनुआ, सोह्राबेल्दांड, धरौना, रक्षा नाला, भाम्सी, बड़ा गाँव, भदसार, तेलियादीह, आदिलापार, जगदीशपुर, लालपुर, गोद्सरी, भिठामjअय्न्तीपुर, कुइकोल, शाहीदाबाद, सोहगौरा प्रमुख है। मगहर से लेकर गीडा तक की अऔद्योगिक इकाइयों ने इस पौराणिक नदी को अपना गटर बना लिया है। इसका चमकता जल काला हो गया है। लेकिन दुखद तथ्य यह है कि गाँव की इस गंगा को बचाने के लिए कदम नही उठ रहे हैं। इसे बचाने के नाम पर जो आवाज गूँज भी रही है वह सरकार प्रशासन और राजनेताओं के बंद कानों को सुनाई नही दे रही है। इतिहास गवाह है कि आमी की धारा ने कई प्रतिमान बनाए हैं। कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ का नश्वर संसार से मोह भंग हुआ तो वे ज्ञान की तलाश में निकल पड़े। अनूतिया नामक स्थान पर उन्होंने तब की अनोमा नदी को पार किया। इस नदी के दूसरे छोर पर उन्होंने अपना मुकुट उतारा और राजसी वस्त्र त्याग कर सारथी को सौंप दिया। राजकुमार सिद्धार्थ ज्ञान मिलने पर गौतम बुद्ध बने। इसी अनोमा नदी को इतिहासकारों ने आमी नदी के रूप में पहचाना है। बौद्ध धर्म के विस्तार के समय इस नदी के किनारे कई बौद्ध विहार बने। इन बिहारों से बुद्धं शरणम गछामी का उदघोष होता था। गौतम बुद्ध के परिनिर्वाण के दो हजार वर्षों तक इस नदी का पानी ज्ञान और बौद्धिक ऊर्जा का स्रोत बना रहा। इसी नदी पर कबीर ने आख़िरी साँस ली। रूढियों के ख़िलाफ़ जब कबीर ने अपनी आख़िरी यात्रा के लिए मगहर को चुना तो इस नदी के तट पर उन्हें ऊर्जा मिली। यहीं पर गुरू गोरक्ष से उनका संवाद हुआ। अब यह नदी मैली हो गयी है। सूख रही है। सिमट रही है और लोगों से टूट रही है।
संदर्भ