भारत विकास के पथ पर तीव्र गति से बढ़ रहा है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2030 तक भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा। इससे लोगों के जीवन में संपन्नता आएगी और लोग खुशहाली से जीवन व्यतीत करेंगे, लेकिन वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए ये सब मात्र एक कल्पना ही लग रहा है, क्योंकि जिस तरह भारत में वायु प्रदूषण, जल संकट और जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है, इससे भविष्य में इन सभी के प्रभावों की रोकथाम और इनसे उत्पन्न विभिन्न रोगों से रिपटने के लिए अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा हिस्सा खर्च होगा। ऐसे में भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा, लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर देश के 28 करोड़ (22 प्रतिशत आबादी) से अधिक गरीबों पर पड़ेगा। देश की यही करीब 22 प्रतिशत आबादी अमीरों द्वारा फैलाए गए वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित है। जिसकी ओर ध्यान देना तो दूर, लोग बात तक नहीं करते हैं।
देश में हाल ही में हुई कुछ घटनाओं से पर्यावरण का मुद्दा कहीं खो गया है। फिलहाल हर किसी की ज़ुबान पर नागरिकता संशोधन बिल है। कोई आजादी चाहता है, तो कोई न्याय, लेकिन जीवन देने वाले पर्यावरण की परवाह शाहद ही किसी को है। केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर तक इस बात से इनकार कर रहे हैं कि वायु प्रदूषण के कारण भारतीयों की आयु कम हो रही है। यहां तक कि उन्होंने इस बात को भी सिरे से नकार दिया कि वायु प्रदूषण आयु कम होने के संबंध में कोई भारतीय शोध भी है। हो सकता है कि वे भूल गए हों या अपने मंत्रालय की नाकामी को छिपो रहें हो या फिर पर्यावरण मंत्री होने के नाते उन्होंने पढ़ना लाज़मी न समझा हो कि दिसंबर 2018 में ही एक अध्ययन में चेतावनी दी गई थी कि वायु प्रदूषण के कारण भारत में आयु कम हो रही है। इस अध्ययन में भारत और विदेश के शीर्ष शोधकर्ता और सहयोगी भी शामिल थे, लेकिन प्रदूषण से निपटने के इंतजाम करने के बजाय, खुद पर्यावरण मंत्री ही शोधों को नकार रहे हैं। इससे अभी तो गरीब ज्यादा त्रस्त हैं, लेकिन भविष्य में हर वर्ग पर प्रभाव पड़ेगा।
दरअसल, अमीर वर्ग के वाहन, उद्योग और कानखाने हवा, पानी और जमीन में ज़हर घोल रहे हैं। पानी के ज़हर से बचने के लिए अमीर लोग उच्च गुणवत्ता के आरओ लगवाते हैं, या बोतलबंद पानी खरीदते हैं। ज़हरीली जमीन पर उगी फसलें वे खाते नहीं और अधिक पैसा देकर जैविक उत्पाद खरीदते हैं। तो वहीं वायु प्रदूषण से बचने के लिए एयर प्यूरीफायर घरों और दफ्तरों में लगवाते हैं। जिस कारण इन अमीरों पर गरीबों की अपेक्षा वायु प्रदूषण का असर कम पड़ता है और ये बीमार भी कम पड़ते हैं, लेकिन इन सभी सुख सविधाओं से मुखातिब होना गरीबों के लिए केवल सपना है। क्योंकि ये वो गरीब हैं, तो शहरों के प्रदूषण भरे इलाकों में दिनभर ठेला लगाने, मोची, रिक्शा चालक, मजदूर आदि होते हैं, जो रोजाना दिनभर काम करते है। इसी से उनका घर चलता है, बच्चे पढ़ते हैं। इस अभाव में इनके पास अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने का भी समय नहीं होगा। एक दिन भी यदि काम न किया तो रोजी रोटी के लाले पड़ जाते हैं। लाइफकोर्स इपिडेमिलाॅजी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन के प्रोफेसर और अध्यक्ष गिरिधर बाबू ने भी अमर उजाला में छपे एक लेख में कहा कि पूरे समाज पर वायु प्रदूषण के जोखिमों को असमान रूप से असर पड़ता है। सामाजिक और आर्थिक रूप से गरीबों का स्वास्थ्य खराब होने की संभावना अधिक रहती है।
इस समस्या के बावजूद भी हम केवल देश की राजधानी दिल्ली और गुरुग्राम के प्रदूषण के बारे में ही बात करते हैं, लेकिन देश में फैली इस असमानता तक पहुंचने की जहमत कोई नहीं उठाता और न ही सरकार इस असमानता का कारण पता लगाने का प्रयास करती है। हालाकि इस असमानता और वायु प्रदूषण का कारण तो सभी को पता है, लेकिन इसके समाधान से सरकार और समाज का एक तबका नजरे चुराता है। यही तबका सबसे ज्यादा धनी और संसाधनयुक्त है, किंतु सरकार के साथ ही सभी को ये समझना होगा कि इस वायु प्रदूषण को दूर करने के साथ ही इस असमानता का समाधान करना होगा, वरना आज गरीब वर्ग अधिक प्रभावित है, लेकिन कल कर कोई प्रभावित होगा और खुद का अस्तित्व बचाना मुश्किल होगा।
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