बड़ों की अपेक्षा बच्चे अधिक संवदेनशील होते हैं और जल्दी ही बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। इसी कारण बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर माता पिता चिंतित रहने के साथ ही उनका अधिक ख्याल भी रखते हैं। अधिकांशतः माता पिता बच्चों को अनाश्वयक रूप से घर से बाहर निकलने से भी मना करते हैं, विशेषकर अधिक प्रदूषण वाले शहरों में, ताकि बच्चे प्रदूषण की चपेट में न आए और घर के अंदर स्वस्थ व सुरक्षित रहें। लेकिन सोचिए यदि घर के अंदर ही वायु प्रदूषित हो और बच्चों की मौत का कारण बन रही हो, तो बच्चे कैसे सुरक्षित रह सकते हैं और कैसे देश के खुशहाल भविष्य की कल्पना की जा सकती है ? बच्चे ही नहीं बड़े भी घर के अंदर के वायु प्रदूषण से सुरक्षित नहीं हैं, लेकिन बड़ों की अपेक्षा बच्चे अधिक सांस लेते हैं तथा उनके अंग अधिक संवेदनशील होते हैं, इसलिए वें अधिक बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं और घर के अंदर का ये वायु प्रदूषण भारत में बच्चों की जान तक ले रहा है। इनमें 0 से 5 वर्ष तक की आयु के बच्चे सबसे अधिक प्रभावित हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर), पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआइ) और इंस्टीट्यूट फाॅर हेल्थ मीट्रिक एंड इवोल्यूशन (आइएमएमई) द्वारा किए गए अध्ययन में ये बात सामने आई है। रिपोर्ट में वर्ष 2017 तक के आंकड़ें दिए गए हैं और इस ग्लोबल बर्डन डिजीज स्टडी रिपोर्ट को डाउन टू अर्थ पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
बच्चों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रमुख प्रदूषक तत्व पार्टीकुलेट मैटर 2.5 (पीएम 2.5) अधिक प्रभाव डालता है। ये कण इतने महीन होते हैं कि सांस लेने के बाद शरीर के भीतर प्रवेश कर निचले फेफड़ों पर असर डालते हैं। रिपोर्ट के अनुसार देश की राजधानी दिल्ली में 0 से 5 वर्ष की आयु के प्रति एक लाख बच्चों में से 41.81 फीसद और 5 से 14 साल की आयु के 1.23 प्रतिशत बच्चे घर के अंदर होने वाले वायु प्रदूषण का शिकार हैं, जबकि भीतरी प्रदूषण से 0.19 प्रतिशत और बाहरी प्रदूषण के कारण 41.62 बच्चे अपनी जान गवा चुके हैं। हरियाणा की स्थिति तो और भी खराब है। यहां 0 से 5 वर्ष के 56.44 प्रतिशत और 5 से 14 वर्ष के 0.99 प्रतिशत बच्चे प्रभावित हैं, जिनमें से 16.3 प्रतिशत बच्चों की मौत हो जाती है, जबकि बाहरी प्रदूषण 40.44 फीसद बच्चों की जान लेता है। पंजाब में 0 से 5 साल की आयु के 39.55 प्रतिशत और 5 से 14 साल की आयु के 0.63 बच्चे भीतरी वायु प्रदूषण का शिकार हैं, जिनमें से 9.41 प्रतिशत बच्चों की मौत हो जाती है, जबकि 30.14 प्रतिशत बच्चों को भीतरी वायु प्रदूषण काल का ग्रास बना देता है।
मध्य प्रदेश के हालात तो काफी खराब है। यहां 0 से 5 आयु वर्ग के 85.51 प्रतिशत और 5 से 14 वर्ष के 2.42 प्रतिशत बच्चे घरों के भीतर होने वाले वायु प्रदूषण की चपेट में हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में दिल्ली, हरियाणा और पंजाब की अपेक्षा भीतरी वायु प्रदूषण अधिक बच्चों की जान ले रहा हैं। रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में 49.9 प्रतिशत बच्चों की घर के अंदर के और 35.6 प्रतिशत बच्चों की बाहरी प्रदूषण के कारण मौत हो रही है। प्रदूषण से मौत के मामले में राजस्थान में स्थिति भयावह होने के साथ ही चैकाने वाली भी है। यहां भीतरी वायु प्रदूषण से 0 से 5 साल की आयु के 46.28 प्रतिशत और 5 से 14 आयु वर्ग के 2.17 बच्चे प्रभावित हैं, जिनमें से 67.47 प्रतिशत बच्चों की जान भीतरी प्रदूषण ले रहा है, जबकि 58.56 प्रतिशत बच्चों की मौत का कारण बाहरी प्रदूषण है। ऐसा ही कुछ हाल उत्तर प्रदेश का है, जहां आंकड़ें राजस्थान से थोड़ा कम जरूर हैं, लेकिन राहत भरे नहीं। उत्तर प्रदेश में 0 से 5 वर्ष की आयु के 111.58 प्रतिशत और 5 से 14 वर्ष के 2.59 प्रतिशत बच्चे घर के अंदर होने वाले वायु प्रदूषण का शिकार हैं, जिनमें घर के अंदर के प्रदूषण से 39.22 प्रतिशत बच्चों की मौत हो रही है, जबकि बाहरी प्रदूषण से 72.66 प्रतिशत बच्चे असमय काल के गाल में समा रहे हैं, जो कि सबसे अधिक है। बिहार में भी बच्चे सुरक्षित और स्वच्छ हवा के लिए संघर्ष कर रहे हैं और यही संघर्ष अधिकांश बच्चांे की जान ले रहा है। रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 0 से 5 वर्ष के 105.95 प्रतिशत और 5 से 14 वर्ष की आयु के 3.46 प्रतिशत बच्चे अंदर होने वाले वायु प्रदूषण का शिकर हैं, जिनमें से 46.63 प्रतिशत बच्चों की जान भीतरी प्रदूषण ले लेता है और बाहरी प्रदूषण से 59.32 प्रतिशत लोगों की मौत हो रही है।
हिमालयी राज्यों में भी स्थिति खतरनाक
हिमालय को जीवन का आधार माना गया है, जो देश में बहने वाली नदियों का उद्गम स्थल हैं। शहरों की भागदौड़ भरी और प्रदूषणयुक्त जिंदगी से जब लोग परेशानी हो जाते हैं, तो दो वक्त सुकून से बिताने के लिए पहाड़ों का रुख करते हैं। स्वच्छ हवा और वातावरण में यहां की वादियों को आत्मसात कर अलौकिकता का एहसास करते हैं, लेकिन इन वादियों मंे भी जहर घुल रहा है और घर के बाहर ही नहीं, घर के अंदर भी बच्चों के प्राणों को लील रहा है। धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर की बात करें तो यहां 0 से 5 वर्ष के 59.9 और 5 से 14 वर्ष के 1.43 बच्चे घर के अंदर होने वाले वायु प्रदूषण का शिकार हैं, जबकि भीतरी वायु प्रदूषण 25.17 प्रतिशत और बाहरी प्रदूषण 34.73 प्रतिशत बच्चों की किलकारियों को इन वादियों के बीच हमेशा के लिए दफन कर देता है। यही हाल हिमाचल प्रदेश का है, जहां 0 से 5 वर्ष के 36.35 और 5 से 14 वर्ष के 0.81 प्रतिशत बच्चे भीतरी वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। जिनमें से भीतरी वायु प्रदूषण के कारण 18.7 प्रतिशत और बाहरी वायु प्रदूषण के कारण 17.65 प्रतिशत बच्चों को ठीक से खुशहाली से जीवन जीने अवसर तक प्राप्त नहीं होता और प्रदूषण उन्हें हमेशा के लिए खामोश कर देता है। देवभूमि उत्तराखंड में मानों वायु प्रदूषण काल बना हुआ हो। यहां भीतरी वायु प्रदूषण की चपेट में 0 से 5 वर्ष के 46.28 प्रतिशत और 5 से 14 साल के 1.07 प्रतिशत बच्चे हैं, जिनमें से 14.47 प्रतिशत बच्चांे की मौत का कारण भीतरी प्रदूषण है, तो बाहरी प्रदूषण 29.82 प्रतिशत बच्चों की जान लेता है।
हालाकि देश में भर वायु प्रदूषण से निपटने के लिए वृहद स्तर पर कवायद शुरू हो चुकी है। सरकार विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के प्रयासों का बखान करती है, लेकिन धरातल पर शासन और प्रशासन के प्रयास नाकाफी नजर आते हैं, जिस कारण बच्चों से उनका बचपन तो दूर, जीवन की छिन रह है। घरों की दहलीज सुनसान पड़ रही है और हर साल वायु प्रदूषण के कारण भारत में 12 लाख से अधिक घरों का चिराग बुझ जाता है। ऐसे में हम कैसे एक खुशहाल भारत की कल्पना कर सकते हैं। इसके समाधान के लिए सरकार को जल्द कोई उपाय करना होगा, वरना देश का भविष्य कहा जाने वाले बच्चों के लिए अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो जाएगा।
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