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बिना माघ घिव खिचड़ी खाय, बिन गौने ससुरारी जाय।
बिन बरखा के पहिरे पउवा, कहै घाघ ये तीनों कउवा।।
शब्दार्थ- पउवा-कठनहीं, हवाई चप्पल की तरह काठ की बनी खड़ाऊँ जिसमें रस्सी की बद्धी लगी होती है।
भावार्थ- घाघ कहते हैं कि माघ के अतिरिक्त अन्य महीनों में खिचड़ी में घी मिलाकर खाने वाला, बिना गौना आये ससुराल जाने वाला, बिना बरसात आये कठनहीं पहनने वाले, ये तीनों मूर्ख होते हैं।