11 जनवरी 2014, महोबा। बदहाली के मुकाम में ठहरे बुंदेलखंड को खुशहाली को राह में लाना कोई आसान बात नही हैं जो किसी संस्था अथवा सरकार के संसाधनों मात्र से हो सके। इस तरह के बदलाव सिर्फ व सिर्फ समुदाय व समाज की अपनी समझ और चाहत से सम्भव है। ऐसा ही कुछ बदलाव बुंदेलखंड में किसानों के खेतों पर श्रृंखलाबद्ध बनते तालाबों से आसार नजर आ रहे हैं। जहां बदहाली का डेरा है।
बुंदेलखंड, उत्तर प्रदेश के महोबा जिले में सूखे के तांडव ने एक दशक से कुछ ज्यादा ही तबाह किया जिससे इलाकाई किसान खेती के भरोसे खुशहाली की उम्मीद छोड़ बैठे थे। उन्हें भी लगने लगा था कि अब कोई सरकार की बड़ी मदद या बड़ी परियोजनाओं का जाल ही हमें उबार सकती है। कुछ हुआ भी इस विशेष क्षेत्र के लिए, इन बीते वर्षो में सरकारों के प्रयासों से। पर उससे बदहाली से निजात पाने का रास्ता नहीं बना।
विकासखण्ड चरखारी के सूपा गांव में किसान मुन्ना, महेश, जुगुल, किशोर व स्व.ओमप्रकाश चारों भाइयों के हिस्से में पांच-पांच बीघे जमीन होने के बावजूद भी इससे उनके परिवार को रोटी का इन्तजाम नहीं हो पाया और न ही इस जमीन के भरोसे मुकम्मिल तरीके से यहां रह सके। भाई जुगुल किशोर खेती की दुर्दशा देख मप्र के सतना में जाकर बीज-कीटनाशक विक्रेता प्राइवेट कम्पनी में काम करने लगे और धीरे-धीरे देवेन्द्रनगर कस्बे में खुद का व्यवसाय कर लिया और उसी की आमदनी से गांव में एक एकड़ जमीन खरीदने के साथ 4 एकड़ जमीन ठेके पर ले ली। इस जमीन को भाई मुन्ना बटाई पर करता है। मुन्ना के दो पुत्र हैं, बड़ा राजेन्द्र भी देवेन्द्र नगर में चाचा की कीटनाशक वाली दुकान पर चौदह माह तक बिना वेतन के काम सीखता रहा ताकि वह भी कहीं इसी व्यवसाय को कर ले। मुन्ना बताते हैं कि मैं अपनी उपजाऊ जमीन पर भी जब महाउट का पानी बरसा फिर भी पांच बीघे में 7-8 क्विंटल कुल मटर का उत्पादन ले पाया था। बाकी सालों में मैं अपनी पूरी जमीन में 3 क्विंटल से लेकर पांच क्विंटल तक चना का उत्पादन कर पाया हूं। पानी का मुकम्मिल प्रबन्ध होने की उम्मीद पर किसान मुन्ना कहतें है कि चार-पांच क्विंटल प्रति बीघा के हिसाब से पांच बीघे में 20-25 कुन्तल उत्पादन भी होगा और साग-सब्जी, गन्ना जैसी फसलों को लेकर दो फसलें आसानी से लेंगे।
किसान मुन्ना को जब फायदे की खेती का विकल्प मिला तो उसकी आंखों में चमक आ गई और आनन-फानन अपने परिवार के साथ खेत की गहराई वाले हिस्से में 25×25×3 मी. आकार के तालाब की संरचना में जुट गया। लघु सीमान्त व अनुसूचित वर्ग की श्रेणी में होने के कारण मुन्ना के तालाब निर्माण का खर्चा मनरेगा ने उठा लिया, तो साथ में 50-60 और श्रमिकों ने फावड़े चलाए।
तालाब निर्माण तो अभी आखिरी चरण में है पर किसान मुन्ना के परिवार की बनती फसल विविधिता भरी योजनाओं की हिलकोरे बिन पानी आए तालाब में भी बखूबी देखी जा सकती है।
किसान का बेटा राजेन्द्र अब देवेन्द्र नगर से अपने घर वापस आकर तालाब में काम कर रहा है। उसे भरोसा है कि अपने तालाब के बनने से इसी जमीन में कई तरह से फायदे वाली फसलें करके पूरे परिवार को काम और रोटी का इन्तजाम मिलेगा। राजेन्द्र कहता है कि मैं 9 वीं कक्षा तक ही पढ़ सका हूं आगे की पढ़ाई परिस्थितिवश नहीं कर सका। पर अपने छोटे भाई को पढ़ाने के लिए पूरा अवसर मिलने की उम्मीद हो गई है। मुन्ना की पत्नी श्रीमती मीरा अपनी भाग-दौड़ की मेहनतकश जिन्दगी से थक चुकी है। उनका मानना है कि अब इसी अपने तालाब की पाल पर घर बना कर खेत में मेहनत करेंगे तो आराम की रोटी मिलेगी।
संपर्क
श्री राजेन्द्र पुत्र मुन्ना ग्राम -सूपा,
विकासखण्ड -चरखारी -महोबा
मोबाइल-08934996502
बुंदेलखंड, उत्तर प्रदेश के महोबा जिले में सूखे के तांडव ने एक दशक से कुछ ज्यादा ही तबाह किया जिससे इलाकाई किसान खेती के भरोसे खुशहाली की उम्मीद छोड़ बैठे थे। उन्हें भी लगने लगा था कि अब कोई सरकार की बड़ी मदद या बड़ी परियोजनाओं का जाल ही हमें उबार सकती है। कुछ हुआ भी इस विशेष क्षेत्र के लिए, इन बीते वर्षो में सरकारों के प्रयासों से। पर उससे बदहाली से निजात पाने का रास्ता नहीं बना।
विकासखण्ड चरखारी के सूपा गांव में किसान मुन्ना, महेश, जुगुल, किशोर व स्व.ओमप्रकाश चारों भाइयों के हिस्से में पांच-पांच बीघे जमीन होने के बावजूद भी इससे उनके परिवार को रोटी का इन्तजाम नहीं हो पाया और न ही इस जमीन के भरोसे मुकम्मिल तरीके से यहां रह सके। भाई जुगुल किशोर खेती की दुर्दशा देख मप्र के सतना में जाकर बीज-कीटनाशक विक्रेता प्राइवेट कम्पनी में काम करने लगे और धीरे-धीरे देवेन्द्रनगर कस्बे में खुद का व्यवसाय कर लिया और उसी की आमदनी से गांव में एक एकड़ जमीन खरीदने के साथ 4 एकड़ जमीन ठेके पर ले ली। इस जमीन को भाई मुन्ना बटाई पर करता है। मुन्ना के दो पुत्र हैं, बड़ा राजेन्द्र भी देवेन्द्र नगर में चाचा की कीटनाशक वाली दुकान पर चौदह माह तक बिना वेतन के काम सीखता रहा ताकि वह भी कहीं इसी व्यवसाय को कर ले। मुन्ना बताते हैं कि मैं अपनी उपजाऊ जमीन पर भी जब महाउट का पानी बरसा फिर भी पांच बीघे में 7-8 क्विंटल कुल मटर का उत्पादन ले पाया था। बाकी सालों में मैं अपनी पूरी जमीन में 3 क्विंटल से लेकर पांच क्विंटल तक चना का उत्पादन कर पाया हूं। पानी का मुकम्मिल प्रबन्ध होने की उम्मीद पर किसान मुन्ना कहतें है कि चार-पांच क्विंटल प्रति बीघा के हिसाब से पांच बीघे में 20-25 कुन्तल उत्पादन भी होगा और साग-सब्जी, गन्ना जैसी फसलों को लेकर दो फसलें आसानी से लेंगे।
किसान मुन्ना को जब फायदे की खेती का विकल्प मिला तो उसकी आंखों में चमक आ गई और आनन-फानन अपने परिवार के साथ खेत की गहराई वाले हिस्से में 25×25×3 मी. आकार के तालाब की संरचना में जुट गया। लघु सीमान्त व अनुसूचित वर्ग की श्रेणी में होने के कारण मुन्ना के तालाब निर्माण का खर्चा मनरेगा ने उठा लिया, तो साथ में 50-60 और श्रमिकों ने फावड़े चलाए।
तालाब निर्माण तो अभी आखिरी चरण में है पर किसान मुन्ना के परिवार की बनती फसल विविधिता भरी योजनाओं की हिलकोरे बिन पानी आए तालाब में भी बखूबी देखी जा सकती है।
किसान का बेटा राजेन्द्र अब देवेन्द्र नगर से अपने घर वापस आकर तालाब में काम कर रहा है। उसे भरोसा है कि अपने तालाब के बनने से इसी जमीन में कई तरह से फायदे वाली फसलें करके पूरे परिवार को काम और रोटी का इन्तजाम मिलेगा। राजेन्द्र कहता है कि मैं 9 वीं कक्षा तक ही पढ़ सका हूं आगे की पढ़ाई परिस्थितिवश नहीं कर सका। पर अपने छोटे भाई को पढ़ाने के लिए पूरा अवसर मिलने की उम्मीद हो गई है। मुन्ना की पत्नी श्रीमती मीरा अपनी भाग-दौड़ की मेहनतकश जिन्दगी से थक चुकी है। उनका मानना है कि अब इसी अपने तालाब की पाल पर घर बना कर खेत में मेहनत करेंगे तो आराम की रोटी मिलेगी।
संपर्क
श्री राजेन्द्र पुत्र मुन्ना ग्राम -सूपा,
विकासखण्ड -चरखारी -महोबा
मोबाइल-08934996502