बेहतर जल निकासी थी प्राचीनकाल के जलमहल में

Submitted by RuralWater on Thu, 08/20/2015 - 13:28

धार। जिले के ग्राम सादलपुर स्थित जलमहल में हर साल बाढ़ का पानी भर रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन आने वाली इस इमारत को विभाग के कर्मचारियों द्वारा संरक्षित तो किया जा रहा है किन्तु पानी के कारण इसकी स्थिति खराब हो सकती है।

इस बारिश के कारण जलमहल के कुछ हिस्सों में जहाँ चुने की जुड़ाई से कुछ स्तम्भ टिके हैं वहाँ प्रभाव पड़ा है। बताया जाता है कि इस जलमहल के आसपास की पीचिंग पत्थर से की गई जिससे कि पानी का प्रभाव नहीं पड़े। इस महल की बनावट में भी इस बात का ध्यान रखा गया कि पानी आने पर वह सर्पिलाकार जलनिकासी वाली संरचना से पानी बाहर हो जाए।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग 1951 से सतत इसकी देखभाल कर रहा है। अपने आप में यह महल अद्भुत होने के साथ-साथ वास्तुकला का एक उम्दा उदाहरण है। मुगलकाल में बनाए गए इस महल की अब स्थिति बदली है। इस मानसून सत्र में लगातार बाढ़ का पानी पहुँचने से महल के कुछ हिस्से को प्रभाव पड़ा है।

बताया जाता है कि इस जलमहल के आसपास की पीचिंग पत्थर से की गई जिससे कि पानी का प्रभाव नहीं पड़े। इस महल की बनावट में भी इस बात का ध्यान रखा गया कि पानी आने पर वह सर्पिलाकार जलनिकासी वाली संरचना से पानी बाहर हो जाए। इन सबके बीच चिन्ता इस बात की है कि जिन स्थानों पर चुने से जुड़ाई हुई है।

उल्लेखनीय है कि पुराने जितने भी निर्माण है वे चुने की जुड़ाई से ही तैयार होते हैं। ऐसे में लगातार बारिश और उसमें भी बाढ़ का पानी पहुँच जाने से दिक्कत हो सकती है। चुने की जुड़ाई को पानी खराब कर सकता है जिससे कि महल पर भविष्य में खतरा पड़ सकता है। इस तरह की परेशानियों के लिये अभी से ध्यान देने की आवश्यकता है। वरना बड़ी परेशानी हो सकती है।
 

जलमहल का इतिहास


जिला मुख्यालय से उत्तरपूर्व की ओर करीब 28 किमी दूर ग्राम सादलपुर में जलमहल है। जो महू-नीमच फोरलेन पर स्थित है। गजट के अनुसार बागेड़ी नदी के बीच में बना हुआ यह प्राचीन महल उसके अवशेषों के कारण महत्त्वपूर्ण है।

माना जाता है कि जलमहल मांडू के सुल्तान नसीरुद्दीन खिलजी ने ईसापूर्व 1500 से 1512 के बीच निर्मित करवाया था। इसके स्तम्भ पर इस बात का उल्लेख मिला था कि अकबर ने सन् 1589 में दक्षिण की यात्रा करते हुए यहाँ पर विश्राम किया था। इससे ज्यादा और कोई विस्तृत इतिहास इसके बारे में उपलब्ध नहीं है।

1951 से लेकर अब तक में जलमहल को कोई नुकसान नहीं हुआ है। क्योंकि यहाँ पानी निकासी के लिये छोटी-छोटी संरचना बनी हुई है कि पानी बाहर निकल जाता है। लेकिन यह सही है कि जहाँ चुने की जुड़ाई हैं वे उखड़ सकती हैं। पानी का असर निश्चित रूप से होता है।

डीके रिछारिया, वरिष्ठ संरक्षण सहायक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग मांडू