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सिटिज़न न्यूज़ सर्विस
संडीला विकास खण्ड, जनपद-हरदोई में ९७ राजस्व गांव में बी.पी.एल. व ए.पी.एल. परिवारों के लिए व्यक्तिगत परिवारों को शौचालयों का निर्माण हुआ | यह निर्माण वर्ष २००७ व २००८ में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत यह कार्य ग्राम पंचायत के सचिव व प्रधानों ने करवाया | इस कार्य के लिए सरकार द्वारा पन्द्रह सौ रूपये का अनुदान बी.पी.एल. परिवारों को दिया जाना था और ए.पी.एल. परिवारों को भी पन्द्रह सौ रूपये का अनुदान प्रति परिवार दिया जाना था | इस अनुदान की राशिः विकास खण्ड संडीला में अठहत्तर लाख चार हजार रुपया आई थी | यह राशिः बी.पी.एल. परिवारों को शौचालयों के नाम खर्च होनी थी जिसमें गरीब परिवारों व गांवों में गंदगी न हो |
खण्ड विकास अधिकारी संडीला से सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी माँगी तो खण्ड विकास अधिकारी ने बताया कि ब्लाक में सभी ग्राम पंचायतों में मैंने ५२०३ शौचालय बनवा दिए हैं जिसके तहत बी.पी.एल. परिवारों को, लगभग सभी को यानी हर परिवार में शौचालय निर्मित हो गये हैं | इस बात से आश्चर्य लगा कि ऐसा तो सम्भव नहीं होगा | आशा परिवार के कार्यकर्ता और हमने ब्लाक से अभिलेख निकलवा कर जाँच का कार्य शुरू कर दिया | मैं, आशा परिवार की एक टीम बनाकर गांव-गांव जाना शुरू किया | पहले ग्राम पंचायत उत्तरकोध में देखा कि १०८ शौचालय कागज पर बने दिखाए गए | यहाँ बी.पी.एल. परिवारों की संख्या भी १५१ है | यहाँ सभी बी.पी.एल परिवारों को शौचालय निर्मित हैं, यहाँ के सचिव कन्हैयालाल ने बताया कि हमारे ग्राम पंचायत में सभी बी.पी.एल. परिवारों को शौचालय बने हैं जबकि बी.पी.एल. परिवारों के यहाँ गए और जानकारी की तो गांव वालों ने कहा कि यहाँ शौचालय बनने की आप लोग बात करते हैं, यहाँ किसी को जानकारी तक नहीं है | सभी १५१ बी.पी.एल. परिवारों ने कसम खाकर कहा कि मैंने कोई शौचालय नहीं बनवाया है और न ही हमें पता है | बी.पी.एल परिवारों को तो पता नहीं है फिर हम लोगों ने ग्राम पंचायत के सदस्यों से यह जानकारी किया कि क्या पंचायत में शौचालय बनवाये गये हैं ? तो पंचायत सदस्यों ने यह लिखकर दिया कि इस पंचायत में एक भी शौचालय वर्ष २००७-२००८ में किसी का नहीं बना है और न तो इस सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के बारे में सचिव ने किसी पंच को बताया है | सभी पंचायत के सदस्यों का कहना है कि अगर हमारी पंचायत में शौचालयों के नाम से धन निकाला गया है तो यह गलत है, गलत ही नहीं खुला भ्रष्टाचार है | इस एक पंचायत उत्तरकोध में दो लाख चालीस हजार का पूरा भ्रष्टाचार देखने को मिला |
इसी प्रकार ग्राम पंचायत मांझगांव में दो सौ शौचालयों का निर्माण दिखाया गया जबकि यहाँ एक भी शौचालय नहीं बना पाया गया | मैंने गांव के लोगों से पूछा तो पता चला कि यह शौचालय वर्ष २००६ में आये थे जिनका निर्माण भी नहीं करा सका था | वही शौचालयों का निर्माण करवा रहा हूँ | इस पंचायत में भी गांव के लोग व पंचायत मित्र की बातों से साफ़ खुलासा हो गया कि यहाँ के दो सौ शौचालयों का निर्माण नहीं हुआ है |
इसी प्रकार बराही ग्राम पंचायत में भी शौचालयों का निर्माण नहीं हुआ | यहाँ के प्रधान ने स्वीकार किया कि मैं शौचालय नहीं बनवा पाया हूँ क्योंकि हमें धन नहीं मिल पाया है केवल सीटें मिली थीं वो पड़ी हैं | सामग्री न मिलने से यह कार्य मेरा अधूरा है यहाँ भी दो सौ शौचालय कागज पर निर्मित हैं |
इसी प्रकार से ग्राम पंचायत मंडौली में तीन सौ शौचालय निर्मित बताए गये जहाँ पर एक भी शौचालय नहीं है, यहाँ भी बी.पी.एल. परिवारों से सम्पर्क किया तो लोगों ने बताया कि हमारे यहाँ वर्ष २००७-२००८ में कोई शौचालय नहीं बने हैं | यहाँ के बी.डी.सी. सदस्य से बातचीत हुई तो यह बताया कि हमारे यहाँ वर्ष २००५ व २००६ में १५ शौचालय बने थे इसके बाद मेरी पंचायत में कोई शौचालय नहीं बने हैं और प्रधानपति श्रीराम से हुई बात से पता चला कि यहाँ पर कोई शौचालय नहीं बने हैं क्योंकि प्रधानपति ने कहा कि मैंने कुछ सीटें बटवा दिया है | सामग्री न मिलने के कारण यह कार्य अधूरा ही है, यह कार्य अभी हो नहीं पाया है |
जब मैं ग्राम पंचायत ककराली में शौचालयों की जानकारी करने गया तो वहां पर पंचायत सचिव कन्हैयालाल से मुलाकात हुई तो उन्होंने कहा कि आप लोग हमारे पीछे पड़े हैं मैं पांच पंचायतों का सचिव हूँ | अप्प लोग मेरी ही पांच पंचायत देख रहे हैं, मैंने तो शौचालय ही नहीं बनवाये हैं, विधायक से जानकारी करो तो आपको पता चलेगा | पंचायत सचिव की बात से स्पष्ट हो गया कि ब्लाक की किसी भी पंचायत में शौचालय जमीन पर तो नहीं, कागज पर जरुर बने हैं |
आशा आश्रम की टीम गांव-गांव जाकर अनेक लोगों से जानकारी किया जिससे यह स्पष्ट हुआ कि सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान सफ़ेद हाथी नजर आया, नमूने के तौर पर उत्तरकोध, मांझ-गांव, बराही, ,ककराली, मंडौली आदि पंचायतों का सर्वे किया गया जहाँ पर एक भी शौचालय निर्मित नहीं हैं |वर्ष २००७-२००८ में बी.पी.एल परिवारों के नाम से शौचालय बनवाये जाने के लिए ७८ लाख ४ हजार ५०० रूपये का खुला भ्रष्टाचार साबित हुआ जिसकी जाँच के लिए प्रशासन व जिला प्रशासन को भी अवगत कराया जा चुका है | उपरोक्त तथ्यों से हमें लगता है कि सरकारी कर्मचारियों को गन्दगी जमीन पर कम, कागज में ज्यादा करनी पड़ती है| इसलिए सरकारी कर्मचारी शौचालय कागज पर होना ज्यादा जरुरी समझते हैं बजाय जमीन पर |
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (सी.एन.एस) आशा आश्रम,लालपुर बंजरा,अतरौली,हरदोई
खण्ड विकास अधिकारी संडीला से सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी माँगी तो खण्ड विकास अधिकारी ने बताया कि ब्लाक में सभी ग्राम पंचायतों में मैंने ५२०३ शौचालय बनवा दिए हैं जिसके तहत बी.पी.एल. परिवारों को, लगभग सभी को यानी हर परिवार में शौचालय निर्मित हो गये हैं | इस बात से आश्चर्य लगा कि ऐसा तो सम्भव नहीं होगा | आशा परिवार के कार्यकर्ता और हमने ब्लाक से अभिलेख निकलवा कर जाँच का कार्य शुरू कर दिया | मैं, आशा परिवार की एक टीम बनाकर गांव-गांव जाना शुरू किया | पहले ग्राम पंचायत उत्तरकोध में देखा कि १०८ शौचालय कागज पर बने दिखाए गए | यहाँ बी.पी.एल. परिवारों की संख्या भी १५१ है | यहाँ सभी बी.पी.एल परिवारों को शौचालय निर्मित हैं, यहाँ के सचिव कन्हैयालाल ने बताया कि हमारे ग्राम पंचायत में सभी बी.पी.एल. परिवारों को शौचालय बने हैं जबकि बी.पी.एल. परिवारों के यहाँ गए और जानकारी की तो गांव वालों ने कहा कि यहाँ शौचालय बनने की आप लोग बात करते हैं, यहाँ किसी को जानकारी तक नहीं है | सभी १५१ बी.पी.एल. परिवारों ने कसम खाकर कहा कि मैंने कोई शौचालय नहीं बनवाया है और न ही हमें पता है | बी.पी.एल परिवारों को तो पता नहीं है फिर हम लोगों ने ग्राम पंचायत के सदस्यों से यह जानकारी किया कि क्या पंचायत में शौचालय बनवाये गये हैं ? तो पंचायत सदस्यों ने यह लिखकर दिया कि इस पंचायत में एक भी शौचालय वर्ष २००७-२००८ में किसी का नहीं बना है और न तो इस सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के बारे में सचिव ने किसी पंच को बताया है | सभी पंचायत के सदस्यों का कहना है कि अगर हमारी पंचायत में शौचालयों के नाम से धन निकाला गया है तो यह गलत है, गलत ही नहीं खुला भ्रष्टाचार है | इस एक पंचायत उत्तरकोध में दो लाख चालीस हजार का पूरा भ्रष्टाचार देखने को मिला |
इसी प्रकार ग्राम पंचायत मांझगांव में दो सौ शौचालयों का निर्माण दिखाया गया जबकि यहाँ एक भी शौचालय नहीं बना पाया गया | मैंने गांव के लोगों से पूछा तो पता चला कि यह शौचालय वर्ष २००६ में आये थे जिनका निर्माण भी नहीं करा सका था | वही शौचालयों का निर्माण करवा रहा हूँ | इस पंचायत में भी गांव के लोग व पंचायत मित्र की बातों से साफ़ खुलासा हो गया कि यहाँ के दो सौ शौचालयों का निर्माण नहीं हुआ है |
इसी प्रकार बराही ग्राम पंचायत में भी शौचालयों का निर्माण नहीं हुआ | यहाँ के प्रधान ने स्वीकार किया कि मैं शौचालय नहीं बनवा पाया हूँ क्योंकि हमें धन नहीं मिल पाया है केवल सीटें मिली थीं वो पड़ी हैं | सामग्री न मिलने से यह कार्य मेरा अधूरा है यहाँ भी दो सौ शौचालय कागज पर निर्मित हैं |
इसी प्रकार से ग्राम पंचायत मंडौली में तीन सौ शौचालय निर्मित बताए गये जहाँ पर एक भी शौचालय नहीं है, यहाँ भी बी.पी.एल. परिवारों से सम्पर्क किया तो लोगों ने बताया कि हमारे यहाँ वर्ष २००७-२००८ में कोई शौचालय नहीं बने हैं | यहाँ के बी.डी.सी. सदस्य से बातचीत हुई तो यह बताया कि हमारे यहाँ वर्ष २००५ व २००६ में १५ शौचालय बने थे इसके बाद मेरी पंचायत में कोई शौचालय नहीं बने हैं और प्रधानपति श्रीराम से हुई बात से पता चला कि यहाँ पर कोई शौचालय नहीं बने हैं क्योंकि प्रधानपति ने कहा कि मैंने कुछ सीटें बटवा दिया है | सामग्री न मिलने के कारण यह कार्य अधूरा ही है, यह कार्य अभी हो नहीं पाया है |
जब मैं ग्राम पंचायत ककराली में शौचालयों की जानकारी करने गया तो वहां पर पंचायत सचिव कन्हैयालाल से मुलाकात हुई तो उन्होंने कहा कि आप लोग हमारे पीछे पड़े हैं मैं पांच पंचायतों का सचिव हूँ | अप्प लोग मेरी ही पांच पंचायत देख रहे हैं, मैंने तो शौचालय ही नहीं बनवाये हैं, विधायक से जानकारी करो तो आपको पता चलेगा | पंचायत सचिव की बात से स्पष्ट हो गया कि ब्लाक की किसी भी पंचायत में शौचालय जमीन पर तो नहीं, कागज पर जरुर बने हैं |
आशा आश्रम की टीम गांव-गांव जाकर अनेक लोगों से जानकारी किया जिससे यह स्पष्ट हुआ कि सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान सफ़ेद हाथी नजर आया, नमूने के तौर पर उत्तरकोध, मांझ-गांव, बराही, ,ककराली, मंडौली आदि पंचायतों का सर्वे किया गया जहाँ पर एक भी शौचालय निर्मित नहीं हैं |वर्ष २००७-२००८ में बी.पी.एल परिवारों के नाम से शौचालय बनवाये जाने के लिए ७८ लाख ४ हजार ५०० रूपये का खुला भ्रष्टाचार साबित हुआ जिसकी जाँच के लिए प्रशासन व जिला प्रशासन को भी अवगत कराया जा चुका है | उपरोक्त तथ्यों से हमें लगता है कि सरकारी कर्मचारियों को गन्दगी जमीन पर कम, कागज में ज्यादा करनी पड़ती है| इसलिए सरकारी कर्मचारी शौचालय कागज पर होना ज्यादा जरुरी समझते हैं बजाय जमीन पर |
सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (सी.एन.एस) आशा आश्रम,लालपुर बंजरा,अतरौली,हरदोई