ये अमृत की खान है..

Submitted by admin on Thu, 12/11/2008 - 10:03

खान नदी.. या खान नाला

जय द्विवेदी/अभिषेक/भास्कर न्यूज, इंदौर। खान नदी.. या खान नाला.. शहर के लोग लंबे समय से इस सवाल से जूझ रहे हैं। यह नदी प्राकृतिक ही नहीं शहर की सांस्कृतिक विरासत है, जिसके घाट कई ऐतिहासिक, सामाजिक और धार्मिक घटनाओं के साक्षी रहे हैं। इसका पानी लोगों के साथ खेतों की भी प्यास बूझाता था। भूजल स्तर को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका थी लेकिन अब नदी अस्तित्व खो चुकी है। 1985 से इसे पुनर्जीवित करने की घोषणाएं हो रही हैं लेकिन ज्यादातर कागजी साबित हुईं। विशेषज्ञ मानते हैं थोड़े से प्रयास किए जाएं तो खान नदी इंदौर की नर्मदा साबित हो सकती है। जेएनएनयूआरएम में इसे शामिल किए जाने से उम्मीद की नई किरण नजर आ रही है।

बिलावली के पीपलियापाला तालाब से निकली खान नदी 50 किमी का सफर तय कर शिप्रा में मिलती है। 25 किमी का हिस्सा शहर के बीच से होकर ही गुजरता है। व्यवस्थित सिवरेज प्लान नहीं होने के कारण सालों से शहरभर की गंदगी इसी में डाली जा रही है। नंदलालपुरा निवासी 76 वर्षीय मोहिनीराज जोशी कहते हैं मेरे दादा खान नदी के किनारे रहते थे और आज मेरे पोते भी इसी के साए में बड़े हो रहे हैं। फर्क इतना है कि हम नदी पर गर्व करते थे और उन्हें शर्म आती है। जहां संजय सेतु है, वहां पहले एक छोटा नाला आकर मिलता था, जिसे हम सरस्वती नदी भी कहते थे। हरीशचंद्र जोशी कहते हैं हम लोगों ने ही इसे गंगा से गटर बना दिया है।

 

 

नदी कहती है मैंने हार नहीं मानी


62 वर्षीय अब्राहिम दाल कहते हैं खान नदी का पानी कांच की तरह नजर आता था। सुई भी आसानी से देख सकते थे। हम नदी को पार करने के लिए खजूर के पेड़ के तनों को बांधकर पुल बनाते थे। इसी नदी में नर्मदा की तरह बड़ी-बड़ी मछली होती थी। 25-30 साल पहले नदी में बाढ़ आई थी, वही इसका सौंदर्य बहा ले गई। हालांकि हाथीपाला पुल पर रात में नदी की आवाज सुनकर लगता है मानो कह रही हो मैंने हार नहीं मानी।

 

14.5 किमी पर 315 करोड़


जेएनएनयूआरएम के तहत खान नदी पर 315 करोड़ रुपए खर्च होना है लेकिन उसमें भी केवल 14.5 किमी हिस्से पर ही काम होगा। दरअसल इस हिस्से को पर्यटन स्थल बनाने की कोशिश है। शहर से होकर गुजरने वाले शेष 10.5 किमी के बारे में कोई योजना नहीं है। इससे प्रोजेक्ट के बाद भी नदी का पुनर्जीवित होना संदेह के घेरे में है।

 

जरूरत सिंचेवाल की

 


पंजाब के संत सिचेवाला भी इस मामले में शहरवासियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हो सकते हैं। सिचेवाला ने गुरु नानकदेवजी की स्मृतियों से जुड़ी सुल्तानपुर लोधी की काली बेई नदी को पुनजीर्वित कर दिया। हजारों लोग उनके साथ जुड़ गए। उनका यह प्रयास पूरी दुनिया के लिए मिसाल है। खान नदी के लिए भी यदि शहर उनकी तरह प्रयास करे तो इसे पुनजीर्वित किया जा सकता है।

 

 

ऐसे हुई प्रदूषित


>> 25 से ज्यादा गंदे नाले सीधे नदी में आकर मिलते हैं।
>> दोनों किनारों पर गंदगी को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
>> पोलोग्राउंड, सांवेर रोड और पालदा की इंडस्ट्रीज का रसायनिक वेस्ट सीधे नदी में आकर मिलता है।

 

मिल सकता है नया जीवन


>> नदी का प्रॉपर चैनलाइजेशन हो।
>> दोनों किनारों पर रिटेनिंग वॉल बना दी जाए।
>> जगह-जगह स्टॉपडेम बनाकर उसमें वेटलैंड तकनीक का इस्तेमाल कर गाद खत्म करें।
>> प्रस्तावित सीवर प्रोजेक्ट को इसी पर फोकस किया जाए।
>> ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिए शहरी इलाके में बोट चलाई जाए।
>> ऊंचे-ऊंचे फव्वारे लगाएं और कुछ समय के लिए बतख छोड़ें।

 

पहले यह जरूरी


>> सांवेर रोड स्थित इंडस्ट्रीयल एरिया के लिए कॉमन वेस्ट वाटर ट्रिटमेंट प्लांट बनाया जाए।
>> शहर की सभी नालियों का पानी कबीटखेड़ी स्थित सीवरेज प्लांट में ट्रीटमेंट के बाद नदी में छोड़ा जाए।

 

घोषणाओं की सफाई


>> 1985- तात्कालिन आवास एवं पर्यावरण राज्य मंत्री महेश जोशी ने ६क् लाख रुपए की लागत से खान प्रोजेक्ट की शुरुआत कराई। इसके तहत नदी का गहरीकरण किया गया लेकिन ज्यादा कारगर नहीं रहा।

>>1992- आवास एवं पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया ने सवा दो करोड़ की लागत से सुधार कार्य शुरू किए और विभाग की ओर से दो लाख रुपए देने की घोषणा की। इसका भी कोई नतीजा नहीं निकला।

>>२006- संवादनगर से छावनी पुल के बीच नदी 1 करोड़ 80 लाख की योजना बनाकर सौंदर्यीकरण और नाव चलाने की योजना बनी। यह योजना 20 लाख रुपए खर्च करने के बाद बंद हो गई।

>>२006- नगर निगम ने नहर भंडारा के सौंदर्यीकरण पर 5 लाख रुपए खर्च किए। कुछ दिनों के लिए यहां नौका विहार भी किया गया।

साभार - भास्कर - ये अमृत की खान है…