आर्कटिक में बेतहाशा बढ़ रहा तापमान

Submitted by RuralWater on Sun, 03/25/2018 - 15:50
Source
द गार्जियन, 27 फरवरी 2018


आर्कटिकआर्कटिकजलवायु परिवर्तन के बारे में हम सभी लम्बे समय से सुनते आ रहे हैं कि इससे तापमान में बढ़ोत्तरी हो रही है।

विज्ञानी समय-समय पर शोध कर बता चुके हैं कि तापमान में किस रफ्तार से इजाफा होगा, लेकिन हाल ही में ऐसे तथ्य सामने आये हैं, जिनसे विज्ञानियों की पेशानी पर बल आ गया है।

सूर्यहीन सर्दी में भी आर्कटिक में चल रहे हीटवेव से यूरोप में बर्फानी तूफान आया है और इस अजीबो-गरीब हालात ने वैज्ञानियों को जलवायु परिवर्तन के पूर्वानुमानों पर दोबारा विचार करने को विवश कर दिया है।

हालांकि इसे अनूठी घटना साबित किया जाना अभी बाकी है, लेकिन प्राथमिक तौर पर चिन्ता यह है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ध्रुव के जलावर्त का अपरदन (क्षय) हो रहा है। इसी तरह की शक्तिशाली हवा ने कभी जमे हुए उत्तरी ध्रुव को अलग कर दिया था।

उत्तरी ध्रुव तक मार्च से पहले सूरज की रोशनी नहीं पहुँचती है लेकिन गर्म हवा के कारण साइबेरिया का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस पर पहुँच गया है, जो इस महीने के औसतन तापमान से अधिक है।

ग्रीनलैंड में इस साल 61 घंटे तक हिमकारी हुई है जो पिछले साल की तुलना में तीन गुना अधिक वक्त है।

मौसम विज्ञानी इस तरह की घटनाओं को सनकी, अजीबो-गरीब व सदमा देने वाला मान रहे हैं।

पेनिसिल्वानिया स्टेट यूनिवर्सिटी के अर्थ सिस्टम साइंस सेंटर के डाइरेक्टर माइकल मान्न कहते हैं, ‘यह अनियमिततों में अनियमित घटना है। जो कुछ हो रहा है वह ऐतिहासिक दायरे के बाहर की घटनाएँ हैं। इन घटनाओं से साफ हो जाता है कि आने वाले समय में ऐसी आश्चर्यजनक घटनाएँ और हो सकती हैं। इसका कारण है कि हम तापमान को लगातार उकसा रहे हैं।’

वह आगे कहते हैं, ‘मानवकृत जलवायु परिवर्तन के कारण जो कुछ भी घटित होता है, उसका असर सबसे पहले आर्कटिक पर दिखता है और आर्कटिक साफ चेतावनी दे रहा है।’

मगर, आश्चर्य की बात है कि बहुत कम मीडिया का ध्यान इस चिन्ता पर गया। हाल के दिनों में इस घटना को लेकर ज्यादातर मीडिया में खबर का फोकस यह रहा कि यूरोप में आसामान्य रूप से सर्दी पड़ रही है। खबरें खुशमिजाज अंदाल में लिखी गईं, लेकिन सच तो यह है कि इस सर्दी का लौटना सामान्य नहीं, बल्कि दूर उत्तर की तरफ जो कुछ घटित हो रहा है, उसका स्थानान्तरण है।

दुनिया की एकदम उत्तरी तरफ ग्रीनलैंड की उत्तरी दिशा में स्थित वेदर स्टेशन केप मोरिस जेसप में हाल में जो तापमान रिकॉर्ड किया गया है वह लंदन और ज्यूरिख से ज्यादा गर्म था। यहाँ यह भी बता दें कि ये शहर हजारों मील दक्षिण की तरफ स्थित हैं।

हालांकि तापमान में हालिया 6.1 डिग्री सेल्सियस बढ़त कोई रिकॉर्ड तो नहीं है लेकिन पूर्व में दो मौकों (वर्ष 2011 और वर्ष 2017) पर कुछ घंटों के लिये तापमान में इजाफा हुआ, लेकिन फिर औसत पर लौट आया।

डैनिस मेटेरोलॉजी इंस्टीट्यूट के रुथ मोट्टरैम कहते हैं, ‘तापमान में उतार-चढ़ाव मौसम का सामान्य लक्षण है लेकिन इस घटना में असामान्य बात यह है कि यह मौसम लम्बे समय तक रहा और गर्मी अधिक रही। अगर हम 1950 के दौर में भी जाएँ, तो आर्कटिक में हमने इतना अधिक तापमान नहीं देखा।’

तापमान में तेजी से हुई बढ़ोत्तरी के कारणों व इसके महत्त्व को लेकर गहन विमर्श चल रहा है। आर्कटिक में ध्रुव के भँवर में मजबूती और कमजोरी के कारण अक्सर तापमान में उतार-चढ़ाव देखा जाता है। जेटस्ट्रीम जो गर्म हवा को बाहर कर क्षेत्र को ठंडा रखने में मदद करता है, उसके चलते भी तापमान में बदलाव देखा जाता है।

इस तरह की प्रक्रिया प्राकृतिक तौर पर पहले भी हो चुकी है, जिसे इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम के परिणाम के तौर पर देखा जाता था।

लेकिन, गर्मी अब जल्दी आ जा रही है और इसका प्रभाव लम्बे समय तक दिखता है। ऐसा इससे पहले के वर्षों में नहीं होता था। पर्यावरण को लेकर काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन बर्कले अर्थ के मुख्य विज्ञानी रॉबर्ट रोहडे कहते हैं, आर्कटिक रिकंस्ट्रक्शंस के 50 वर्षों में सर्दी के मौसम में सबसे ज्यादा और लम्बे समय तक रहने वाली गर्मी है।

ऐसे में सवाल यह है कि क्या यह ध्रुव के भँवर के ढहने या कमजोर होने का संकेत है। भँवर तेज हवाओं की एक गोलाकार आकृति है जो हवा को बाहर निकालकर आर्कटिक को सर्द रखती है।

यहाँ यह भी बता दें कि भँवर आर्कटिक व मध्य अक्षांश के बीच के तापमान में अन्तर पर निर्भर करता है, लेकिन ध्रुव के तेजी से गर्म होने के कारण तापमान के इस अन्तर में कमी आ रही है। औसतन तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन ध्रुव के निकट 3 डिग्री सेल्सियस गर्मी है जिससे बर्फ पिघल रही है। नासा के अनुसार, आर्कटिक समुद्र की बर्फ प्रति दशक 13.2 प्रतिशत की दर से पिघल रही है। इससे पानी की मात्रा और तापमान में इजाफा हो रहा है।

कुछ विज्ञानी हालांकि अटकलबाजी की बात भी करते हैं। उनका मानना है कि आर्कटिक गर्म रहेगा, तभी यूरोप सर्द होगा क्योंकि ध्रुव का भँवर कम अस्थिर हो जाएगा और गर्म हवा लेकर सर्द हवा छोड़ेगा। यूके और उत्तरी यूरोप में यह महसूस भी किया जा रहा है।

रोहडे हालांकि इस थ्योरी को विवादित मानते हैं। उनका कहना है कि सभी जलवायु मॉडल में ऐसा नहीं है। अलबत्ता इस बार का तापमान का जो पैटर्न है, वह इस थ्योरी से मेल खाता है। रोहडे का मानना कि लम्बी अवधि में अलग-अलग वेरिएशन मिलने की उम्मीद है। वह कहते हैं, ‘जिस तरह आर्कटिक गर्म हो रहा है, उसे देखते हुए आने वाले वर्षों में अप्रत्याशित मौसम के ऐसे उदाहरण और देखने को मिलेंगे।’

40 सालों का अनुभव रखने वाले मौसम विज्ञानी और क्लाइमेट डिस्सेमिनेशन के संस्थापक जेस्पर थैलगार्ड कहते हैं, ‘हालिया ट्रेंड पूर्व के ट्रेंडों से बिल्कुल अलग है। जो गर्मी बढ़ रही है वह लोगों और प्रकृति के लिये मुश्किलें लाएँगी, इसमें कोई सन्देह नहीं है। बारिश व बर्फबारी में बदलाव से सतह पर बर्फ की मात्रा बढ़ेगी जिससे पशुओं के लिये भोजन मिलना मुश्किल हो जाएगा। मौसम में इस तरह के बदलाव के कारण जीवन की स्थितियाँ मुश्किल भरी होती हैं।’

हालांकि कुछ मौसम विज्ञानियों का कहना है कि यह मानना जल्दबाजी होगी कि मौसम में यह बदलाव पूर्वानुमान से अलग है या नहीं।

बर्कले अर्थ के जेके हौसफादर कहते हैं, ‘आर्कटिक में 20 डिग्री सेल्सियस या सामान्य से अधिक तापमान की वजह प्राकृतिक अस्थिरता है।’ उन्होंने कहा कि मौजूदा वार्मिंग ट्रेंड के चलते ऐसा माना जा रहा है लेकिन हमारे पास वैसा कोई मजबूत सबूत नहीं है जिसके बिना पर यह कहा जा सके कि आर्कटिक की जलवायु में अस्थिरता से विश्व में उष्णता बढ़ेगी।

यद्यपि जलवायु की मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह समझ पाना मुश्किल है कि आर्कटिक में उष्णता में बदलाव आना चाहिए या नहीं। लेकिन, तापमान में इजाफा होने से जलवायु परिवर्तन में तेजी आने की सम्भावना को बल मिलेगा।

मान्न कहते हैं, ‘मौसम में इस अल्पकालीन बदलाव के बूते यह नहीं कहा जा सकता है कि आर्कटिक की उष्णता में कितना बदलाव आएगा। हाँ, इससे यह जरूर लगता है कि हम आर्कटिक में अल्पकालिक अत्यधिक उष्णता के संकेत को कमतर कर देख रहे हैं। यह अल्पकालिक घटना बर्फ पिघलने व मिथेन के निकलने से बड़ा स्वरूप ले सकती है व उष्णता और बढ़ सकती है।’