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‘बिन पानी सब सून’ पुस्तिका से साभार, 5 जून 2016
जो जीवन की
धूल बाँटकर बड़ा हुआ है
तूफानों से लड़ा
और फिर खड़ा हुआ है
जिसने सोने के खोदा
लोहा मोड़ा है
वह रवि के रथ का घोड़ा है
वह जन
मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा
केदारनाथ अग्रवाल
सूखे का बुन्देलखण्ड के जीवन पर गहरा असर दिखाई देता है। खेत सूखे पड़े हैं, गाँवों में पीने का पानी नहीं है और रोजगार की तलाश में लोगों को दर-दर भटकना पड़ रहा है। इस तरह बुन्देलखण्ड के लोगों के जीवन जीने के अधिकार का हनन हो रहा है। आखिर यह सवाल सभी के मन में है कि बुन्देलखण्ड को सूखे से मुक्ति मिलेगी या नहीं, और यदि मिलेगी तो कब व कैसे?
इसी सवाल का उत्तर तलाशने के लिये यह जरूरी है कि बुन्देलखण्ड में सूखे स्थिति को परखा जाये और उसे सामने लाकर समाज के विभिन्न तबकों, सरकार, प्रशासन, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विशेषज्ञों और संस्था संगठनों के साथ मिलकर उपाय के रास्ते तलाशे जाएँ। इसी जरूरत को देखते हुए प्रस्तुत अध्ययन की अवधारणा सामने आई।
उपरोक्त सन्दर्भ में यह देखने की आवश्यकता है कि बुन्देलखण्ड में सूखे और अकाल से लोगों की आजीविका किस तरह प्रभावित हुई है? क्योंकि आजीविका का सवाल लोगों के पोषण, स्वास्थ्य और जीवन स्तर से जुड़ा है। अत: प्रस्तुत अध्ययन में आजीविका के सवाल को उसके विभिन्न आयामों के परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयास किया गया, जिसमें खेती, रोजगार की उपलब्धता, पलायन शामिल है। इसके साथ ही सूखाग्रस्त क्षेत्रों में 100 से बढ़ाकर 150 दिनों की रोजगार की गारंटी वाले मनरेगा कानून के क्रियान्वयन की स्थिति को परखने का प्रयास भी प्रस्तुत अध्ययन में किया गया।
बुन्देलखण्ड के गाँवों में पेयजल की स्थिति और खाद्य सुरक्षा के आकलन को भी इसमें शामिल किया गया। यह भी एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि सूखे की परिस्थिति ने समाज के वंचित तबकों और महिलाओं को किस तरह प्रभावित किया? साथ ही यह भी देखने की जरूरत है कि राज्य द्वारा इस सन्दर्भ में क्या कदम उठाए गए और जमीनी स्तर पर उसके क्रियान्वयन की क्या स्थिति है? प्रस्तुत अध्ययन के माध्यम से इन्हीं सवालों के उत्तर तलाशने का प्रयास किया गया।
अध्ययन के उद्देश्य
उपरोक्त पृष्ठभूमि में प्रस्तुत अध्ययन को निम्नलिखित उद्देश्यों पर केन्द्रित किया गया।
1. बुन्देलखण्ड में सूखे की स्थिति का मानव विकास के प्रमुख आयामों पर पड़ रहे प्रभाव का आकलन करना।
2. सूखे के कारण बुन्देलखण्ड के लोगों पर पड़ रहे असर को जानना। इसमें ग्रामीणों, समाज के वंचित तबकों और महिलाओं के जीवन पर प्रभाव को समझना।
3. सूखे की स्थिति में विभिन्न सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन तथा उसके परिणामों को परखना।
4. सूखे से निपटने के उपाय तलाशना।
अध्ययन विधि
प्रस्तुत अध्ययन हेतु मुख्य रूप से केन्द्रित समूह चर्चा और अवलोकन की विधि अपनाई गई। इस के अन्तर्गत अध्ययन के लिये चुने गए गाँवों में अध्ययन दल के साथियों ने सूखे और उसके मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों पर केन्द्रित सवालों पर ग्रामवासियों से चर्चा की। इस दौरान खेती-किसानी, आजीविका के प्रमुख आयाम, पेयजल, पशुओं की स्थिति, रोजगार की उपलब्धता, पलायन, खाद्य सुरक्षा पर केन्द्रित 25 सवालों पर चर्चा की गई।
केन्द्रित समूह चर्चा के लिये सबसे पहले कार्यकर्ताओं द्वारा गाँव का भ्रमण कर वहाँ मौजूदा स्थिति का अवलोकन किया गया और इसी दौरान लोगों को गाँव के किसी एक सार्वजनिक स्थान पर एकत्र होने के लिये आमंत्रित किया गया। इसमें महिलाओं की उपस्थिति का विशेष प्रयास किया गया। समुदाय के इकट्ठे होने के बाद सूखे पर केन्द्रित सवालों पर बातचीत शुरू की जाती थी।
चर्चा को संचालित करते समय इस बात का खास ख्याल रखा गया सभी को अपनी बात कहने का मौका मिले और अध्ययन दल द्वारा सभी की बातों को ध्यान से सुना जाये और लिखा जाये। चर्चा के बाद गाँव में उपलब्ध जनप्रतिनिधियों जैसे पंच-सरपंच से भी चर्चा की गई, साथ ही विभिन्न सार्वजनिक सेवाओं जैसे स्कूल में मध्यान्ह भोजन, आँगनवाड़ी, पीडीएस दुकान तक पहुँच कर वहाँ उपलब्ध सर्विस प्रोवाइडर्स से भी चर्चा की गई।
इस तरह अध्ययन क्षेत्र के 66 गाँवों में कुल 66 केन्द्रित समूह चर्चाओं का आयोजन किया गया। इस दौरान कुछ खास परिस्थितियों और घटनाओं को भी गहराई से समझकर केस अध्ययन भी किया गया।
इस तरह प्रस्तुत अध्ययन में ग्रामीण समुदाय की आवाज को प्रमुखता से रखा गया और उसका विश्लेषण कर स्थिति की वास्तविकता को समझने का प्रयास किया गया।
अध्ययन क्षेत्र
प्रस्तुत अध्ययन में मध्य प्रदेश में शामिल बुन्देलखण्ड के जिलों को शामिल किया गया। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह, पन्ना एवं दतिया जिला बुन्देलखण्ड क्षेत्र के अन्तर्गत शामिल है और अकाल व सूखे का सबसे ज्यादा असर इन जिलों में दिखाईं देता है। इन छह जिलों में से तीन जिलों - टीकमगढ़, सागर और छतरपुर को अध्ययन क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया।
अध्ययन क्षेत्र के लिलों एवं गाँवों का विवरण | ||||||||
जिला | विकासखण्डों की संख्या | ग्राम पंचायतों की संख्या | गाँवों की संख्या | अध्ययन क्षेत्र के गाँवों की कुल आबादी | ||||
टीकमगढ़ | 02 | 19 | 20 | 10299 | 4613 | 15584 | 4926 | 35422 |
सागर | 01 | 12 | 14 | 928 | 402 | 1020 | 400 | 2750 |
छतरपुर | 03 | 25 | 32 | 20354 | 2724 | 17827 | 12665 | 53570 |
कुल | 06 | 56 | 66 | 31581 | 7739 | 34431 | 17991 | 91742 |
इस तरह प्रस्तुत बुन्देलखण्ड क्षेत्र के तीन जिलों के 6 विकासखण्डों की 56 ग्राम पंचायतों के 66 गाँवों में यह अध्ययन किया गया। इन गाँवों में सभी वर्गों की कुल मिलाकर आबादी 91742 है। यहाँ की मूलभूत एवं प्राथमिक सूचनाएँ एवं जानकारियाँ प्राप्त करने के साथ ही मध्य प्रदेश एवं भारत सरकार के विभिन्न विभागों की रिपोर्ट्स, सूखा एवं अकाल के सन्दर्भ में विभिन्न संस्थानों द्वारा किये गए अनुसन्धानों की रिपोर्ट तथा मीडिया। रिपोर्ट्स का द्वितीयक स्रोत के रूप में उपयोग किया गया।