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राज्यसभा टीवी, 27 जून 2013
हम सभी जानते हैं कि मानव सहित सभी प्राणी पंचतत्वों अर्थात ‘पृथ्वी’, ‘जल’, ‘अग्नि’, ‘वायु’ और ‘आकाश’ से बने हैं। मानव का तन और मन इन तत्वों से स्वतः स्फूवर्त और इनके असंतुलन से निष्क्रिय सा हो जाता है। प्रकृति ने इन पंचतत्वों को प्राणी मात्र के लिए बिना किसी भेदभाव के सुलभ कराया है।प्रकृति के विधान के अनुसार इन पर प्राणी मात्र का ही अधिकार है। परंतु आज के भौतिक युग में जहां विज्ञान ने इतनी प्रगति की है कि उसकी पहुंच चन्द्रमा व मंगल ग्रह तक हो गई है, वहीं औद्योगिकीकरण एवं उदारीकरण के कारण मनुष्य का एकमात्र उद्देश्य पैसा कमाना ही रह गया। पैसों की इस भूख ने उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर दी है और इतनी भ्रष्ट कर दी है कि आज वह जीवन अर्थात पानी का भी व्यापार करने में संकोच नहीं कर रहा। एक ओर जहां मनुष्य पानी का व्यापार करने पर आमादा है, वहीं दूसरी ओर हमारी अपनी सरकार भी इसको प्रोत्साहित करने में लगी है। बदलते जलवायु और जल के अधिकार के बारे दर्शाता यह वीडियो।