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जनसत्ता, 13 फरवरी 2013
कुंभ की जल संसद में उठेगा गंगा और यमुना के पानी के संकट का सवाल
खेतों के बीचों-बीच पेप्सी व कोक जैसी निजी बाटलिंग कंपनियां व अन्य कारपोरेट बड़े-बड़े ट्यूबवेलों से पानी खींच कर खेती सुखा देते हैं और गरीब लोग सूखे का शिकार हो जाते हैं। उसके खिलाफ जनमत बनाने के लिए ही 13 फरवरी को कुंभ मेला मैदान में अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा ने जल संसद का आयोजन किया है। जल संसद नदियों का पानी सिंचाई से छीन कर मुनाफा कमाने वाली विदेशी व दूसरी बड़ी कंपनियों को दिए जाने का विरोध करेगी।लखनऊ, 12 फरवरी। कुंभ में बुधवार को जल संसद बुलाई गई है, जो गंगा-यमुना और संगम में साफ पानी की मांग के साथ नदियों के पानी के बेजा इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग करने जा रही है। अखिल भारतीय किसान मज़दूर संगठन की तरफ से बुलाई गई जल संसद में बड़ी कंपनियों के जरिए जल स्रोतों के दुरुपयोग और इसकी छूट दिए जाने का भी विरोध होगा।
संगठन ने कहा है कि जल संसद में जमनापार इलाके में यमुना नदी से जेपी समूह के दो ताप बिजलीघरों से 97 लाख लीटर पानी प्रति घंटा खींचने का मुद्दा उठेगा। इसकी वजह से जमनापार इलाके के दस लाख लोगों का जीवन प्रभावित होने का अंदेशा है। बारा बिजलीघर शुरू में 51.25 लाख लीटर प्रति घंटा और करछना 46 लाख लीटर पानी खींचेगा। बाद में बारा प्लांट 1980 मेगावाट से 3300 मेगावाट होने के बाद और पानी लेगा। पडुआ से लोहगरा तक 17 किलोमीटर लंबी छह फुट व्यास का पाइप इसके लिए बिछाया जा रहा है। इससे मई-जून में नदी पूरी तरह सूख जाएगी और आसपास शहरों और गांवों में जल स्तर में भारी गिरावट होगी। इसके कारण नदी में बालू खनन कछार की खेती, मछली पकड़ना, उतरवाई सभी काम बंद हो जाएंगे और लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
संगठन के महासचिव राजकुमार पथिक के मुताबिक बारा बिजलीघर प्रतिदिन 24 हजार टन कोयला जलाएगा और छह हजार टन राख पैदा करेगा जिसका भूगर्भ के पानी और वातावरण में फैलेगा और आठ किलोमीटर के दायरे में खेती नष्ट हो जाएगी। राख के तालाबों से मरकरी और लेड रिसेगा, जिससे भूगर्भ के पानी में जहर फैलेगा और यह पीने व खेती के लिए अयोग्य हो जाएगा।
केंद्र व राज्य सरकारें लंबे समय से ग्रीन तकनीकी, पर्यावरण पारस्थितिकी की रक्षा और पानी की रक्षा के अभियान चलाती रही हैं। जबकि उन्होंने खुद बड़ी कंपनियों को खनन करने व ताप बिजलीघर लगा कर खेती को उजाड़ने और वनों व नदियों को नष्ट करने की अनुमति दी है। देश में बिजली उत्पादन बढ़ाने के लिए सोलर तकनीक भारत जैसे अधिक सौर प्रकाश वाले देश के लिए सबसे अच्छी है यह ईंधन व पानी का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं करती। यह खेती को नष्ट नहीं करती और लोगों को विस्थापित भी नहीं करती।
जल संसद के आयोजकों का यह भी कहना है कि कुंभ में विभिन्न धार्मिक मठों व धर्म गुरुओं की तरफ से चलाया जा रहा स्वच्छ गंगा अभियान पूरी तरह दिखावा साबित होगा, अगर यह नदियों में पर्याप्त पानी देने की मांग नहीं उठाते। सीवेज ट्रीटमेंट प्लान अपने आप में हल नहीं है। राजनीतिक दल बड़ी कंपनियों द्वारा जल स्रोतों का अनियंत्रित दोहन करने की अनुमति देते रहे हैं।
इसके अलावा नई आर्थिक नीतियों ने वनों, भूमि और जल स्रोतों पर जनता के प्राधिकार को कमजोर किया है। विदेशी कंपनियों सहित बड़े कारपोरेटों व माफ़िया ठेकेदारों का नियंत्रण बढ़ाया है। टिहरी बांध जैसी सिंचाई परियोजनाओं का पानी भी दिल्ली जैसे महानगरों में पेयजल आपूर्ति के लिए कंपनियों को दिया गया है। खेतों के बीचों-बीच पेप्सी व कोक जैसी निजी बाटलिंग कंपनियां व अन्य कारपोरेट बड़े-बड़े ट्यूबवेलों से पानी खींच कर खेती सुखा देते हैं और गरीब लोग सूखे का शिकार हो जाते हैं। उसके खिलाफ जनमत बनाने के लिए ही 13 फरवरी को कुंभ मेला मैदान में अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा ने जल संसद का आयोजन किया है। जल संसद नदियों का पानी सिंचाई से छीन कर मुनाफा कमाने वाली विदेशी व दूसरी बड़ी कंपनियों को दिए जाने का विरोध करेगी।