गोरखपुर| उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल के तीन जिलों सिद्धार्थनगर, बस्ती और गोरखपुर से होकर बहने वाली आमी नदी का पानी औद्योगिक कचरे के कारण इतना जहरीला हो गया है कि उसे पीकर जानवर तो मौत के मुंह में पहुंच ही रहे हैं, उसके किनारे बसे ग्रामीण भी कई तरह की बीमारियों के शिकार होने लगे हैं|
बौद्धकाल की साक्षी रही आमी नदी प्रदूषण के कारण खत्म होने के कगार पर है| औद्योगिक कचरे और रसायनों को प्रवाहित किए जाने के कारण वह गंदे नाले का रूप ले चुकी है| आमी नदी की वर्तमान स्थिति को देखकर लगता ही नहीं है कि 600-700 ईसा पूर्व इसके किनारे पर बौद्ध धर्मावलम्बियों की आबादी रही होगी|
नदी के प्रदूषित होने का कारण गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण 'गीडा', और कई अन्य इकाइयों में शोधन संयंत्र नहीं होना बताया जा रहा है| इन उद्योगों का गंदा पानी और कचरा इसमें छोडा जाता है| चूंकि 'गीडा' में लगे उद्योगों में इस क्षेत्र के कुछ ग्रामीणों को रोजगार मिला है इसलिए वे इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाते हैं|
राप्ती नदी से निकलकर फिर उसी में विलीन हो जाने वाली इस नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए कई बार जन आंदोलन शुरु किया गया लेकिन इसके लिए जिम्मेदार संस्थाएं आंख मूंदकर चुपचाप बैठी रहीं|
हिन्दू, मुस्लिम आडम्बर के कटु आलोचक संत कबीर ने इसी नदी के किनारे मगहर में समाधि ली थी| यहां आज भी कबीर पंथ के अनुयायियों का प्रतिवर्ष समागम होता है, जहां इस नदी की दुर्दशा पर आवाज उठायी जाती है|
'बासगांव की गंगा' के नाम से जानी जाने वाली यह नदी प्रदूषण के कारण अब एक पतली काली रेखा के रूप में दिखाई देती है| इसका पानी विषाक्त रासायनिक कचरे के कारण इस कदर जहरीला हो गया है कि इसका इस्तेमाल करने वालों को त्वचा रोग की शिकायत आम हो गई है| नदी के तट पर बसे गांवों के लोगों का उससे उठने वाली दुर्गन्ध से जीना दूभर हो गया है|
नदी को देखकर साफ तौर पर यही लगता है कि मानवजनित प्रदूषण के कारण ही उसकी यह हालत हुई है| स्थानीय लोगों का आरोप है कि सरकार की प्रदूषण नियंत्रण से जुडी संस्थाओं ने इस दिशा में अभी तक कोई पहल नहीं की है|
आमी नदी, पूर्वी उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर, बस्ती और गोरखपुर जिलों से होकर बहती है, जो भगवान् बुद्ध के जीवन से निकट रूप से जुडे हुए हैं| आज नदी की स्थिति को देखकर विश्वास ही नहीं होता है कि किसी जमाने में इस नदी के किनारे एक सभ्यता परवान चढी थी|
नदियों के प्रति आस्था और मौजूदा समय में उनकी व्यथा को स्वर देते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा कि एक तरफ तो हम नदी को मां का दर्जा देते हैं और दूसरी तरफ उसमें कचरा बहा रहे हैं| आम जन को इसकी कीमत चुकानी पड रही है| आमी नदी को मुक्त कराने के लिए उन्होंने चरणबद्ध आंदोलन का सुझाव देते हुए कहा कि इस पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर संघर्ष करने की जरूरत है| उन्होंने उन उद्यमियों को भी चेतावनी दी, जो नदी में कचरा बहा रहे हैं|
इस बाबत राज्य के पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता शिवप्रताप शुक्ल ने आमी नदी को प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए शुरु हुए संघर्ष में पूर्ण सहयोग का भरोसा दिलाया है| बहुजन समाज पार्टी 'बसपा' के वरिष्ठ नेता एवं गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से पार्टी के उम्मीदवार विनय तिवारी ने भी आश्वासन दिया है कि गीडा में लगे उद्योगों को शोधन संयंत्र लगाने के लिए मजबूर किया जाएगा और आमी नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए हर सम्भव प्रयास किया जाएगा|
सपा के वरिष्ठ नेता राजेश सिंह का कहना है कि सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति के कारण यह समस्या पैदा हुई है| शोधन संयंत्र लगाए बिना उद्योगों को चलाने की अनुमति क्यों दी गयी और प्रशासन इतने बडे मुद्दे पर खामोश क्यों है|
उधर, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विजेन्द्र त्रिपाठी ने कहा है कि जो नदी जीवनदायिनी थी, उसने अब जनजीवन को बेहाल कर दिया है| जरूरत इस बात की है कि औद्योगिक इकाइयों के अपजल को नदी में जाने से रोका जाए| आमी बचाओ आन्दोलन जन आन्दोलन है, जिसमें गांव-गांव के लोग उठ खडे हुए हैं लेकिन राजनीतिक दल कोई मौका नहीं चूकना चाहते हैं और इस मुद्दे पर भी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए तैयार हैं| पर सरकार कुछ करे या न करे, लोगों ने आमी को प्रदूषण मुक्त करने का बीडा उठा लिया है|
आमी नदी के तटवर्ती गांवों के ग्रामीणों ने इसे प्रदूषण मुक्त करने के लिए समितियां बनायी हैं| कुछ लोगों के संकल्प से शुरू हुआ यह अभियान अब एक बडा रूप ले चुका है| पिछले साल मकर संक्रांति पर स्थानीय पर्यावरणविद् डा. गोविन्द पाण्डेय के आह्वान पर हजारों की संख्या में लोग नदी के तट पर इकट्ठे हुए और उन्होंने अपनी मुट्ठी में लाये हुए ब्लीचिंग पाउडर और फिटकरी नदी में डालकर इसे प्रदूषण मुक्त करने का संकल्प लिया|
इस अवसर पर लोगों ने दस सूत्री एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें अपजल के प्रवाह को नदी में जाने से रोकने, गंदे पानी के उपचार और आसपास की सभी औद्योगिक इकाइयों में प्रदूषित जल के शोधन संयंत्र लगाने की मांग की|
एक व्यक्ति के प्रयास से शुरु हुआ आमी नदी मुक्ति आन्दोलन देखते-देखते बडा रूप लेता जा रहा है, जिसमें आसपास के लोग तो शामिल हैं ही, वकील, बुद्धिजीवी और शहर के लोग भी गहरी दिलचस्पी दिखा रहे हैं| गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी हाल में इस आन्दोलन में शामिल होने की घोषणा की है|
साभार - छत्तीसगढ़ न्यूज अपडेट