बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड से फसलों में बढ़ सकता है कीट प्रकोप

Submitted by editorial on Sat, 06/09/2018 - 12:07
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इंडिया साइंस वायर, 11 मई, 2018


डॉ. गुरु प्रसन्ना पांडीडॉ. गुरु प्रसन्ना पांडी वातावरण में लगातार बढ़ रही कार्बन डाइऑक्साइड के कारण फसल उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, पर इसके साथ ही फसलों के लिये हानिकारक कीटों की आबादी में भी बढ़ोत्तरी हो सकती है।

धान की फसल और उसमें लगने वाले भूरा फुदका कीट पर कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ी हुई मात्रा के प्रभावों का अध्ययन करने के बाद कटक स्थित राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान और नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान के वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुँचे हैं।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वर्ष 2050 में कार्बन डाइऑक्साइड 550 पीपीएम और वर्ष 2100 में 730–1020 पीपीएम तक पहुँच जाएगी। भविष्य में फसलों और कीटों दोनों के अनुकूलन पर इसका प्रभाव पड़ सकता है।
 

अध्ययन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड की अलग-अलग दो तरह की मात्राओं क्रमशः 390 से 392 पीपीएम और 578 से 584 पीपीएम के वातावरण में चावल की पूसा बासमती-1401 किस्म को बरसात के मौसम के दौरान 2.5 मीटर ऊँचे और तीन मीटर चौड़े ऊपर से खुले हुए कक्ष में नियंत्रित परिस्थितियों में उगाया गया था। समयानुसार पौधों को भूरा फुदका (ब्राउन प्लांट हापर) कीट, जिसका वैज्ञानिक नाम नीलापर्वता लुजेन्‍स है, से संक्रमित कराया गया।

शोधकर्ताओं ने फसल उत्पादन के साथ-साथ कीट के निम्फों (शिशुओं), नर कीटों और पंखयुक्त व पंखहीन दोनों प्रकार के मादा कीटों की संख्या सहित उनके जीवनचक्र पर कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़े स्तर के प्रभावों का अध्ययन किया है।

भूरा फुदका कीट

अध्ययनकर्ताओं में शामिल वैज्ञानिक डॉ. गुरु प्रसन्ना ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “सामान्यतः अधिक कार्बन डाइऑक्साइड वाले वातावरण में उगने वाले पौधों की पत्तियों में कार्बन व नाइट्रोजन का अनुपात बढ़ जाता है, जिससे पौधों में प्रोटीन की सान्द्रता कम हो जाती है। धान के पौधों में प्रोटीन की कमी की पूर्ति के लिये कीट अत्यधिक मात्रा में पोषक तत्वों को चूसना शुरु कर देते हैं। कीटों की बढ़ी आबादी और चूसने की दर में वृद्धि के कारण धान की फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है और पैदावार कम हो जाती है। अनुमान लगाया गया है कि धान की फसल के उत्पादन में इस तरह करीब 29.9–34.9 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।” अध्ययन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़े हुए स्तर से धान की उपज पर सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला और उत्पादन में 15 प्रतिशत बढ़ोत्तरी जरूर दर्ज की गई, पर इसके साथ ही फसल में लगने वाले भूरा फुदका कीट की आबादी भी दो से तीन गुना बढ़ गई।

कीट संक्रमण से जली हुई धान की फसल

शोधकर्ताओं ने पाया कि धान के पौधों में बालियों की संख्या में 17.6 प्रतिशत, पकी बालियों की संख्या में 16.2 प्रतिशत, बीजों की संख्या में 15.1 प्रतिशत और दानों के भार में 10.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। इससे कीटों की प्रजनन क्षमता में हुई 29 से 31.6 प्रतिशत बढ़ोत्तरी के कारण इनकी संख्या में भी 97 से 150 कीट प्रति पौधे की वृद्धि दर्ज की गई। हालांकि, बढ़ी हुई कार्बन डाइऑक्साइड के कारण नर व मादा दोनों कीटों की जीवन क्षमता में कमी पायी गई। एक तरफ भारी संख्या में कीट तो उत्पन्न जाते हैं, लेकिन वे अपेक्षाकृत कम समय तक जीवित रह पाते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार, चावल भारत सहित एशिया एवं विश्व के बहुत से देशों का मुख्य भोजन है। विश्व में मक्का के बाद धान ही सबसे अधिक उत्पन्न होने वाला अनाज है। ऐसे में भविष्य में बढ़ी हुई कार्बन डाइऑक्साइड का प्राकृतिक तौर पर लाभ उठाने के लिये भूरा फुदका जैसे कीटों के नियंत्रण हेतु उचित प्रबन्धन की आवश्यकता पड़ेगी। इस दिशा में अभी अध्ययनों की बहुत कमी है।

शोध हेतु प्रयुक्त खुला कक्ष (ओटीसी)

भविष्य में भूरा फुदका के कारण धान की फसल खतरे में पड़ सकती है। कम जीवन काल, उच्च प्रजनन क्षमता और शारीरिक संवेदनशीलता के कारण ये कीट परिवर्तित होती जलवायु के अनुसार आसानी से स्वयं को रूपान्तरित कर सकते हैं। इसलिये निकट भविष्य में कीटों की रोकथाम, उचित प्रबन्धन के लिये बेहद सतर्कता बरतनी होगी।

अध्ययनकर्ताओं की टीम में डॉ. गुरु प्रसन्ना पांडी के अलावा सुभाष चंदर, मदन पाल और पी.एस. सौम्या शामिल थे। यह अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है।
 

कक्ष के अन्दर उगाये गये पौधे