यदि पृथ्वी के तापक्रम को रोकने की कोशिश नहीं होगी तो यह 2100 तक ताप साढ़े चार डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा और इसी गति से 2300 तक पृथ्वी के वातावरण का तापक्रम 8 डिग्री सेल्सियस और बढ़ेगा। इससे पृथ्वी पर जीवन जीना कठिन हो जाएगा। इस तरह ताप बढ़ने से बहुत सारे समुद्र के करीब के शहर पानी में समा जाएँगे।
धरती पर ताप बढ़ने के संकेत तेजी से मिल रहे हैं। इसका सीधा असर डूबते शहरों में देखने को मिल रहा है, सागर के भीतर जमीन समाने लगी है। जैसे किरिबाती द्वीप की भूमि समुद्री सतह से कुछ ही फुट की दूरी पर है। हाल ही के अध्ययनों में पाया गया कि 1880 से अब तक बीस से पच्चीस सेंटीमीटर भूमि पानी में समा गई है।
मालदीव को भी इसी तरह किसी दिन समुद्र लील सकता है। पृथ्वी जैसे-जैसे गरम होगी, ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगेंगे। पिघली बर्फ समुद्र का आयतन बढ़ाएँगे और मनुष्य के रहने लायक थल जल में होंगे। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे चल रही है, पर आने वाले समय में ताप बढ़ने से यह तेज हो जाएगी। ऐसे दृश्य आज हमारे सामने हैं। दुनिया के शीर्ष 90 वैज्ञानिक प्रकाशकों ने जो इस क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं- समुद्री सतह के बढ़ने का अध्ययन कर रहे हैं। उनका मानना है कि 2100 और 2300 के बीच पृथ्वी का ताप बढ़ती स्थिति में होगा, ऐसे बढ़ते तापक्रम को रोकने के प्रयास कर पूर्व औद्योगिकीकरण के ताप 2 डिग्री सेल्सियस तक कम करने की कोशिश की जानी चाहिए।
यदि पृथ्वी के तापक्रम को रोकने की कोशिश नहीं होगी तो यह 2100 तक ताप साढ़े चार डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा और इसी गति से 2300 तक पृथ्वी के वातावरण का तापक्रम 8 डिग्री सेल्सियस और बढ़ेगा। इससे पृथ्वी पर जीवन जीना कठिन हो जाएगा। इस तरह ताप बढ़ने से बहुत सारे समुद्र के करीब के शहर पानी में समा जाएँगे। वैसे अनुमान है कि 30 से 60 साल के भीतर यदि कार्बन उत्सर्जन की गति को नहीं रोका गया तो किरिबाती ही नहीं बहुत सारे द्वीपों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। यही नहीं समुद्र की सतह के करीब जो भी शहर बसे हैं, वह नहीं रह पाएँगे। अभी से बहुत सारे देश अपने भविष्य के लिये जमीन दूसरी जगह खरीदने लगे हैं ताकि अपने नागरिकों को सुरक्षित स्थानों तक भेज सकें। एक देश जो हवाई के दक्षिण में 1200 मील दूर और ऑस्ट्रेलिया से 3800 मील उत्तर पूर्व में है, उसने 6 हजार एकड़ जमीन फिजी के पास खरीदी है, ताकि अपने नागरिकों को कठिन समय में वहाँ खाद्य सुरक्षा के साथ बसा सके।
अनुसन्धानों से पता चल रहा है कि मौसम परिवर्तन से ग्रीनलैंड में बर्फ की पर्त तेजी से पिघल रही है। 2012 में सेटेलाइट के अध्ययन से पाया गया कि सतह की 98.6 प्रतिशत बर्फ पिघल चुकी थी। मुम्बई, कोलकाता सहित दुनिया के 10 बड़े शहरों के डूबने का खतरा सागर की सतह से उठने से होगा। इसमें हांगकांग, ढाका, जकार्ता, हनोई, न्यूयॉर्क और थाईलैंड की राजधानी भी खतरे के कगार पर है। यानी 4 डिग्री सेल्सियस ताप बढ़ने से सीधे 47 से 76 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। चीन में साढ़े चौदह करोड़ लोगों का जीवन प्रभावित होगा। विश्व बैंक के अनुसार आज दुनिया के 136 तटीय शहरों का प्रतिवर्ष 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो रहा है। वातावरण में कार्बन की सान्द्रता पर संयुक्त राष्ट्र संघ की एक एजेंसी ने बताया कि 30 से 50 लाख वर्ष पहले समुद्र की सतह आज की अवस्था से 20 मीटर ऊँची थी। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार 2016 के वर्ष में वातावरण में कार्बन की सान्द्रता आठ लाख वर्ष पूर्व जैसी थी। यानी इस वर्ष कार्बन डाइऑक्साइड की औसत ग्लोबल सान्द्रता 403.3 प्रति पार्ट लाख थी। जबकि 2015 में 400.00 प्रति पार्ट लाख थी। यह सब मानव गतिविधि और अल नीनो के कारण माना गया। पिछले दस साल के औसत में यह 50 फीसद बढ़ा। कार्बन डाइऑक्साइड का लेवल वातावरण में औद्योगिक क्रान्ति के बाद ही बढ़ा। यानी इसकी बढ़त सीधे 145 फीसद तक हुई। इसी तरह वातावरण में 1750 के बाद मीथेन 257 और नाइट्रसऑक्साइड 122 फीसदी बढ़ी। यह भी देखने में आया कि कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर वातावरण में 70 सालों में 100 फीसद बढ़ा है।
विश्व के मौसम वैज्ञानिक संगठन ने जीवाश्म अध्ययन से पाया कि 30 से 50 लाख वर्ष पहले भी कार्बन डाइऑक्साइड की सान्द्रता वातावरण में ऐसी ही थी, तब समुद्र की सतह 20 मीटर ऊँची थी। पृथ्वी उस दौरान 2.3 डिग्री सेल्सियस गर्म थी। एक अध्ययन में पाया गया कि वातावरण के लिये सबसे बड़ा खतरा स्मार्टफोन होने जा रहा है। बिजली की खपत इसमें हो रही है। साथ ही कितने ही तरह की तरंगों से वातावरण को प्रदूषित करने में यह आगे रहेगा। जर्नल ऑफ क्लीनर प्रोडक्शन के अध्ययन में पाया गया कि 2020 तक सबसे खतरनाक डिवाइस स्मार्टफोन होगा। हमें समझना चाहिए कि कहाँ और कैसे इस धरा को आने वाली पीढ़ी के लिये सुरक्षित रख पाएँ? कितनी ही दीवारें खड़ी कर दें, पानी को रोक पाना मुश्किल होगा। भविष्य में उथल-पुथल की प्रबल सम्भावनाएँ हैं।