आपन-आपन सब कोउ होइ

Submitted by Hindi on Wed, 03/24/2010 - 16:56
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घाघ और भड्डरी

आपन-आपन सब कोउ होइ, दुख माँ नाहिं सँघाती कोइ।
अन बहतर खातिर झगड़न्त, कहैं घाघ ई बिपत्ति क अन्त।।


भावार्थ- अपने-अपने के लिए हर कोई होता है लेकिन दुःख में कोई किसी का साथी नहीं होता। हर कोई अन्न वस्त्र के लिए झगड़ रहा है, इससे बढ़कर विपत्ति क्या हो सकती है, ऐसा घाघ का मानना है।