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गुड न्यूज इंडियाः मैगजीन, जनवरी 2012
आई. आई. टी. में करीब 3000 छात्रों के लिए छात्रावास बनें हैं जिनके नाम भारत की प्रसिद्ध नदियों के ऊपर रखे गए हैं। पूरा कैम्पस करीब 650 एकड़ के विशाल हरे भरे प्रांगण में फैला हुआ है। उन्होंने आई. आई. टी की अपनी नियमित यात्रा के दौरान बड़ी विडंबनाओं को देखा, उनको पता चला कि हाल ही में हुई पानी की कमी के कारण संस्थान को दो महीनों के लिए बंद रखना पड़ा था। पर रामकृष्णन के द्वारा 'वर्षाजल संरक्षण' की तारीफ किये जाने के बाद छात्रावासों में धीरे-धीरे 'वर्षाजल संरक्षण संयंत्र' लगाया गया और इसका परिणाम है कि अब संस्थान को पहले की तरह पानी खरीदना नहीं पड़ता।
कहावत है बूँद-बूँद से सागर भरता है, यदि इस कहावत को अक्षरशः सत्य माना जाए तो छोटे-छोटे प्रयास एक दिन काफी बड़े समाधान में परिवर्तित हो सकते हैं। इसी तरह से पानी को बचाने के कुछ प्रयासों में एक उत्तम व नायाब तरीका है आकाश से बारिश के रूप में गिरे हुए पानी को बर्बाद होने से बचाना और उसका संरक्षण करना। शायद जमीनी नदियों को जोड़ने की अपेक्षा आकाश में बह रही गंगा को जोड़ना ज्यादा आसान है।तमिलनाडु: एक मिसाल
यदि पानी का संरक्षण एक दिन शहरी नागरिकों के लिए अहम मुद्दा बनता है तो निश्चित ही इसमें तमिलनाडु का नाम सबसे आगे होगा। हालाँकि चेन्नई में 1200 मिमी. बारिश होती है, फिर भी शहर को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ता है, निश्चित ही चेन्नई में जरूरत थी बारिश के पानी को बचाने की। गंगा आकाश में थी और शहर इससे अपने आप को तुरंत जोड़ सकता था। पिछले कुछ सालों से गंभीर सूखे से जूझने के बाद तमिलनाडु सरकार इस मामले में प्रयत्नशील हो गई है और उसने एक आदेश जारी किया है जिसके तहत तीन महीनों के अंदर सारे शहरी मकानों और भवनों की छतों पर 'वर्षा जल संरक्षण संयंत्र' (roof-top rain water harvesting system) का लगाना अनिवार्य हो गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि सारे सरकारी भवनों को इसका पालन करना पड़ा। पूरे राज्य में इस बात को व्यापक रूप से प्रचारित किया गया। नौकरशाहों को वर्षा जल संरक्षण संयंत्रों को प्राथमिकता बनाने के लिए कहा गया। यह चेतावनी भी दी गई कि यदि नियत तिथि तक इस आदेश का पालन नहीं किया जाता तो सरकार द्वारा उन्हें दी गई सेवाएँ समाप्त कर दी जाएँगी, साथ ही दंड स्वरूप नौकरशाहों के पैसे से ही इन संयंत्रों को चालू करवाया जाएगा। इन सबके चलते सब कुछ तेजी से होने लगा।

सुदूर अमेरिका में राघवन के इस काम की वजह से चेन्नई में पैदा हुए रामकृष्णन (आई. आई. टी. के पूर्व छात्र) को ये याद आने लगा कि कैसे उनकी माँ सुबह 3 बजे उठ कर पानी भरती थी। राम और राघवन में संपर्क हुआ और उन्होंने आकाशगंगा नामक संस्था की स्थापना की। इसका उद्देश्य था लोगों में इस बात की जागरूकता फैलाना कि कैसे 'वर्षाजल संरक्षण' समाज की पानी की जरूरतों के हल बन सकते हैं। उन्होंने चेन्नई में एक छोटे से मकान में वर्षा केंद्र बनवाया जहाँ 'वर्षाजल संरक्षण' की सरलता को दिखाया गया था। इस काम के लिए राम ने खुद 4 लाख रुपए लगाए और विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र 'विपके' ने भी कुछ सहयोग और योगदान दिया।

अगले एक साल के अंदर तमिलनाडु के लगभग हर भवन में, खासतौर से चेन्नई में 'वर्षाजल संरक्षण संयंत्र' लग चुके थे। उस साल बारिश भी कम हुई लेकिन परिणाम चौंकाने वाले थे और सुखद थे। चेन्नई के कुओं में पानी का स्तर काफी बढ़ चुका था और पानी का खारापन कम हो गया था। सड़कों पर पानी का बहाव कम था और पहले जो पैसा पानी के टैंकरों पर खर्च होता था, अब लोगों की जेबों में सुरक्षित रहता है। चेन्नई में एक नया जोश था। आज लगभग हर आदमी इस काम में विश्वास करता है। लोग कुओं की बातें ऐसे करने लगे हैं जैसे अपने बच्चों के बारे में लोग बातचीत किया करते हैं। क्लब, विद्यालय, छात्रावास, होटल सब जगह पर कुओं की खुदाई होने लगी है।
एक और व्यक्ति जो वर्षाजल संरक्षण को गंभीरता से ले रहे थे उनका नाम है गोपीनाथ जो चेन्नई के रहने वाले हैं और एक व्यापारी व अभियंता है। उनका घर 'वर्षाजल संरक्षण' का आदर्श उदाहरण है। उन्होंने इस विचार को आस-पास के कारखानों में भी फैलाया है। टी.वी.एस. समूह के कई कारखाने विम्को, स्टॉल, गोदरेज और बोयस जैसी कंपनियों ने इस संयंत्र को लगवाया है और ये संख्या बढ़ती ही जा रही है।
आज पानी के लिए स्वसहायता चेन्नई में एक सामाजिक प्रक्रिया बन गई है। राजाओं द्वारा बनवाए गए भव्य मंदिरों की टंकिया अब पानी से भरी जाती है। रोटरी क्लब ने आयानवरम के काशी विश्वनाथ मंदिर में टंकी को सुधरवाने में मदद की कपालीश्वर और पार्थसार्थी पेरूमल मंदिरों की टंकियों से राज्य सरकार ने जमी मिट्टी को निकलवाया है और उनकी मरम्मत कराई है। पर शायद लोगों के काम का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है पम्मल में स्थित साढ़े पाँच एकड़ में फैले सूर्य अम्मन मंदिर की टंकी का पुनरूद्धार। दानिदा के सलाहकार मंगलम सुब्रमण्यम ने इस काम के लिए स्थानीय लोगों और व्यापारियों को जागृत किया और 12 लाख रुपए जमा किए।
कचरा युक्त गंदे पानी का उपयोग
आजकल चेन्नई में पानी का पुर्नउपयोग एक चलन बन गया है। स्थानीय नागरिक पानी को साफ करके शौचालयों और बागीचों में दोबारा इस्तेमाल में ला रहे हैं। चेन्नई के सबसे ज्यादा विचारवान भवन निर्माताओं, जिन्होंने वर्षाजल संरक्षण संयंत्र को लगाना प्रशासन के आदेश से पारित होने के पहले से शुरू कर दिया था, में से एक एलेक्रिटी फाउंडेशन (Alacrity Foundations) अब गंदे पानी के पुनर्चक्रण के नए संयंत्र लगा रही है। उनका मानना है कि नालों में बहने वाले पानी का 80 प्रतिशत हिस्सा साफ करके पुन: उपयोग में लाया जा सकता है। सौभाग्य से इस मामले में चेन्नई में सफलता की कई कहानियाँ हैं।
चेन्नई पेट्रोलियम, जो एक बड़ा तेल शोधक कारखाना है और पानी का काफी प्रयोग करता है, ने पानी के पुनर्चक्रण में भारी सफलता हासिल की है। इसके लिए ये चेन्नई महानगरपालिका को प्रतिकिलो गंदे पानी के लिए आठ रुपए भी देते हैं। ये इस पानी की गंदगी के टंकियों में नीचे बैठने के बाद उल्टे परासरण (Reverse Osmosis) का प्रयोग करके ठोस पदार्थों को बाहर निकाल देते हैं। बाकी बचा पानी 18.8 प्रतिशत साफ होता है और कई कामों में प्रयोग में लाया जा सकता है जैसे कि शौचालयों की सफाई, बगीचों में प्रयोग। सफाई से निकली कीचड़ को वनस्पति कचरे में मिलाकर खाद बनाई जाती है जो उनके वृहद प्रांगण को हरा-भरा रखने में काम आती है। ये काम बहुत बड़े स्तर पर किया जाता है। प्रति घंटे 15 लाख लीटर पानी की सफाई की जाती है जो कारखाने की जरूरत का 40 प्रतिशत हिस्सा है और इससे शहर, व्यापार और पर्यावरण तीनों को लाभ होता है। इस काम को करने में और भी कई कारखानों ने रुचि दिखाई है।
ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनसे कि आम आदमी को थोड़ा पैसा और थोड़ा प्रयास लगा कर इस काम को करने की प्रेरणा मिलती है। इन कामों के लिए किसी भी सहायता या निगरानी की जरूरत नहीं है और न ही नदियों को जोड़ने जैसी वृहद परियोजनाओं की। इन बड़ी परियोजनाओं को करने में समय लगता है, पैसा लगता है और साथ में भारी पर्यावरणीय राजनीतिक और तकनीकी क्षतियाँ हो सकती हैं और सबसे बुरी चीज जो होती है वो ये कि लोग अपने आप काम करना छोड़कर सरकार से उम्मीद लगाए रखते हैं। पहले ही कई दूरदराज के गाँवों में पानी की बोतल को दूध से भी महँगा बेचा जाता है। नई पीढ़ी को ये भी मालूम नहीं कि पानी हमारे लिए प्रकृति की एक अमूल्य किंतु नि:शुल्क भेंट है।