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डॉ. दिनेश कुमार मिश्र की पुस्तक 'दुइ पाटन के बीच में'
पुलिस ने महपुरा घाट पर नाव से नदी पार करके उनका पीछा करना चाहा मगर घाट पर कोई नाव ही उस वक्त मौजूद नहीं थी। थक-हार कर पुलिस बलुआहा घाट लौट आयी और लूट काण्ड पर हमेशा के लिए परदा पड़ गया। इसी घाट पर चार साल पहले भी ठीक इसी तरह की घटना हुई थी और तब से स्थानीय लोग कोठिया गांव में पुलिस चौकी की मांग कर रहे हैं, मगर कोई सुनवाई नहीं होती।
नदी के दोनों तटबन्धों के बीच का क्षेत्र आजकल आपराधिक वृत्ति वाले असामाजिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए स्वर्ग है क्योंकि कानून का राज लागू करने वाली संस्थाओं के लिए यह इलाका करीब/करीब दुर्गम हो गया है। कोसी नदी, गंगा और नेपाल के बीच एक प्रभावी कड़ी का काम करती है और स्थानीय लोग बताते हैं कि इस नदी के जरिए हर तरह की ग़ैर-कानूनी और असली-नकली चीजों का आयात-निर्यात चलता रहता है। यह काम पूरा-पूरा स्थानीय अधिकारियों और पुलिस के सहयोग से होता है। अपराधियों के बहुत से गिरोह इस इलाके से अपने कार्यक्रमों को अंजाम देते हैं और यहां की दुर्गमता उनके इस काम में मदद करती है। संगठित तरीके से लूट-पाट और डकैती यहां की रोजमर्रा की घटना है जिसमें से बहुत-सी घटनाओं की तो रिपोर्ट भी नहीं लिखवाई जाती क्योंकि पुलिस रिपोर्ट लिखाने वाले को ही बेवजह परेशान करती है।कुछ समय पहले एक घटना (4 दिसम्बर 2003) कोसी पीड़ित विकास प्राधिकार के अध्यक्ष, जो कि बिहार विधान सभा में महिषी विधान सभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे, के साथ महिषी प्रखण्ड के बलुआहा घाट पर घटी। वह अपने गांव भेलाही से, जो कि इस समय तटबन्धों के बीच कोसी की मुख्य धारा के पश्चिमी किनारे पर है, पूरब में बलुआहा घाट आने के लिए नाव में सवार हुये। उनके अपने गांव भेलाही से नदी के पश्चिमी घाट से छूटने से पहले ही एक मोटर चालित नौका नदी के किनारे आकर लगी। अध्यक्ष महोदय वाली नाव जैसे ही किनारे से खुली और बीच धारा में पहुंची वैसे ही लुटेरों की मोटर चालित नौका ने उसे घेर लिया और नाव में सवार लोगों से नकद राशि और घड़ी आदि छीन ली। अध्यक्ष जी की भी घड़ी और पैसा लुटेरों ने छीन लिया।
बताते हैं कि लुटेरों ने अध्यक्ष को ध्यान में रख कर यह लूट-पाट नहीं की थी और नाव में उनकी मौजूदगी महज इत्तिफाक थी। यह लूटपाट नाव के बलुआहा घाट पर किनारे लगने तक चलती रही। घाट पर नाव लग जाने के बाद लुटेरे नाव से उतरे और उस किनारे पर खड़े लोगों के भी रुपये-पैसे और घड़ियां गहने छीने। किसी भी यात्री ने चूं तक नहीं की क्योंकि लुटेरों के पास अत्याधुनिक हथियार थे। मामला बिगड़ता देखकर बलुआहा घाट के संतरी घाट छोड़ कर भाग खड़े हुये। लूट को अंजाम देने के बाद लुटेरे नाव में बैठ कर आराम से चले गये। घटना के दस मिनट बाद पुलिस वहां पहुंची। मामले में कोसी पीड़ित विकास प्राधिकार के अध्यक्ष भी शिकार हुये थे और उनका ओहदा एक कैबिनेट स्तर के मंत्री का था। इसलिए पुलिस वालों ने तटबन्ध पर मोटर साइकिल दौड़ा कर नाव का पीछा करने की कोशिश की मगर उन्हें अपनी मुहिम बीच में ही छोड़ देनी पड़ी क्योंकि देर काफी हो चुकी थी।
पुलिस ने महपुरा घाट पर नाव से नदी पार करके उनका पीछा करना चाहा मगर घाट पर कोई नाव ही उस वक्त मौजूद नहीं थी। थक-हार कर पुलिस बलुआहा घाट लौट आयी और लूट काण्ड पर हमेशा के लिए परदा पड़ गया। इसी घाट पर चार साल पहले भी ठीक इसी तरह की घटना हुई थी और तब से स्थानीय लोग कोठिया गांव में पुलिस चौकी की मांग कर रहे हैं, मगर कोई सुनवाई नहीं होती। पुलिस चौकी बैठाने या पहरा देने की एक व्यावहारिक सीमा है। वैसे भी जब लुटेरों के हौसले इस कदर बुलन्द हों तब पुलिस क्या कर लेगी?
कुछ साल पहले कोसी के पश्चिमी तटबन्ध से लगे महिषी प्रखण्ड के ही गांवों से तीन इंजीनियरों का अपहरण हुआ जिसमें एक इंजीनियर मारा भी गया।