बारिश का संगीत

Submitted by Hindi on Wed, 11/02/2011 - 15:20
Source
जनसत्ता, 21 अक्टूबर 2011

जंगलों, पहाड़ों, पठारों, समतल पर वर्षा अपनी तरह-तरह की किलकरियों से गूंजने लगती है। झमाझम, रिमझिम और मूसलाधार, टिप-टिप और फुहार उसी वर्षा की आवाज के रूप हैं। बारिश में भीग कर मन भीग जाता है। यह शीतलता, ऐसी सोंधी गंध कहां छिपी पड़ी थी। छतरी पर टपटपाती, छोरों से टपकाती बूंदें हमारे कपड़े को तर कर देने का मौका ढूंढ़ती हैं। जब वे शरीर पर पड़ती हैं, सिर के बालों को गीला करने लगती हैं तो ना-ना करते हुए भी हम उनके वश में आ जाते हैं।

हर साल जेठ-बैशाख की लू से लोग परेशान रहते हैं और किसानों की चिंता बढ़ने लगती है। दिन भर की लू से तपती धरती और आसमान जब सुस्ताना चाहते हैं, तभी आसमान के कोने से बादल का एक टुकड़ा उभरता है और देखते-देखते मेघों का गर्जन-तर्जन शुरू हो जाता है। जी करता है बारिश की आवाज कानों में फिर पड़े। बहुत-सी आवाजों से मन ऊब जाता है, मगर वर्षा की बौछारों की आवाज में एक दूसरा ही आकर्षण है। छत से लगी टीन या एस्बेस्टस की चादरें बूंदों के आगमन को गोपनीय नहीं रहने देतीं। वर्षा आ गई, खबर चारों ओर फैल जाती है। मकान की छतों, रेलिंग, खिड़की और बरामदों तक अपने शीतल तीरों की बौछार लिए बारिश जब आक्रमण करती है, तब लू-तपिश सोंधी गंध में नरम पड़ जाती है। प्रकृति का यह सनातन नियम है।

भारत जैसे देश की यह विशेषता है कि हम शीत, ग्रीष्म और बरसात के मौसम का बेसब्री से इंतजार करते हैं। ‘टप-टप’, ‘हरर-छहर’ की आवाज के साथ वर्षा नई उमंग के साथ सूखे या मुरझाए हुए पेड़-पौधों को चूमने लगती है। बौछारों की मार से जैसे हर पत्ता बोलता है, हमें और भिगाओ, अभी मन नहीं भरा...! सारी प्रकृति विनम्र होकर वर्षा का स्वागत करती है। खेतों में उदास बैठी धरती अपनी ‘फटी बिवाई’ को निहार रही है। लेकिन वर्षा की फुहारों में वह भी अठखेलियां करने लगती है। इंद्रदेव खुश हैं, वरुण प्रसन्न हैं। खेतों की बिवाइयां अब भर जाएंगी और लहलहाती फसलों के दिन आ गए। धान खुश हैं कि पानी उनकी कमर तक आ गया। सूरज का ताप अब उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता! धूप कड़कड़ाएगी तो बारिश को फिर गोहराएंगी। धान की बालियां फूटेंगी और कृषकों का श्रम सार्थक होगा। घास-पात और हरे चारे से धरती मुस्कराएगी? अब मवेशी भूखों नहीं मरेंगे।

लेकिन मनुष्य के सजाए बाजारों में जब वर्षा के आगमन की खबर पहुंचेगी तो महंगे जिन्स, चावल-दाल, मसाले, तेल, साग-सब्जी सभी के भाव गिरने लगेंगे। खेतों में पड़ती बौछारों का संगीत जब सुनने चलिए तो अपने भीतर भी मधुर धुन बजने लगती है। चिड़िया-चुरुंग डर कर छिपते जरूर हैं, लेकिन उन्हीं बौछारों में अपने पंख भी फड़फड़ा लेते हैं। वर्षा संगीत को सुनने के लिए मैंने अपने मकान की छत से पाइप का एक टुकड़ा बाहर निकलवा रखा है। मेघ जब भी मेहरबान होता है तो उसका संगीत इस पाइप से गिरती धारा से गूंजने लगता है। जंगलों, पहाड़ों, पठारों, समतल पर वर्षा अपनी तरह-तरह की किलकरियों से गूंजने लगती है। झमाझम, रिमझिम और मूसलाधार, टिप-टिप और फुहार उसी वर्षा की आवाज के रूप हैं। बारिश में भीग कर मन भीग जाता है। यह शीतलता, ऐसी सोंधी गंध कहां छिपी पड़ी थी। छतरी पर टपटपाती, छोरों से टपकाती बूंदें हमारे कपड़े को तर कर देने का मौका ढूंढ़ती हैं। जब वे शरीर पर पड़ती हैं, सिर के बालों को गीला करने लगती हैं तो ना-ना करते हुए भी हम उनके वश में आ जाते हैं। भिगो दो वर्षा रानी, दूर दुबकी लू हम पर हंसती होगी! मगर ऐसा सुख हम उससे नहीं बांटेंगे।

जब वह नहीं आती है, तब सूखा पड़ता है और जब उमड़ती है तो बाढ़ अपनी ताकत दिखाती है। नदियों में उफान आ जाता है। सच तो यह है कि वर्षा नदियों को जवान बना देती है। इस साल तो हद हो गई। अपने आखिरी दौर में बारिश ने जो कहर ढाया, उसे देख-सुन कर मन भौंचक था। उत्तर भारत के कुछ इलाकों में कई लोगों की जान भी चली गई। केवल मुंबई या दिल्ली नहीं, न्यूयार्क तक की सड़कों पर नदियों का रेला आ गया था। विश्वास नहीं हुआ कि लटके मेघों में इतना पानी कहां से आ गया। कहीं बादल फट जाते हैं तो कहीं झमाझम बारिश तबाही मचाती है। मूसलाधार भी कमजोर मकानों का इम्तहान लेती और रिमझिम समूचे वातावरण में शीतल संगीत भर देती है। चाय का गरम प्याला लीजिए, बरामदे में बैठे रिमझिम का जलतरंग सुनिए। शायद यही वजह है कि मुझे बरसात का इंतजार हमेशा रहता है। सही है कि नियमित जीवन में थोड़ी बाधा पड़ती है, फिर भी उन बाधाओं की असुविधा से वर्षा का सुख बहुत बड़ा है। मल्हार राग की शीतलता के आनंद से रोम-रोम पुलकित हो उठता है। वर्षा तुम्हें बधाई! हर साल आना, नहीं तो हमारी धरती तुम्हारे संगीत से वंचित रह जाएगी।