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भास्कर न्यूज, 19 जून 2010
पाकिस्तान का आरोप-इस परियोजना से उस तक पानी की आपूर्ति होगी बाधित। दोनों देशों ने तय किए अपने विशेषज्ञों के नाम।
जम्मू-कश्मीर में निर्माणाधीन किशनगंगा बिजली परियोजना को लेकर भारत और पाकिस्तान केबीच जारी विवाद पर सुनवाई अब अंतरराष्ट्रीय पंचाट में होगी। इस मामले में सुनवाई के लिए पाकिस्तान ने अपना पक्ष रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायमूर्ति बूनो सिम्मा और नॉर्वे के विधि विशेषज्ञ जेन पॉलसन को नामांकित किया है।
भारत की तरफ से जिनेवा स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के जज पीटर तोमका और स्विस अंतरराष्ट्रीय विधि विशेषज्ञ लूसियस कैफ्लिश को इस मामले में अपना पक्ष रखने के लिए नामांकित किया है। तोमका स्लोवाक विदेश मंत्रालय के विधि सलाहकार हैं, जबकि कैफ्लिश जिनेवा स्थित ग्रेजुएट इन्सीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में प्राध्यापक हैं।
किशनगंगा झेलम की सहायक नदी दै। भारत इस नदी पर 330 मेगावाट की पनबिजली परियोजना का निर्माण कर रहा है जिस पर पाकिस्तान आपत्ति जताता है। पाकिस्तान ने 1960 में हुई सिंधु जल संधि के तहत इस मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की मध्यस्थता की मांग की है। पाकिस्तान का कहना है कि भारत को सिंधु जल संधि के प्रावधानों के तहत पश्चिम की ओर बहने वाली तीन-नदियों-चेनाब, झेलम और सिंधु के पानी का इस्तेमाल कुछ शर्तों के साथ करना है। पाकिस्तान के अनुसार किशनगंगा परियोजना इन शर्तों का उल्लंघन करता है। नई दिल्ली का कहना है कि सिंधु जल संधि के तहत किशनगंगा का पानी बोनार मदमाती नाला की ओर मोड़ना उसका अधिकार है। बोनार मदमाती नाला झेलम की सहायक नदी है जो वूलर झील से होकर झेलम में मिल जाती है। पाकिस्तान की आपत्ति है कि इस योजना से किशनगंगा का पानी अवरुद्ध हो जाएगा। भारत और पाकिस्तान के अलावा तीन तटस्थ जजों की नियुक्ति भी की जाएगी।
वास्तविक बहस प्रक्रिया शुरू होने से पहले एक तटस्थ जज की नियुक्ति अध्यक्ष के तौर पर की जाएगी। सिंधु जल संधि के अनुसार अगर एक पक्ष अपने मध्यस्थों का नाम तय कर देता है तो दूसरे पक्ष को 30 दिन के अंदर अपने पैनल के लिए नाम तय करना होता है। भारत को किशनगंगा परियोजना पर सुनवाई के लिए अपना जवाब आज तक पाकिस्तान को भेजना है।
जम्मू-कश्मीर में निर्माणाधीन किशनगंगा बिजली परियोजना को लेकर भारत और पाकिस्तान केबीच जारी विवाद पर सुनवाई अब अंतरराष्ट्रीय पंचाट में होगी। इस मामले में सुनवाई के लिए पाकिस्तान ने अपना पक्ष रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायमूर्ति बूनो सिम्मा और नॉर्वे के विधि विशेषज्ञ जेन पॉलसन को नामांकित किया है।
भारत की तरफ से जिनेवा स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के जज पीटर तोमका और स्विस अंतरराष्ट्रीय विधि विशेषज्ञ लूसियस कैफ्लिश को इस मामले में अपना पक्ष रखने के लिए नामांकित किया है। तोमका स्लोवाक विदेश मंत्रालय के विधि सलाहकार हैं, जबकि कैफ्लिश जिनेवा स्थित ग्रेजुएट इन्सीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में प्राध्यापक हैं।
किशनगंगा झेलम की सहायक नदी दै। भारत इस नदी पर 330 मेगावाट की पनबिजली परियोजना का निर्माण कर रहा है जिस पर पाकिस्तान आपत्ति जताता है। पाकिस्तान ने 1960 में हुई सिंधु जल संधि के तहत इस मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की मध्यस्थता की मांग की है। पाकिस्तान का कहना है कि भारत को सिंधु जल संधि के प्रावधानों के तहत पश्चिम की ओर बहने वाली तीन-नदियों-चेनाब, झेलम और सिंधु के पानी का इस्तेमाल कुछ शर्तों के साथ करना है। पाकिस्तान के अनुसार किशनगंगा परियोजना इन शर्तों का उल्लंघन करता है। नई दिल्ली का कहना है कि सिंधु जल संधि के तहत किशनगंगा का पानी बोनार मदमाती नाला की ओर मोड़ना उसका अधिकार है। बोनार मदमाती नाला झेलम की सहायक नदी है जो वूलर झील से होकर झेलम में मिल जाती है। पाकिस्तान की आपत्ति है कि इस योजना से किशनगंगा का पानी अवरुद्ध हो जाएगा। भारत और पाकिस्तान के अलावा तीन तटस्थ जजों की नियुक्ति भी की जाएगी।
वास्तविक बहस प्रक्रिया शुरू होने से पहले एक तटस्थ जज की नियुक्ति अध्यक्ष के तौर पर की जाएगी। सिंधु जल संधि के अनुसार अगर एक पक्ष अपने मध्यस्थों का नाम तय कर देता है तो दूसरे पक्ष को 30 दिन के अंदर अपने पैनल के लिए नाम तय करना होता है। भारत को किशनगंगा परियोजना पर सुनवाई के लिए अपना जवाब आज तक पाकिस्तान को भेजना है।