बुन्देलखंड का भूस्वामी बना दिल्ली का मजदूर

Submitted by pankajbagwan on Sun, 01/12/2014 - 22:37
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बुन्देलखण्ड में महोबा जिले के सूपा गांव का किसान श्रीपत पुत्र धुपकइयां दिल्ली में रहकर मजदूरी से अपने परिवार का भरण पोषण करता है।

श्रीपत की अपनी दो एकड़ असिंचित जमीन भी है। जो कभी पट्टे पर ग्राम समाज से मिली थी । इस पट्टे की मिली जमीन से वह भूमिहीन की श्रेणी से भूस्वामी तो बन गया । पर कभी भी इस अपनी जोत से उसके परिवार का उदर पोषण नहीं चल सका। श्रीपत के पास अपनी पट्टे की जमीन वाला कागज का एक टुकडा़ जरूर है। जिसका रिकार्ड राजस्व विभाग के रजिस्टर मे दर्ज है। हां इस जमीन की उत्पादक क्षमता तो नहीं है। पर इसके नाम के उस कागज के टुकडे़ से किसी भी अपराध में पाबन्द मुजरिम की जमानत लेकर जेल से बाहर निकालना आसान है। बैंक भी तरस खाकर एक फसली जमीन के एवज में दस बीस हजार का ऋण देने के लिए राजी हो सकता है।

श्रीपत के परिवार में उसकी पत्नी पुत्र और तीन नाती-पोते सभी साथ-साथ मेहनत - मजदूरी करके दिल्ली में अच्छे खासे थे। अचानक पुत्र कामता (28) की तबियत नासाज हुई । कामता को अस्पताल में दिखाया तो पता चला कि क्षय रोग ग्रस्त है। इलाज चलता रहा, जब भी कामता खुद को ठीक समझता तो माता -पिता का हाँथ जरूर बंटाता । महानगर का जीवन ही कुछ ऐसा हैं कि बिना मेहनत कमाई के बहुत दिनों तक टिका नहीं जा सकता। अकेले एक व्यक्ति पांच सदस्यों की परिवरिस करता, वह भी मजदूरी करके खिलाए मुश्किल सा है। दो साल के इलाज में कामता को कभी आराम मिलता कभी नहीं। इसी के चलते गाढ़ी कमाई के कई लाख रूपए जाते रहे। दस पन्द्रह सालों से दिल्ली में राज मिस्त्री का काम करते-करते कुछ पैसा इकट्ठा कर एक प्लाट भी खरीद लिया था। मुखर्जी नगर 3 के आस-पास मुंशीराम ढे़री - कालोनी में खरीदे गये प्लाट पर खुद मेहनत करके एक मकान भी बना लिया। जो कि गांव में रहकर कतई संभव नही था। पर गांव और अपनी जमीन का मोह कभी नहीं छूटा। दो वर्ष पहले अचानक पुत्र कामता की मृत्यु का संताप झेलना पड़ा । पुत्र कामता की अनहोनी घटना से श्रीपत अकेला पड़ गया। अब पत्नी,बहू और तीन नाती - पोतो की परवरिश अकेले करने की जिम्मेदारी श्रीपत को निभानी है। ।

वापसी की आस-दस्तक दे रहा तालाब है

गांव में पड़ोसी किसानों के खेतों में तालाब बनने की सूचना मिली तो उसके फायदे का ब्योरा भी लिया। श्रीपत को लगा कि तालाब बनाने पर अन्जमा जमीन को उपजाऊ बनाया जा सकता है। इसी उधेड़बुन और भरोसे के साथ श्रीपत अपनी पत्नी,बहू और तीन नातियों को लेकर दिल्ली से अपने गांव सूपा आ गया। अपने खेत में तालाब बनाकर श्रीपत को गांव रास आया और दो माह से यहीं रूककर गांव के मकान का नवनिर्माण भी शुरू कर दिया। हालांकि दिल्ली को अभी अलविदा नहीं किया न ही अभी गांव में रह जाने का संकल्प। पर गांव में नवनिर्माण से अन्दाज जरूर लगाया जा रहा है कि अब परिवार का कोई सदस्य गांव में मुकम्मिल रहना शुरू करेगा।

अपना तालाब निर्माण क्षेत्र 20×20×2 मीटर का पूरा हो रहा है। जरूरत की गहराई बढ़ाने की सोंच रहे किसान श्रीपत इस बात से उत्साहित है कि अब कुछ नया कर सकूंगा खेत में । गांव के लोग बताते हैं कि दो चार साल पहले इस जमीन की बाजारू कीमत दस- बीस हजार के बीघा से भी कम थी, पर आज इसी जमीन की कीमत डेढ़ दो लाख के उपर एक बीघे की हो गयी है। इस तालाब की लागत अभी तक 66000/.रू. की आई है। तालाब का निर्माण कार्य श्रीपत और गांव के पचास साठ श्रमिकों ने किया है।

परिवारी जनों का मानना है कि दिल्ली - सूरत में पैसा तो गिनने को मिलता है। पर बहुमूल्य जीवन जीता कम पिसता अधिक है। श्रीपत अपने बुढ़ापे का समय दिल्ली में रहकर काटने के बजाए अपने पैत्रिक गांव में रहकर जीने का इरादा बना चुका है । अपने तालाब को माध्यम बना कर जमीन को उपजाऊ बनाना,पेड़-पौधों का रोपड़ करना चाहते है श्रीपत। इसी तालाब से जमीन को उपयोगी बना सके तो रोटी का साधन बन जायेगा। सूपा गांव में तालाबों की बढ़ती श्रंखला के चलते अब एक-दूसरे से तालाब के लाभों -फायदों की व्याख्या करते नजर आ रहे है किसान ।

पानी के स्वतन्त्र इस्तेमाल की इजाजत देते नजर आ रहे है- तालाब

इस गांव के बहुतायत भूस्वामी अपनी अजीविका की तलाश में देश के विभिन्न हिस्सों,महानगरों में मेहनत-मजदूरी करके परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। यह पहला अवसर है कि गांव में तालाबों के निर्माण से पलायन कर वर्षो से बाहर रह रहे मजदूर बने किसानों की वापसी के आसार तालाबों के आसरे बनते नजर आ रहें हैं। इस प्रबल सम्भावना के पीछे किसान के अपने खेतों पर बन रहे तालाबों में वर्षा जल की अनगिनत बूंदों से भरने का भरोसा और पानी की अनमोल पूंजी है। जो इनके पास अपने जीवन में पहली बार अपने तालाब पर अपने स्वतन्त्र इस्तेमाल की इजाजत देती है। ये पूंजी गांव -पडोस में बडे से बडे भूस्वामी के पास भी नही है। इस बात की खुशी और गर्व भी है इन्हें । जो इनकी आंखों में स्पष्ट झलक रही है। इस गांव में किसानो के भविष्य निर्माण के लिए आशा की किरण बन रहे हैं तालाब।

किसान- श्रीपत पुत्र धु्पकइयां
ग्राम- सूपा
विकासखण्ड- चरखारी
जनपद –महोबा, बुन्देलखण्ड, उ0प्र0