भाग 2

Submitted by admin on Tue, 01/26/2010 - 08:28
Author
डॉ. सुरेश मिश्र

जाली करंज असल में लालबाग में ऐसा संगम है जहाँ सूखा भण्डारा, मूल भंडारा और चिंताहरण का जल आकर एकत्र होता था। मुगलकाल में ‘जाली करंज’ से बुरहानपुर को पानी प्रदाय किया जाता था। यह पानी पकी मिट्टी और तराशे गये पत्थर के पाइपों के जरिये नगर के विभिन्न करंजों और वाटर टावरों में पहुंचाया जाता था। पानी के दबाव से पकी मिट्टी के पाइप फट न जायें इसलिए इन पाइपों के आसपास चूना, गारा और ईंट की मोटी चिनाई कर दी जाती थी आज भी शहर के विभिन्न हिस्सों में खुदाई होने पर मिट्टी के ऐसे पाइप चिनाई से जड़े हुए मिल जाते हैं। भूमिगत जल को एकत्र करके सुरंगों द्वारा उसे मीलों दूर पहुंचाकर एक बड़ी आबादी को जलप्रदाय करने का यह मध्यकालीन प्रयोग भारत में बेमिसाल है। इसकी खासियत यह है कि न तो पानी को कहीं से उठाने या लाने में कोई व्यय होता था और न उसे शहर में पहुंचाने में। सभी कुछ प्राकृतिक रूप से होता रहता था। अगर कोई व्यय होता होगा तो वह कुण्डियों के जरिये भूमिगत सुरंगों की सफाई में होता होगा, जो इतनी बड़ी व्यवस्था को देखते हुए नगण्य है।

औरंगजेब के शासनकाल में बुरहानपुर का भ्रमण करने वाले विदेशी यात्री थेवनाट ने जलप्रदाय की इस व्यवस्था का जिक्र किया है। वह लिखता है कि शाही किले के लिए ताप्ती नदी का पानी काम में नहीं लिया जाता क्योंकि वह खारा और बेस्वाद है। मैदान में बने चोकोर हौज से वहां पानी जाता है और हौज में पानी दूर के झरने से आता है। यह पानी एक सराय से होकर आता है

ताप्ती नदी के दक्षिणी तट पर याने बुरहानपुर शहर के दूसरी ओर जैनाबाद में बने आहूखाना के बगीचे और फव्वारों को पर्याप्त पानी पहुंचाने के लिए 1709 ई. में नवाब कालीखान ने उतावली नदीं में महल गुलारा में बने बांध से आहूखाना तक एक नहर का निर्माण कराया था जो जमीन के भीतर भी थी और बाहर भी। आहूखाना को मुगल शासन की शुरूआत में खानदेश के सूबेदार शाहजादा दानियाल द्वारा आमोद-प्रमोद के लिए बनवाया गया था। आज भी पानी की इस प्रणाली के अवशेष आहूखाना में देखे जा सकते हैं।

जो जलप्रदाय प्रणाली मुगलों के समय लाखों लोगों की पानी की जरूरतों को पूरा करती थी वह उपेक्षा के कारण धीरे-धीरे बरबाद होती गयी। जब रेलवे लाइन बनी तो उसने भी इस व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया। अभी भी बुरहानपुर रेलवे स्टेशन के पास आपको पुरानी कुण्डियाँ दिख जायेंगी। इस जलप्रदाय व्यवस्था से जुड़े हुए कुल 14 करंज थे पर उनमें से जो करंज शहर के बाहर हैं और जिनका जिक्र ऊपर किया गया है, वे तो सलामत हैं, पर जो करंज शहर के भीतर हैं वे अब बरबाद हो चुके हैं। कुछ तो कचरे से भरे हुए हैं और कुछ अतिक्रमण से गायब हो गये हैं। पुरानी बस्ती में यहाँ-वहाँ आपको वे मध्यकालीन पाइप कहीं-कहीं दिख जायेंगे जो शहर को पानी प्रदाय करते थे। शाही किले में तो ये जल प्रवाही पाइप साफ दिखते हैं। अण्डे बाजार में अकबरी सराय के पास के हम्माम में भी इस व्यवस्था से पानी पहुंचाता था, जो अकबरी सराय में रूके सैकड़ों लोगों के काम आता था।

मुगलों के जमाने की इस जलप्रदाय व्यवस्था का विनाश आजादी के बाद तेजी से हुआ। शहर की आबादी तेजी से बढ़ी और बस्तियाँ बसीं तथा कारखाने भी बने और अतिक्रमण की बाढ़ आयी। इस शहरीकरण का बहुत खराब असर इस जलप्रदाय प्रणाली पर पड़ा और इसकी क्षमता कम होती गयी। बुरहानपुर ताप्ती मिल का तरल कचरा जाली करंज के पास से ही निकलता रहा है और इससे पानी प्रदूषित होने का खतरा पैदा हुआ है। खुली कुण्डियों के पास चूना कुटाई वाला कारखाना है जिसकी धूल खुले कुण्डों के जरिये कूपकों में जाती है और जलप्रदाय प्रणाली को प्रभावित करती है। बुरहानपुर शहर के दर्जनों ऐतिहासिक अवशेषों को जिस प्रकार अतिक्रमण के अजगर ने निगल लिया उसका अपवाद मुगलकालीन जलप्रदाय व्यवस्था नहीं रही।

शहर के अदूरदर्शितापूर्ण विस्तार और अतिक्रमण के कारण इस व्यवस्था की कुण्डियाँ, करंज और भूमिगत सुंरगों को बहुत नुकसान हुआ है। करंजों और कुण्डियों के आसपास बस्तियाँ बन गयी हैं और लोग कुण्डियों से पानी निकालकर पास ही नहाते और कपड़े धोते हैं। कुछ कुण्डियाँ गिर गयी हैं जिससे पानी के बहाव में रूकावट आ गयी। कई कुण्डियों में तो कचरा भर दिया गया। भूमिगत सुरंगों में पानी कम बहने का एक और महत्वपूर्ण कारण यह है कि पिछले कुछ दशकों में इस इलाके में कितने ही नलकूप खोदे गये हैं। जिनसे भूजल का स्तर गिरा है और पानी ले जाने वाली सुरंगों और भण्डारों में जमीन का रिसा हुआ पानी कम आ रहा है। बुरहानपुर शहर के पास की जिन पहाड़ियों से भूजल मिलता था वे अब नंगी हो गयीं हैं और बारिश का पानी जमीन के अन्दर न जाकर सीधे नदी में चला जाता है। प्रकृति ने भी इस प्रणाली की पानी देने की क्षमता को क्रमशः कम किया है, पानी में घुले मैग्नेशियम और कैल्शियम की मात्रा काफी है। जिससे भूजल के रिसाव के छिद्रों में इन रसायनों का जमाव बढ़ गया है और भूमिगत सुरंग में पानी का आना कम हुआ है।

1991 में बुरहानपुर शहर की आबादी करीब पौने दो लाख थी और यहाँ रोज 90 लाख लीटर जल की आपूर्ति होती थी जिसका करीब छठवाँ हिस्सा इस मध्यकालीन व्यवस्था से बिना किसी खर्च के मिलता था। बुरहानपुर शहर की आबादी बढ़ने से जब लागातार पानी की किल्लत होने लगी तब बुरहानपुर नगर निगम और जिला प्रशासन को इसके रखरखाव की चिन्ता हुई और पिछले कुछ सालों में इस व्यवस्था की मरम्मत हुई है। आज बुरहानपुर शहर की आबादी दो लाख का आँकड़ा पार कर गयी है और इस मध्यकालीन व्यवस्था से उसे अभी भी काफी पानी मिल रहा है। यदि राजनीतिक इच्छा शक्ति हो तो शहर को इससे और भी पानी मिल सकता है।