वेब दुनिया - मणिशंकर उपाध्याय/ पिछले एक दशक में भूमिगत पानी के अत्यधिक दोहन तथा अल्प वर्षा के चलते प्रदेश में पानी की कमी को देखते हुए नागरिक इसके संचय और संरक्षण के प्रति जागरूक हुए हैं। प्रदेश शासन ने भी वर्षा जल के संचय, जलस्रोत पुनर्भरण के लिए अनेक योजनाएँ कार्यान्वित की हैं। इनमें से वर्षा जल को तालाबों के माध्यम से सहेजने का प्रयास भी शामिल है। तालाब योजना के प्रदेश में अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं। पर ये काफी नहीं हैं। इसके प्रति अभी और जनजागृति की आवश्यकता है। तालाब निर्माण में कुछ तकनीकी मुद्दों पर ध्यान दिया जाए तो यह कार्य और सहज तथा व्यवस्थित हो सकता है।
प्रदेश के अधिकांश भौगोलिक क्षेत्र को प्रकृति ने उत्तम किस्म की उपजाऊ काली मिट्टी, पर्याप्त वर्षा व भूमि की निचली सतह में बेसाल्ट चट्टानों के काले पत्थर की कड़ी अपारगम्य परत प्रदान की है। सतह की काली चिकनी मिट्टी और निचली सतह की कड़ी चट्टानों के नीच मुरम (पीली मिट्टी) के लिए पारगम्य मोटी परत पाई जाती है। इसमें से पानी प्राकृतिक रूप से छनकर नीचे के काले पत्थर द्वारा निर्मित कड़ी परत में जाकर एकत्रित हो जाता है। यह एकत्रित जल या तो सुरंग रूपी धाराओं में गमन करता है या कहीं छोटे-बड़े भूर्गभीय जलाशय (एक्विफर) में इकट्ठा होकर संग्रहीत भंडार के रूप में पाया जाता है।
मालवा क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 700 से 1200 मिमी के मध्य दर्ज की जाती है। इसका मतलब है कि यदि पूरे क्षेत्र की सतह पर सीमेंट करके वर्षा जल को रोक लिया जाए तो पूरे क्षेत्र में 70 सेमी से 120 सेमी गहरा जलाशय बन जाए। इसे प्रति हैक्टेयर में मापा जाए तो प्रति हैक्टेयर (100 मीटर लंबा व 100 मीटर चौड़े) क्षेत्र में सात लाख से बारह लाख लीटर पानी विभिन्न वर्षों में वर्षा द्वारा प्राप्त होता है।
वर्षा द्वारा प्राप्त इस पानी को पहाड़ी क्षेत्रों के ऊपर से नीचे मैदान तक के रास्ते में रुकावटें बना दी जाएँ जिससे यह जमीन में नीचे रिसकर जा सके और बहने की गति धीमी होने से मिट्टी और जीवांश पदार्थ को बहाकर न ले जा सके। इसके लिए वानस्पतिक आवरण (आर्गेनिक मलच) का उपयोग सबसे उत्तम है।
वैसे ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों की अपेक्षा अधिक जन-जागृति आ रही है। वर्षा जल को एकत्र कर संग्रहीत करने के लिए हर स्तर पर जनभागीदारी आवश्यक है। ग्रामीण क्षेत्रों में शासकीय सहयोग, पंचायतों की सक्रियता एवं जनभागीदारी से तालाबों का निर्माण निश्चित ही सराहनीय है। तालाबों के निर्माण में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान दिया जाए तो यह कार्य और सहज तथा व्यवस्थित रूप से संपन्न हो सकता है।पुराने राजस्व दस्तावेजों (रिकॉर्ड) में जहाँ-जहाँ भी तालाब दर्शाए गए हैं, उन स्थानों पर पुराने तालाबों का सीमांकन, गहरीकरण व जीर्णोद्धार किया जाना सहज होगा। अनेक ग्रामों में पुराने तालाबों के जल आगम मार्ग, जल निर्गम मार्ग, घाट आदि के अवशेष अब भी देखने को मिलते हैं। इन्हें व्यवस्थित किया जाना चाहिए। नए तालाबों के लिए उपयुक्त स्थान वह हो सकता है जो निचले स्तर पर हो तथा पर्याप्त मात्रा में प्राकृतिक रूप से पानी भरता हो।
सामान्यतः दो प्रकार के तालाब बनाए जाते हैं, रिसन तालाब व जल संग्रहण तालाब। रिसन तालाब कम गहराई की मिट्टी वाले क्षेत्रों में बनाए जाते हैं। इनमें वर्षा जल एकत्र होकर कुछ समय में ही रिस-रिसकर जमीन की निचली सतहों में चला जाता है। ये भूमिगत जल भंडारों को समद्ध करते हैं। इनका अधिक समय तक प्रत्यक्ष (सीधा) उपयोग नहीं हो पाता है।
जल भरण व एकत्रीकरण तालाब गहरी, चिकनी, अपारगम्य मिट्टी वाले क्षेत्रों में बनाए जाते हैं। इनकी तलहटी में काली चिकनी मिट्टी की अपारगम्य परत होने के कारण पानी के निचली सतहों में रिसकर जाने की संभावना कम रहती है। इनमें अधिक समय तक पानी भरा रहने के कारण इनका उपयोग सिंचाई, पशुओं के पीने के लिए या निस्तार के लिए किया जा सकता है।
तालाब का निर्माण तश्तरी के समान किनारों पर उथला व बीच में गहरा किया जाना चाहिए। इस तरह के निर्माण से पानी के आगम मार्ग में जल की गति धीमी होकर बीच में रुकते हुए निर्गम मार्ग पर पहुँचता है। धीमी गति के कारण किनारों का कटाव नहीं होता है।
तालाबों में पानी आने के मार्ग में बालू रेत, गोल बजरी, बारीक गिट्टी, मोटी गिट्टी व बोल्डर की परतों का फिल्टर लगा देना चाहिए। इससे तालाब में मिट्टी नहीं आ पाती है। इसी प्रकार पानी के निर्गम (बाहर निकलने के) मार्ग पर रिवर्स फिल्टर लगा दिया जाता है। आगम के फिल्टर से तालाब में मिट्टी न जमने के कारण उसकी जल संग्रहण क्षमता में कमी नहीं आती है, फिल्टर के बाहर जमी मिट्टी को तीन-चार वर्ष में निकालें तथा फिल्टर की सामग्री को खराब होने पर बदल दें।
जहाँ तक हो सके तालाब की लंबाई, चौड़ाई या गोलाई को कम करके गहराई को अधिक रखा जाना चाहिए। यह जल संरक्षण के हिसाब से बेहतर होता है। इससे एकत्रित जल की खुली सतह का क्षेत्रफल कम हो जाता है और पानी के भाप बनकर उड़ने की मात्रा भी कम हो जाती है।
तालाब की जल संचयन की निर्माण क्षमता (डिजाइंड केपेसिटी) उस क्षेत्र विशेष की अधिकतम वर्षा गति व मात्रा से डेढ़ से दो गुना रखी जानी चाहिए जिससे अति अधिक वर्षा वाले वर्षों में भी जल प्लावन या तालाब के फूटने आदि का भय न रहे।
तालाब का जल निर्गम मार्ग एकदम सीधा न होकर तालाब के अंतिम छोर के बाजू में गोलाई में घुमाव देते हुए बनाया जाए। इससे जल निकास की गति धीमी व संतुलित रहेगी। जल निर्गम मार्ग के किनारों पर मिट्टी की दीवारों पर पत्थर की परत (पिचिंग) लगाएँ जिससे कटाव न हो सके। वर्ष पर्यन्त पानी से भरे रहने वाले तालाबों में मछलियाँ व कछुए डाल दें, ये पानी को स्वच्छ बनाए रखने में सहायक होते हैं।