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राष्ट्रीय शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान केंद्र, (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद), भीमताल- 263136, जिला- नैनीताल (उत्तराखंड)
हिमालय के कुमाऊँ क्षेत्र को छकाता अथवा पश्चिम-मूर क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में विभिन्न आकार की सुन्दर शीतजलीय झीलें विद्यमान हैं। जैसे कि नैनीताल, भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, पन्नाताल (गरुड़ताल) एवं खुरपाताल में वर्षभर जल उपलब्ध रहता है जबकि सरियाताल, मलवाताल, सुखाताल, एवं खोरियाताल, केवल वर्षाऋतु के बाद ही झील का रूप ले लेती हैं एवं ग्रीष्मकाल में सूख जाती हैं। नलदमयन्ती झील जो कि प्राकृतिक रूप से ग्राम्य समाज द्वारा निर्मित है। महासीर प्रजाति की मत्स्य सम्पदा को समीप से अवलोकन करने के लिये एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में विद्यमान हैं।
वर्तमान में भीमताल झील की जलीय पारिस्थितिकी का विभिन्न तरह के प्रदूषण से निरंतर ह्रास हो रहा है। जिसके कारण इस प्रमुख झील की मत्स्य जैव विविधता के ऊपर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है। सन 1989-1993 तक के अध्ययन के शोध निष्कर्ष के आधार पर भीमताल झील में बीस मत्स्य प्रजातियों की उपलब्धता सुनिश्चित की गई जिसके अंतर्गत महासीर साधारण कार्प एवं वृहद कार्प मत्स्य की जनसंख्या 76.2 प्रतिशत, 23.3 प्रतिशत एवं 0.54 प्रतिशत क्रमश: पायी गयी।
महासीर में टोर पुटिटोरा का साइज (300-670 मिमी. लम्बाई एवं वजन 250-3000 ग्राम) के साथ-साथ लगभग 37.1 प्रतिशत टोर पुटिटोरा की उपलब्धता केवल 300-350 मिमी. के लम्बाई आकार में प्राप्त हुई। केवल मात्र कुछ पुटिटोरा जिनकी लम्बाई, आकार 920-1210 मिमी. एवं वजन 8.0-16.5 किग्रा. तक भी रिकार्ड किया गया। इस महासीर जनसंख्या के आंकड़े के आधार पर केवल 26.8 प्रतिशत मादा महासीर से ही अण्डे प्रजनन के लिये प्राप्त हो सके एवं प्रजननकाल के भी वर्ष में मुख्यत: दो बार (अप्रैल-मई) एवं (अगस्त-सितम्बर) निर्धारित किया गया। उपरोक्त प्रजनन काल में अण्डों के आकार भी विभिन्न आकार में एवं अण्डों की संख्या दर भी विभिन्न संख्या में उपलब्ध हो सकी।
पुटिटोर महासीर मत्स्य की अण्ड संख्या प्रति मादा मछली के आकार एवं वजन के अनुसार 1,000 से 10,000 संख्या के हिसाब से प्राप्त हुई। उपरोक्त शोध आंकड़े महासीर मत्स्य प्रजाति के पुन:स्थापन के लिये प्रजननक क्षेत्रों का विकास प्राथमिकता से करना होगा जिससे महासीर हेचरी के लिये प्रजननक उपलब्ध हो सकें एवं महासीर संरक्षण के लिये बीज, अंगुलिकाएँ उत्तराखंड की विभिन्न जल स्रोतों में संरक्षित कर महासीर मत्स्य प्रजाति को संकटग्रस्त श्रेणी से बाहर निकाल मत्स्य पर्यटन के साथ समन्वित किया जा सके।
लेखक परिचय
देवेन्द्र सिंह मलिक
जन्तु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार (उत्तराखंड)-249404