चेन्नई पिछले दिनों आई भीषण बाढ़ की विभीषिका से धीरे-धीरे उबर रहा है। इसमें दो राय नहीं है कि चेन्नई ने इस बार जैसी बाढ़ का सामना किया, वैसी बाढ़ पिछले 100 सालों में चेन्नई में नहीं आई। इस बाढ़ ने पिछले 100 सालों का रिकार्ड तोड़ दिया। इस बाढ़ से चेन्नई में तबाही का जो मंजर देखने को मिला, वह अभूतपूर्व था।
कुछ लोग इस तबाही के लिये ग्लोबल वार्मिंग को ज़िम्मेवार ठहराए, लेकिन इस हकीक़त से भी मुँह नहीं मोड़ा जा सकता कि चेन्नई की इस तबाही के लिये मानवीय गतिविधियाँ ज़िम्मेवार रहीं। यह भी एक हकीक़त है कि चेन्नई में भीषण बारिश हुई।
यहाँ बीती 28 नवम्बर और चार दिसम्बर के बीच जिस तरह की भीषण बारिश हुई, चेन्नईवासियों की मानें तो इस बारिश ने पिछले 100 सालों का बारिश का रिकार्ड तोड़ दिया। इस दौरान चेन्नई के कुछ इलाकों में 500 मिलीमीटर से भी ज्यादा बारिश हुई।
दो दिनों में यहाँ अनुमान से भी ज्यादा बारिश हुई, वह भी इतनी तेज बारिश जितनी आमतौर पर पूरे एक महीने में होती है। देखा जाये तो नवम्बर महीने से ही तमिलनाडु, खासकर चेन्नई, पुडुचेरी और कुड्डालोर में दक्षिण-पूर्वी मानसून के चलते काफी तेज बारिश हो ही रही थी।
मौसम विभाग भी इसकी सूचना दे चुका था कि आने वाले दिनों में मूसलाधार बारिश की सम्भावना है। मौसम विभाग की चेतावनी को चेन्नईवासियों ने सामान्य तौर पर लिया। ठीक उसी तरह जिस तरह वह मौसम विभाग की चेतावनी को आमतौर पर लेते हैं। लेकिन उसमें यह साफ संकेत जरूर था कि आने वाले दिनों में चेन्नईवासियों को भीषण बारिश का सामना करना पड़ सकता है।
एक दिसम्बर को हुई मूसलाधार बारिश चेन्नईवासियों पर कहर बनकर टूटी। आशा के विपरीत हुई यह बारिश ऐसी थी कि जैसे आसमान से यहाँ पानी की चादरें गिर रही हों।
यहाँ यह ग़ौरतलब है कि वहाँ बारिश से हालात इतने बदतर नहीं हुए, जितने हालात चेन्नई के समीप स्थित चेम्बरमबक्कम जलाशय से भारी मात्रा में पानी छोड़े जाने से बदतर हुए। इसकी एक अहम वजह और है और वह है अड्यार नदी बेसिन का नए हवाई अड्डे के लिये किया गया अतिक्रमण।
चेन्नई के समीप के चेम्बरमबक्कम जलाशय द्वारा छोड़ा गया पानी और अड्यार नदी बेसिन के अतिक्रमण के परिणामस्वरूप भारी मात्रा में बाढ़ आई जिसके चलते 86 लाख की आबादी वाला देश का चौथे सबसे बड़े शहर चेन्नई को भीषण तबाही का सामना करना पड़ा और 400 से ज्यादा लोग अनचाहे मौत के शिकार हुए सो अलग।
इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। इसका नतीजा यह हुआ कि पूरा चेन्नई शहर एक टापू में तब्दील हो गया। एक अनुमान के अनुसार इस बाढ़ से चेन्नई को तकरीब 21000 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है।
राज्य सरकार भले इस बात का दावा करे कि चेम्बरमबक्कम जलाशय से एक दिसम्बर की रात केवल 33,500 क्यूसेक पानी ही छोड़ा गया। लेकिन असलियत यह है कि इस जलाशय से काफी मात्रा में पानी छोड़ा गया जिसकी परिणति बाढ़ के रूप में हुई।
विश्लेषकों की मानें तो अनुमान के अनुसार जलाशय से छोड़ा गया पानी कम-से-कम 10 लाख क्यूसेक था। उसकी मात्रा इससे भी अधिक हो सकती है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता।
कई दिनों की तेज बारिश और जलाशय द्वारा छोड़े गए पानी से अड्यार नदी में अचानक बाढ़ आ गई। गौरतलब है कि इस जलाशय की गहराई मात्र 24 फीट है। 26 नवम्बर को इसका जलस्तर 22 फीट था, उस समय अधिकारियों ने यहाँ से पानी की निकासी नहीं की। पता नहीं वह किस इन्तजार में थे।
एक दिसम्बर को यह ओवरफ्लो हो गया लेकिन इसके बावजूद पानी की निकासी नहीं की गई। दो दिसम्बर की सुबह अचानक पानी की निकासी की गई।
अनुमान है कि यह निकासी तब की गई जबकि पानी जलाशय के ऊपर से बहने लगा था और जलग्रहण क्षेत्र भी पानी से लबालब भर चुका था। नतीजा यह हुआ कि आसपास के सभी बंधों को तोड़ता हुआ पानी शहर में जा घुसा। उसके जो भी सामने आया, सबको वह तबाह करता चला गया।
हालात यह थे कि सड़कें पानी से लबालब थीं। सड़कों पर कारें पानी में डूबी थीं। सड़कों पर कहीं तीन तो कहीं चार फीट से अधिक पानी था। घरों में निचली मंजिलों में पानी भरा था लिहाजा लोग पहली मंजिलों पर जैसे-तैसे भाग कर जा पहुँचे।
अपार्टमेंटों की हालत यह थी कि वहाँ के लोगों ने कई-कई दिन बिना पानी और खाने के गुजारे। दफ्तरों के अन्दर पानी भर गया था। बड़ी औद्योगिक इकाइयाँ, वह चाहे ऑटोमोबाइल क्षेत्र की हों या अन्य पानी में डूब चुकी थीं। ताम्ब्रम हवाई अड्डा, सदापुरम, नंदीपुरम, सत्यभामा यूनीवर्सिटी, बेलाचेरी सहित इंडस्ट्रियल एरिया पानी में डूब गए थे। पानी से बचने के चक्कर में भागते हुए कुछ लोग पानी में गिर गए जो फिर कभी बाहर नहीं निकल सके। कुछेक की मौत बिजली के झटकों से हुई। कुछ ही घंटों में लोगों का जिन्दगी भर का संजोया सामान पानी में बह गया, तबाह हो गया। बाढ़ के सैलाब से क्या अमीर, क्या गरीब कोई नहीं बचा।
चारों ओर पानी से बचने की मारा-मारी मची थी। आर्थिक दृष्टि से कमजोर गरीब, झुग्गीवासी इसके सबसे अधिक शिकार हुए। मध्यमवर्गीय लोगों के घर तो पानी में ढह गए। सेलफोन के टावर ठप्प पड़े थे। आलम यह था कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा दुनिया से कट गया था। एक तरह से वह अपने या पड़ोसी या आश्रयदाता के घर में खुद को नजरबन्द पा रहा था।
इस बारे में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के प्रोफेसर एवं शहरी प्रबन्धन व जलवायु परिवर्तन के विशेषज्ञ एस जनकराजन की मानें तो चेन्नई की बाढ़ मानवीय भूल की परिणति है। उनके अनुसार शहर में पैदा हुई बाढ़ की स्थिति खराब शहरी नियोजन की देन है।
आवासीय भूखण्डों व बहुमंजिला इमारतों को इंफ्रास्ट्रक्चर या जल विज्ञान सम्बन्धी जानकारी जुटाए बिना मंजूरी दे दी जाती है। उसका परिणाम है कि पानी के निकासी के रास्ते बन्द होते जा रहे हैं। जहाँ से पानी की निकासी हो सकती थी, वहाँ इमारतें खड़ी हो गई हैं। साफ है कि जब पानी की निकासी का रास्ता नहीं होगा, उस हालत में बाढ़ तो आएगी ही।
चेन्नई की इस दुर्दशा के लिये अभूतपूर्व बारिश नहीं, बल्कि शहर के योजनाकारों की चूक है। यह अविवेकी शहरी विस्तार को बढ़ावा देने का परिणाम है। यदि वे योजनाबद्ध तरीके से शहर का विस्तार करते तो चेन्नई को इतना बड़ा खामियाजा भुगतना नहीं पड़ता।
अधिकारियों ने यहाँ भूमाफिया से साँठ-गाँठ के तहत वहाँ आवासीय बहुमंजिली इमारतें खड़ी करने की अनुमति दे दी जहाँ कभी झील और तालाब थे। यहाँ यह ध्यान देने वाली बात यह है कि पहले नदी में पानी बढ़ने की स्थिति में बढ़ा हुआ पानी नदी के दोनों ओर खाली जगहों जिसे कैचमेंट एरिया या बहाव क्षेत्र कहते हैं, में फैल जाता था लेकिन अब खाली जगहों में इमारतों के निर्माण की वजह से नदी को अब फैलने की जगह नहीं मिल पाती।
इसकी वजह से नदी का पानी शहर में घुस आता है और बाढ़ आ जाती है। हमारे यहाँ यह स्थिति न केवल मुम्बई, श्रीनगर की है बल्कि पूरे देश में यह स्थिति है।
देश की राजधानी दिल्ली भी इस रोग से अछूती नहीं है जहाँ अधिकारियों ने यमुना नदी के बहाव क्षेत्र में कॉमनवेल्थ गेम्स के लिये गाँव बनाने की इजाज़त दे दी। दिल्ली मे भी चेन्नई जैसी स्थिति कभी भी आ सकती है। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता।
ग़ौरतलब है कि अपनी भौगोलिक स्थितियों और सघन आबादी के कारण हादसों की दृष्टि से हमारा देश अतिसंवेदनशील है। इस तथ्य से क्या राजनेता, क्या नौकरशाह सभी भलीभाँति परिचित हैं।
नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी की बेवसाइट हमें इस तरह के जोखिमों से आगाह करती है। उसके अनुसार, ‘भारत में हादसों का खतरा जनसांख्यिकी व सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में बदलाव, अनियोजित शहरीकरण, बेहद जोखिम भरे इलाकों में निर्माण, पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए जाने, जलवायु परिवर्तन और संक्रामक बीमारियों से और बढ़ता जा रहा है। ये सभी चीजें मिलकर एक ऐसी स्थिति के निर्माण में अपना योगदान दे रही हैं, जिसमें आपदाएँ आने वाले दिनों में भारत की अर्थव्यवस्था, इसकी आबादी और टिकाऊ विकास के लिये गम्भीर खतरा पैदा करेंगी।’
यदि वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट की ताजा रिपोर्ट की मानें तो भारत बाढ़ से प्रभावित होने वाली आबादी के आधार पर 163 देशों की सूची में शीर्ष पर है। यहाँ हर साल बाढ़ से तकरीब 50 लाख भारतीय बुरी तरह प्रभावित होते हैं। जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार देश में हर साल बाढ़ से 2130 लोगों की मौत होती है जबकि जीडीपी में 14.3 अरब डालर का नुकसान होता है।
82.1 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य ज़मीन हर साल बाढ़ से प्रभावित होती है और 1499 करोड़ मूल्य की फसलें हर साल बाढ़ से बर्बाद हो जाती हैं। साफ है कि भारत आपदाओं के लिहाज से अतिसंवेदनशील है। यह भी स्वाभाविक है कि शहरीकरण और सघन आबादी वाले इलाके एक नई जीवनशैली के साथ उभर रहे हैं।
कहने का तात्पर्य यह कि वहन करने की योग्यता के बिना भारत का शहरीकरण तबाही का ही नुस्खा है। इसके चलते हम 2005 की महाराष्ट्र की बाढ़ जिसमें 204 लोगों की मौत हुई, 2008 की कोसी की बाढ़ जिसमें 527 लोगों की मौतें हुईं, 19323 मवेशी मौत के मुँह में चले गए, 2,23,000 घरों को नुकसान हुआ और 33 लाख लोग प्रभावित हुए, 2008 की असम की बाढ़ जिसमें 149 लोगों की मौत हुई, 20 से अधिक जिले प्रभावित हुए और 5000 हेक्टेयर खेती की ज़मीन बर्बाद हुई, 2013 की उत्तराखण्ड की बाढ़ जिसमें 4200 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और 11000 से ज्यादा मवेशी मरे तथा जान-माल और खेती की ज़मीन का काफी नुकसान हुआ, 2014 में कश्मीर की बाढ़ जिसमें 300 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और सम्पत्ति का काफी नुकसान हुआ।
इस बाढ़ में समूचा कश्मीर प्रभावित हुआ, के अलावा इसी साल पश्चिम बंगाल की बाढ़ देख चुके हैं जिसमें 112 लोगों की मौत हुई, जान-माल का व्यापक नुकसान हुआ और राज्य के 12 से अधिक जिले प्रभावित हुए।
आज जबकि जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखे से जूझ रहे दुनिया के 43 छोटे देश एकजुट हो रहे हैं जरूरत है और समय की माँग भी कि चेन्नई की त्रासदी से सबक लें अन्यथा पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए जाने, जलवायु परिवर्तन, जनसांख्यिकीय व सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में बदलाव, बेहद जोखिम भरे इलाकों में बेतरतीब निर्माण, अपने गैरजिम्मेदाराना रवैए और अनियोजित शहरीकरण तथा संक्रामक बीमारियों के प्रकोप के चलते आने वाले दिनों में बार-बार ऐसी त्रासदियों को झेलने को अभिशप्त होंगे। इसमें दो राय नहीं।
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