सरकार के तमाम कार्यों की तरह राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून (नरेगा) भी भ्रष्टाचार में लिप्त होता जा रहा है। हालांकि पिछले वर्ष एक कर्मकांड की तरह इस कार्यक्रम के नाम में महात्मा गांधी का नाम जोड़कर इसे नरेगा से मनरेगा बना दिया गया। मनरेगा हालांकि पंचायत को केन्द्र में रखकर क्रियान्वित की जाती है परन्तु योजनाओं को स्वीकृत कराने को लेकर, क्रियान्वयन व भुगतान में नौकरशाही के दखल के कारण यह योजना कमीशनखोरी व फर्जीवाड़े के बड़े साधन के रूप में विकसित होने लगी है।
महिला सशक्तीकरण को लेकर ‘महिला समाख्या’ व उसके द्वारा सृजित ‘महिला जागृति संघ’ पिछले एक दशक से भी अधिक समय से कार्यरत हैं। उत्तराखण्ड में महिलाएं विशेषकर ग्रामीण महिलाओं की स्थिति दयनीय है। जीविकोपार्जन का जिम्मा महिलाओं पर होने व पुरुषों की शराब की लत एक बड़ी सामाजिक व पारिवारिक समस्या है। महिला समाख्या उत्तराखण्ड के छः जिलों-नैनीताल, उधमसिंह नगर, चम्पावत, पौड़ी, उत्तरकाशी व टिहरी में कार्यरत है। क्योंकि गाँवों में महिलाओं की संख्या व कार्यों में भागीदारी अधिक है। महिला समाख्या द्वारा योजना के क्रियान्वयन में हस्तक्षेप इस उद्देश्य से किया जा रहा है कि इस योजना को ग्रामीणों की बेहतरी के लिए एक साधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।
काम की जरूरत हमें काम मिलना चाहिये
रोजगार गारण्टी में काम मिलना चाहिये।
रोटियों के टुकड़ों की भीख नहीं चाहिये
जनता का अधिकार है अधिकार पूरा चाहिये।
एक दिन ना दो दिन ना सौ दिन चाहिये
रोजगार गारण्टी में काम होना चाहिये।
वक्त की बराबरी काम की बराबरी
महिला और पुरुषों की मजदूरी भी बराबरी
निगरानी समिति को सक्रिय होना चाहिये
रोजगार गारण्टी में काम मिलना चाहिये।
अवसर भी है मौका भी समान अधिकार है
बैठकों में बढ़चढ़ कर महिलाओं का प्रतिभाग है
जल-जंगल-जमीन के प्रस्ताव होने चाहिये
रोजगार गारण्टी में काम मिलना चाहिये।
- सरोजनी
मनरेगा एक योजना नहीं बल्कि एक कानून है। जिसका उद्देश्य गाँवों में उत्पादक साधन, पर्यावरण व महिला सशक्तीकरण का विकास हो व पलायन रुके। इस कानून में एक प्रावधान जन सुनवाई का है यानी जनता बैठकर अपनी समस्याओं को उठाये व उसके हल ढूंढ़े जायें। इसी क्रम में महिला समख्या नैनीताल द्वारा इस वर्ष का महिला दिवस (8 मार्च) को मनरेगा-जन सुनवाई के रूप में मनाने का निश्चय किया, जिसका आयोजन नैनीताल के फ्लैटस में किया गया।
सभा में एक जूरी का गठन किया गया था, जिसमें इस कानून को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ज्यां द्रेज को आना था। लेकिन बिहार में एक मनरेगा कार्यकर्ता कामरेड नियामत अंसारी की हत्या हो जाने के कारण उन्हें बिहार जाना पड़ा। जूरी के अन्य सदस्यों में उच्चतम न्यायालय के कमिश्नर की सलाहकार अरुन्धती धुरू,‘संगतिन’ सीतापुर की ऋचा सिंह, जागृति महासंघ रामगढ़ की रमा बिष्ट, डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट, महिला समाख्या की गीता गैरोला, उत्तराखण्ड ग्राम्य विकास संस्थान के उप निदेशक डॉ. विजय शुक्ल व उत्तराखण्ड महिला मंच की कमला पंत शामिल थी।
यहाँ यह भी उल्लेख करना आवश्यक है कि रामगढ़ ब्लॉक में मनरेगा में हो रही धाँधलियों पर जब महिला समाख्या के सदस्यों ने आपत्ति की तो नथुवाखान की प्रधान के पति द्वारा उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई। जिस कारण पुलिस में प्राथमिकी दर्ज हुई व प्रधान पति द्वारा अंततः क्षमा मांगने के कारण मामला समाप्त हो गया। इसी तरह कई ग्राम पंचायतों में अन्य योजनाओं की तरह प्रधानों की मनमानी की घटनाएं सामने आयी हैं। जन सुनवाई में जहाँ उत्तराखण्ड के छः जिलों में यानि लगभग आधे क्षेत्र की महिलाओं ने अपने-अपने क्षेत्र में मनरेगा की धांधलियों व भ्रष्टाचार की बात उठायी तो यह प्रतीत हुआ कि मनरेगा सरकारी अधिकारियों की भ्रष्टाचार-वृत्ति की भेंट चढ़ रहा है।
महिलाओं का कहना था कि यह योजना जो कि कानून है, से उन्हें आशा थी कि इससे पहाड़ों से पलायन रुकेगा, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे व महिलाओं की मुश्किलें कम होंगी। अलग-अलग स्थानों पर जो अनिमित्तताए सामने आयी हैं उससे घोर निराशा हुई है। इन अनिमियतताओं में मुख्य हैं-
1. योजना का प्रचार-प्रसार न होना।
2. जॉब कार्ड जो कि रोजगार का मुख्य आधार है, के बनवाने में उत्पन्न कठिनाई व जॉब कार्ड बनने पर भी लोगों को न मिलना।
3. जॉब कार्डों में पंजीकरण संख्या न होना।
4. नाबालिग बच्चों के नाम जॉब कार्ड बनवाना।
5. एक ही परिवार को दो-दो जॉब कार्ड जारी करना।
6. महिलाओं को 100 रु. के स्थान पर 43 रु. के हिसाब से मजदूरी भुगतान।
7. काम करवाने के बाद भी बजट न होने के कारण भुगतान न मिलना।
8. कई गाँवों में योजना प्रारम्भ ही न होना, नहीं बेरोजगारी भत्ता मिलना।
9. कार्यों की गुणवत्ता निम्न श्रेणी का पाया जाना।
10. महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा अधिक श्रमसाध्य कार्य देना।
11. बिना कमीशन अभियंताओं द्वारा एम.बी. में प्रविष्टि न करना।
इस प्रकार की शिकायतों से लगता है कि मनरेगा को उसके उद्देश्य से भटकाने की सुनियोजित कोशिशें हो रही हैं। सामाजिक कार्यकर्ता मनरेगा को कोई साध्य नहीं बल्कि सामाजिक बदलाव के लिए असंगठित मजदूरों को संगठित करने का जरिया मानते हैं। इसी तरह ग्राम स्तर के कई विकास कार्य जो आज तक नौकरशाह-माफिया-ठेकेदारों द्वारा हड़प लिये जाते थे अब मनरेगा के माध्यम से होने से उनकी नींद उड़ी है। बिहार में का. नियामत अंसारी व ललित मेहता जैसे समर्पित कार्यकर्ताओं की हत्याऐं इसी का उदाहरण हैं।
डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट ने छठे वेतन आयोग के बाद कर्मचारियों की तनख्व़ाऐं दो गुनी से तीन गुनी होने के बावजूद भी मनरेगा की दरों को न बढ़ाये जाने पर आपत्ति की।
अरुन्धती धुरु ने मनरेगा को लेकर जनता की ओर से किये गये सवालों का जवाब दे रहे उत्तराखण्ड ग्राम विकास संस्थान के उप निदेशक विजय शुक्ल की बातों से क्षुब्ध होकर उन्हें मनरेगा सम्बन्धी जानकारी बढ़ाने की सलाह दी। उन्होंने शंका व्यक्त की कि वर्तमान बजट में मनरेगा के लिए आबंटन कहीं इस कार्यक्रम को धीरे-धीरे बंद ही न कर दे। यह अधिकार हमने लड़कर लिया है कोई भीख नहीं। इसलिए हम संघर्ष कर इस अधिकार को विस्तृत और कारगर बनायंेगे।उत्तराखण्ड में अभी मनरेगा प्रारंभिक चरण में है। ऐसे समय ग्रामीण महिलाओं द्वारा एकजुट होकर हस्तक्षेप करना पहला महत्वपूर्ण कदम है। नैनीताल के फ्लैट्स में उत्तराखण्ड के विभिन्न भागों से आयी महिलाओं की महिला दिवस के दिन की इस हुँकार से शायद सरकार की नींद खुले और इस कार्यक्रम में फैल रहे भ्रष्टाचार पर शिकंजा कसा जा सके।