प्लास्टिक प्रदूषण विश्वव्यापी समस्या बन गया है। एक अनुमान के मुताबिक समुद्र में करीब 5.25 ट्रिलियन मैक्रोे और माइक्रो प्लास्टिक के टुकड़े तैरते हैं, जिनका वजन करीब 2 लाख 69 टन है। इस कारण बड़े स्तर पर समुद्री जीवन प्रभावित हो रहा है। व्हेल, शार्क, डाॅलफिन सहित सैंकड़ों समुद्री जीवों की मौत हो रही है। समुद्री वनस्पतियां समाप्त हो रही हैं। समुद्र के माध्यम से ही ये माइक्रो प्लास्टिक इंसान के भोजन में शामिल होकर शरीर में पहुंच रहा है और हम अनेक बीमारियों के जाल में फंसते जा रहे हैं। भयावह होते प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए विश्व स्तर पर कवायद भी चल रही है। कई देशों ने सिंगल यूज प्लास्टिक को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया है, जबकि कई देश प्लास्टिक के विकल्प ढूंढ़ने में जुट गए हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बीते वर्ष 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की 150वी जयंती के अवसर पर प्लास्टिक के खिलाफ जंग की घोषणा करते हुए, देश की जनता से सिंगल यूज प्लास्टिक का बहिष्कार करने की अपील की थी।
लोगों ने जागरुकता और समझदारी दिखाते हुए, सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को कम तो किया, लेकिन अभी तक ये उपयोग प्लास्टिक के थैलों का बहिष्कार करने से बाहर नहीं निकल पाया है। जिस कारण चिप्स आदि के पैकेट सहित पानी और कोल्ड ड्रिंक आदि की बोलते आज भी बाजार में प्रचलन में हैं। ऑनलाइन शाॅपिंग कंपनियां भी बड़े पैमाने पर प्लास्टिक कचारा पैदा कर रही हैं। आलम ये है कि भारत में बढ़ते कचरे के प्रति चिंतित तो सभी हैं, लेकिन वास्तव में फुटपाथ से लेकर सरकार दफ्तर तक हर जगह धड़ल्ले से सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग होता दिख जाएगा। जनता भी न जाने क्यों अपने जीवन को सिंग यूज प्लास्टिक से मुक्त नहीं करा पा रही है। नतीजन, हम अनजाने में प्लास्टिक जैसे ज़हर को अपने भोजन का हिस्सा बनाकर बीमारियों का आमंत्रित कर रहे हैं।
हालाकि प्रयास तो काफी हो रहे हैं, कई संस्थाएं सरकार के साथ मिलकर प्लास्टिक से जंग लड़ रही है, लेकिन भारत में केवल 14 राज्यों में ही प्लास्टिक का पुनर्चक्रण करने के प्लांट हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है, कि केंद्र सरकार के साथ ही राज्य की सरकारें प्लास्टिक प्रदूषण के प्रति कितनी गंभीर है। दरअसल, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वर्ष 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि जम्मू और कश्मीर से हर साल करीब 27870 मीट्रिक टन कचरा उत्पन्न होता है, जबकि पंजाब में 54066.1 मीट्रिक टन, उत्तर प्रदेश में 206733.45 मीट्रिक टन, बिहार में 2280 मीट्रिक टन, अरुणाचल प्रदेश में 6 मीट्रिक टन, मणिपुर में 24 मीट्रिक टन, त्रिपुरा में 28.5 मीट्रिक टन, ओडिशा में 12092.20 मीट्रिक टन, मध्य प्रदेश में 50457.07 मीट्रिक टन, मेघालय 15096 मीट्रिक टन, गुजरात में 269808 मीट्रिक टन कचरा प्रतिवर्ष उत्पन्न होता है। तो वहीं जम्मू कश्मीर में 187, पंजाब में 140, उत्तर प्रदेश में 34, बिहार में एक, नागालैंड में 7, मणिपुर में 4, मेघालय में 4, ओडिशा में 12, उत्तराखंड में 255, मध्य प्रदेश में 25, गुजरात में 869, चंड़ीगढ़ में 126 प्लास्टिक कचरा पुनर्चक्रण की पंजीकृत इकाईयां हैं। जबकि उत्तराखंड में 14, बिहार में 40, उत्तर प्रदेश में 16, जम्मू और कश्मीर में 22 और पंजाब में 246 गैर पंजीकृत इकाईयां हैं। ऐसे में देश को प्लास्टिक कचरे से मक्त करने का सपना केवल सपना ही नजर आ रहा है।