पर्यटन आज दुनिया का सबसे बड़ा उद्योग है और पर्यावरण-पर्यटन उद्योग का सबसे तेजी से बढ़ने वाला हिस्सा है। कोस्टा रिका और बेलिज जैसे देशों में विदेशी मुद्रा अर्जित करने का सबसे बड़ा स्रोत पर्यटन ही है जबकि गुवाटेमाला में इसका स्थान दूसरा है। समूचे विकासशील उष्णकटिबंधी क्षेत्रों में संरक्षित क्षेत्र प्रबंधकों और स्थानीय समुदायों को आर्थिक विकास और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता के बीच सन्तुलन कायम करने के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है। पर्यावरण-पर्यटन भी इस महत्त्वपूर्ण सन्तुलन का एक पक्ष है। सुनियोजित पर्यावरण-पर्यटन से संरक्षित क्षेत्रों और उनके आस-पास रहने वाले समुदायों को लाभ पहुँचाया जा सकता है। सामान्य शब्दों में पर्यावरण-पर्यटन या इको टूरिज्म का अर्थ है पर्यटन और प्रकृति संरक्षण का प्रबंध इस ढंग से करना कि एक तरफ पर्यटन और पारिस्थितिकी की आवश्यकताएँ पूरी हों और दूसरी तरफ स्थानीय समुदायों के लिये रोजगार- नये कौशल, आय और महिलाओं के लिये बेहतर स्तर सुनिश्चित किया जा सके। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2002 को अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण-पर्यटन वर्ष के रूप में मनाए जाने से पर्यावरण पर्यटन के विश्वव्यापी महत्व, उसके लाभों और प्रभावों को मान्यता दी गई है। अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण-पर्यटन वर्ष हमें विश्व स्तर पर पर्यावरण-पर्यटन की समीक्षा का अवसर प्रदान करता है ताकि भविष्य में इसका स्थायी विकास सुनिश्चित करने के लिये उपयुक्त साधनों और संस्थागत ढाँचे को मजबूत किया जा सके। इसका अर्थ है कि पर्यावरण-पर्यटन की खामियाँ और नकारात्मक प्रभाव दूर करते हुए इससे अधिकतम आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक लाभ प्राप्त किए जा सकें।
भारत एक ऐसा देश है जो पूरी तरह से प्राकृतिक संपदा से संपन्न है। यहां नदीं पहाड़, झरने, रेगिस्तान, एवं जगंल इत्यादि सभी कुछ है। जो इसे विविधताओं में एकता वाला राष्ट्र बनाते हैं। भारत में प्रकृति से जुड़े कई पर्यटन स्थल है जो ना केवल आपको प्रकृति के करीब ले जाने में मदद करते हैं बल्कि प्रकृति की विविधता और उसके सृजन को भी परिभाषित करते हैं। पर्यावरण पर्यटन प्रकृति से जुड़ा पर्यटन है जिसमें आप देश की संस्कृति, सभ्यता के साथ विभिन्न जीव-जंतुओं के बारे में भी जान पाते हैं।
पर्यावरण पर्यटन के लिए भारत में कुछ महत्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यानों में कॉर्बेट नेशनल पार्क (उत्तराखंड), बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान (मध्य प्रदेश), कान्हा राष्ट्रीय उद्यान (मध्य प्रदेश), गिर राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य (गुजरात) और रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान), गलगीबागा बीच, गोवा, टयडा आंध्रप्रदेश, चिल्का झील ,उड़ीसा, सुंदरवन नैशनल पार्क ,पश्चिम बंगाल, काज़ीरंगा नैशनल पार्क असम, कंचनजंगा जैवमंडल रिज़र्व सिक्किम, ग्रेट हिमालयन नैशनल पार्क हिमाचल प्रदेश इत्यादि शामिल हैं। इको-टूरिज्म की अवधारणा भारत में अपेक्षाकृत नई है। हालांकि, हाल के वर्षों में यह तेजी से बढ़ रहा है और अधिक से अधिक लोग अब इस धारणा से अवगत हों रहे हैं। जागरूकता फैलाने के लिए, भारत सरकार ने देश में पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय में पारिस्थितिक पर्यटन को लेकर विभाग भी स्थापित किया है। भारत में पर्यावरण लुप्त होने की कगार पर आ गया है जिसके लिए आज भारत वन्यजीव अभयारण्यों और संरक्षण कानून कई गया है। जानवरों और पौधों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए जो कई पशु और पादप अधिकार संगठन कर रहे हैं। नाजुक हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र और लोगों की संस्कृति और विरासत को संरक्षित करने के लिए कई जागरूक प्रयास किए गए हैं। इसके अलावा, छुट्टियों के शिविर (होटल आवास के बजाय) यात्रियों के बीच बहुत अधिक प्रचलित हो कगे हैं। केरल में हाउसबोट, विथिरी के पेड़ के घर और कर्नाटक के जंगलों में गहरे घोंसले रिसॉर्ट्स आवास के लिए पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं। इसके अलावा, उन लोगों के लिए ट्रैवल कंपनियों द्वारा कई 'ग्रीन टूर' भी पेश किए जाते हैं, जो प्रकृति का सर्वोत्तम अनुभव करना चाहते हैं।
तिरुवनंतपुरम से लगभग 72 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तनमाला भारत का पहला नियोजित पारिस्थितिक पर्यटन स्थान है। सुंदर पश्चिमी घाटों और शेन्दुरुनी वन्यजीव अभयारण्य के सुन्दर जंगलों से घिरा हुआ, तनमाला अपने एक तरह की कामकाजी और जैव-विविधता के लिए जाना जाता है। शाब्दिक अर्थ 'हनी हिल्स', तम्माला भारत में एक लोकप्रिय पारिस्थितिक पर्यटन स्थल बन गया है। एक साहसिक पार्क समेत अद्भुत मनोरंजन आकर्षण के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित कर्मचारियों और अविश्वसनीय सूचना सुविधाओं से, इस जगह में यह सब कुछ है। यह तीन प्रमुख क्षेत्रों में विभाजित है - अवकाश क्षेत्र, साहसिक क्षेत्र और संस्कृति क्षेत्र; प्रत्येक एक विशेष विषय के अनुसार डिजाइन किया गया। यहां पर कई रिसॉर्ट्स भी स्थित हैं जहां आगंतुक शांतिपूर्वक रह सकते हैं।
महाराष्ट्र में स्थित अंजता और एलोरा की गुफाएं सबसे प्राचीन पर्यावरणीय पर्यटन का स्थल है। यह सबसे लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों में से एक, के रुप में जानी जाती हैं। खासकर यदि आप एक वास्तुकला प्रेमी हैं। सांस्कृतिक सौंदर्य और धार्मिक इतिहास में आपकी रुचि है तो यह जगह बिल्कुल आप ही के लिए है। यहां की गुफाएं सुंदर और उत्तम दीवार चित्रों और कला का घर हैं जो बुद्ध और हिंदू धर्म के जीवन पर आधारित हैं। यह गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित हैं। बड़े-बड़े पहाड़ और चट्टानों को काटकर बनाई गई ये गुफाएं भारतीय कारीगरी और वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। अजंता की गुफाओं में ज्यादातर दीवारों पर की गई नक्काशी बौद्ध धर्म से जुड़ी हुई है जबकि एलोरा की गुफाओं में मौजूद वास्तुकला और मूर्तियां तीन अलग-अलग धर्मों से जुड़ी हैं- बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिंदू धर्म का प्रतीक हैं। अजंता एक दो नहीं बल्कि पूरे 30 गुफाओं का समूह है जिसे घोड़े की नाल के आकार में पहाड़ों को काटकर बनाया गया है और इसके सामने से बहती है एक संकरी सी नदी जिसका नाम वाघोरा है। एलोरा की गुफाओं में 34 मोनैस्ट्रीज और मंदिर हैं जो पहाड़ के किनारे पर करीब 2 किलोमीटर के हिस्से में फैला हुआ है। इन गुफाओं का निर्माण 5वीं और 10वीं शताब्दी के बीच किया गया था। एलोरा की गुफाएं पहाड़ और चट्टानों को काटकर बनाई गई वास्तुकला का सबसे बेहतरीन उदाहरण है। धार्मिक चित्रों, मूर्तियों और गुफाओं की प्राकृतिक सुंदरता पर्यावरण के अनुकूल आगंतुकों को उस समय की मौजूद संस्कृतियों में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह 572 छोटे द्वीपों का एक समूह है जो अपने निर्वासित जंगलों, स्पष्ट जल और सदाबहार पेड़ों के लिए जाने जाते हैं। चूंकि वे अन्य देशों के नजदीक स्थित हैं, इसलिए द्वीप विभिन्न वनस्पतियों और जीवों की एक विस्तृत श्रृंखला का एक घर हें। पर्यावरण पर्यटकों के लिए इस द्वीप के पास बहुत कुछ है। एक शांत वातावरण, स्वच्छ हवा, सुन्दर जंगल और एक समृद्ध समुद्र के साथ, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह कपर्यावरण पर्यटन के लिए सबसे पसंदीदा स्थानों में से एक बन गए हैं। आगंतुक घोर वर्षावन के माध्यम से स्नॉर्कलिंग, स्कूबा डाइविंग और ट्रेकिंग और लंबी पैदल यात्रा जैसी गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला का आनंद ले सकते हैं। रत की मुख्य भूमि से अलग यह जगह तैरते एम्राल्ड द्वीपों और चट्टानों का समूह है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह नारियल और खजूर की सीमा वाले, पारदर्शी पानी वाले, आकर्षक और खूबसूरत समुद्री तटों और उसके पानी के नीचे कोरल और अन्य समुद्री जीवन के लिए मशहूर हैं। यहां की प्रदूषण रहित हवा, पौधों और जानवरों की नायाब प्रजातियों की मौजूदगी की वजह से इस जगह से प्यार हो जाता है।
नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान हिमालय में एक अविश्वसनीय जैव विविधता के साथ असाधारण रूप से सुंदर पार्क हैं। भारत के दूसरे सबसे ऊंचे पर्वत नंदा देवी का प्रभुत्व, नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान अपने निर्बाध पर्वत जंगल के लिए जाना जाता है और सुंदर ग्लेशियर और अल्पाइन मीडोज़ के पक्ष में है। राष्ट्रीय उद्यान के तौर पर नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 1982 में हुई थी। यह उत्तरी भारत में उत्तराखंड राज्य में नंदा देवी की चोटी (7816 मी) पर स्थित है। वर्ष 1988 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया था। फूलों की घाटी दुर्लभ प्रजातियों के लिए घर जाने के लिए जाना जाता है। फूलों का एक शानदार क्षेत्र यहां देखने को मिलता है। इस उद्यान में 17 दुर्लभ प्रजातियों समेत फूलों की कुल 312 प्रजातियां हैं। देवदार, सन्टी/ सनौबर, रोडोडेंड्रन (बुरांस) और जुनिपर यहां की मुख्य वनस्पतियां हैं। नंदा देवी राष्ट्रीौय पार्क में आकर पर्यटक, हिम तेंदुआ, हिमालयन काला भालू, सिरो, भूरा भालू, रूबी थ्रोट, भरल, लंगूर, ग्रोसबिक्सम, हिमालय कस्तूकरी मृग और हिमालय तहर को देख सकते हैं। इस राष्ट्रीसय पार्क में लगभग 100 प्रजातियों की चिडि़यों का प्राकृतिक आवास है। यहां आमतौर पर देखी जाने वाली चिडि़यां औरेंज फ्लैंक्डप बुश रॉबिन, ब्लू फ्रांटेड रेड स्टाौर्ट, येलो बिल्ला इड फेनटेल फ्लाईकैचर, इंडियन ट्री पिपिट और विनासिॅयास ब्रेस्टेौड पिपिट हैं।
राजस्थान के भरतपुर में स्थित, केवलादेव नेशनल पार्क मानव निर्मित आर्द्रभूमि है और भारत में सबसे प्रसिद्ध अभयारण्यों में से एक है जो पक्षियों की हजारों प्रजातियों का घर है। इस राष्ट्रीय उद्यान में 379 से अधिक पुष्प प्रजातियां, 366 पक्षी प्रजातियां, मछली की 50 प्रजातियां, छिपकलियों की 5 प्रजातियां, 13 सांप प्रजातियां, 7 कछुए प्रजातियां और 7 उभयचर प्रजातियां हैं। केवलादेव नेशनल पार्क देश के सबसे अमीर पक्षि विहारों में में से एक है, खासकर सर्दियों के महीनों के दौरान यहां देश-विदेशी पक्षियों का जमावड़ा लगता है। पार्क में कई किफायती आवास विकल्प उपलब्ध हैं और इसे पूरी तरह से तलाशने का सबसे अच्छा तरीका पैर, बाइक या रिक्शा पर है। यह सभी पर्यावरण-पर्यटकों और पक्षी प्रेमियों के लिए एक जरूरी जगह है। पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था। इस पक्षी विहार में हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त जाति के पक्षी पाए जाते हैं, जैसे साईबेरिया से आये सारस, जो यहाँ सर्दियों के मौसम में आते हैं। 1985 में इसे यूनेस्को की विश्व विरासत भी घोषित कर दिया गया था। मानसून के मौसम के दौरान देश के प्रत्येक भागों से पक्षियों के झुंड यहाँ आते हैं। पानी में पाए जाने कुछ पक्षी जैसे सिर पर पट्टी और ग्रे रंग के पैरों वाली बतख, कुछ अन्य पक्षी जैसे पिनटेल बतख, सामान्य छोटी बतख, रक्तिम बतख, जंगली बतख, वेगंस, शोवेलेर्स, सामान्य बतख, लाल कलगी वाली बतख, और गद्वाल्ल्स यहाँ पाए जाते हैं। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटक अन्य पक्षी जैसे शाही गिद्ध, मैदानी गिद्ध, पीला भूरा गिद्ध, धब्बेदार गिद्ध, हैरियर गिद्ध और सुस्त गिद्ध देख सकते हैं। पक्षियों के अलावा पर्यटक जानवर जैसे काला हिरन, पायथन, साम्बर, धब्बेदार हिरण और नीलगाय देख सकते हैं।
उत्तरी कर्नाटक में पर्णपाती जंगलों और एक विविध वन्यजीवन से घिरा हुआ, दांदेली पर्यटकों को एक अद्वितीय प्राकृतिक सुंदरता प्रदान करता है। यह छोटा आधुनिक शहर रोमांचक वन्यजीव अभ्यारण्य, प्रकृति के चलने, आरामदायक कयाक सवारी, सफेद पानी राफ्टिंग, नौकायन, पक्षी देखने, रात शिविर, ट्रेकिंग, शांतिपूर्ण पिकनिक, मगरमच्छ और बाघ की खोज और आस-पास की गुफाओं के लिए रोमांचक यात्रा सहित अपने पर्यटकों के लिए कई आकर्षण प्रदान करता है। पश्चिमी घाट के घने पतझड़ जंगलों सो घिरा दांदेली दक्षिण भारत के साहसिक क्रीड़ा स्थल के रूप में जाना जाता है। यहाँ पर भौंकने वाले हिरन, साँभर, चित्तीदार हिरन जैसे जंगली जानवरों के साथ-साथ पीले पैर वाले कबूतरों, ग्रेट पाइड हॉर्नबिल, क्रेस्टेड सर्पेन्ट ईगल और पीफाउल जैसे पक्षियों को देख सकते हैं। यहाँ पर पक्षियों की लगभग 200 प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें ऐशी स्वालो श्राइक, ड्रॉंगो, ब्राहमिनी काइट, मालाबार हॉर्नबिल और मिनीवेट शामिल हैं।
लक्षद्वीप द्वीप दुनिया में सबसे प्रभावशाली उष्णकटिबंधीय द्वीप प्रणालियों में से हैं। 4200 वर्ग किलोमीटर से अधिक में फैला हुआ लक्षद्वीर 36 द्वीपों का एक छोटा सा समूह हैं, जो समुद्री जीवन से अत्यधिक समृद्ध हैं। चूंकि इन द्वीपों की संस्कृति और पारिस्थितिकता को बेहद नाजुक पारिस्थितिक तंत्र द्वारा समर्थित किया जाता है, इसलिए केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप द्वीप समूह पर्यावरण-पर्यटन के कारण प्रतिबद्ध हैं और आस-पास के माहौल की रक्षा करते समय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सावधानी से पालन किया जाता है। यहां पर प्रत्येक द्वीप सुंदरता, समृद्ध समुद्री संपत्ति, रंगीन मूंगा चट्टानों, सुनहरे समुद्र तटों, स्पष्ट जल, अप्रचलित वातावरण के संदर्भ में भिन्न है । लक्षद्वीप का सबसे बड़ा आकर्षण है- प्राचीन सुंदरता और सुकून की जिंदगी। शहरी भाग-दौड़ और व्यस्त दिनचर्या के कोलाहल से दूर, आपको यहां सिर्फ समुद्री तटों से टकराती लहरों की आवाज सुनाई देगी। इस द्वीप पर आपको स्कूबा डाइविंग, स्नोर्कलिंग, कयाकिंग, कैनोइंग, विंडसर्फिंग, याच और इसी तरह की कई अन्य रोमांचक गतिविधियां मिल जाएंगी।
राजस्थान के अलवर से 37 किलोमीटर दूर स्थित, सरिस्का टाइगर रिजर्व भारत में प्रमुख वन्यजीव अभयारण्यों में से एक है। भले ही यह रणथंभौर से बड़ा है, लेकिन यह कम व्यावसायिक है और इसमें विविध वन्यजीवन की एक विस्तृत श्रृंखला है, जो इसे पारिस्थितिकीय सहिष्णुता का एक आदर्श उदाहरण बनाती है। एक विशिष्ट पारिस्थितिक तंत्र के साथ, सरिस्का टाइगर रिजर्व अद्वितीय वनस्पतियों और जीवों की कई प्रजातियों का घर है। अरावली पहाड़ियों के संकीर्ण घाटियों और तेज चट्टानों पर स्थित, सरिस्का टाइगर रिजर्व का शानदार परिदृश्य पर्णपाती पेड़ों और उत्कृष्ट घास के मैदानों से भरा हुआ है Iसरिस्का को वन्य जीव अभ्यारण्य का दर्जा 1955 में मिला, और जब प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत हुई, तो 1978 में इसे टाइगर रिजर्व बना दिया गया। कुछ ही सालों बाद इसे राष्ट्रीय पार्क घोषित कर दिया गया। अरावली पर्वत श्रंखला के बीच स्थित यह अभ्यारण्य बंगाल टाइगर, जंगली-बिल्ली, तेंदुआ, धारीदार लकड़बग्घा, सुनहरे सियार, सांभर, नीलगाय, चिंकारा जैसे जानवरों के लिए तो जाना ही जाता है, मोर, मटमैले तीतर, सुनहरे कठफोड़वा, दुर्लभ बटेर जैसी कई पक्षियों का बसेरा भी है। सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान विविध प्रजातियों के जंगली जानवरों-तेंदुए, चीतल, सांभर, नीलगाय, चार सींग वाला हिरण, जंगली सुअर, रीसस मकाक, लंगूर, लकड़बग्घा और जंगली बिल्लियों का शरणस्थल है।
कॉर्बेट नेशनल पार्क भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य है जो टाइगर परियोजना का हिस्सा बन गया है। यह वनस्पति और बड़ी संख्या में बाघों के लिए जाना जाता है, कॉर्बेट नेशनल पार्क 110 पेड़ प्रजातियों, 580 पक्षी प्रजातियों, सरीसृपों की 25 प्रजातियों और 50 स्तनपायी प्रजातियों का घर है। कॉर्बेट नेशनल पार्क वन्य जीव प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग है जो प्रकृति की शांत गोद में आराम करना चाहते हैं। पहले यह पार्क (उद्यान) रामगंगा राष्ट्रीय उद्यान के नाम से जाना जाता था परंतु वर्ष 1957 में इसका नाम कॉर्बेट नेशनल पार्क (कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान) रखा गया। यह भारत में जंगली बाघों की सबसे अधिक आबादी के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्द है और जिम कॉर्बेट पार्क लगभग 160 बाघों का आवास है। इस पार्क में दिखाई देने वाले जानवरों में बाघ, चीता, हाथी, हिरण, साम्बर, पाढ़ा, बार्किंग हिरन, स्लोथ भालू, जंगली सूअर, घूरल, लंगूर और रेसस बंदर शामिल हैं। इस पार्क में लगभग 600 प्रजातियों के रंगबिरंगे पक्षी रहते है जिनमें मोर, तीतर, कबूतर, उल्लू, हॉर्नबिल, बार्बिट, चक्रवाक, मैना, मैगपाई, मिनिवेट, तीतर, चिड़िया, टिट, नॉटहैच, वागटेल, सनबर्ड, बंटिंग, ओरियल, किंगफिशर, ड्रोंगो, कबूतर, कठफोडवा, बतख, चैती, गिद्ध, सारस, जलकाग, बाज़, बुलबुल और फ्लायकेचर शामिल हैं। इसके अलावा यात्री यहाँ 51 प्रकार की झाडियाँ, 30 प्रकार के बाँस और लगभग 110 प्रकार के विभिन्न वृक्ष देख सकते हैं। कॉर्बेट नेशनल पार्क आने वाले पर्यटकों के लिए कोसी नदी रॉफ्टिंग का अवसर प्रदान करती है।
पर्यावरण-पर्यटन का सिद्धान्तों, दिशा-निर्देशों और स्थिरता मानदंडों पर आधारित) प्रमाणन की ओर अभिमुख होना इसे पर्यटन क्षेत्र में असाधारण स्थान प्रदान करता है। पहली बार इस धारणा को परिभाषित किए जाने के बाद के वर्षों में पर्यावरण-पर्यटन के अनिवार्य बुनियादी तत्वों के बारे में आम सहमति बनी है जो इस प्रकार है: भली-भाँति संरक्षित पारिस्थितिकी-प्रणाली पर्यटकों को आकर्षित करती है, विभिन्न सांस्कृतिक और साहसिक गतिविधियों के दौरान एक कर्तव्यनिष्ठ, कम असर डालने वाला पर्यटक व्यवहार, पुनर्भरण न हो सकने वाले संसाधनों की कम से कम खपत, स्थानीय लोगों की सक्रिय भागीदारी, जो प्रकृति, संस्कृति अपनी जातीय परम्पराओं के बारे में पर्यटकों को प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध कराने में सक्षम होते हैं और अंत में स्थानीय लोगों को पर्यावरण-पर्यटन का प्रबंध करने के अधिकार प्रदान करना ताकि वे जीविका के वैकल्पिक अवसर अपनाकर संरक्षण सुनिश्चित कर सकें तथा पर्यटक और स्थानीय समुदाय-दोनों के लिये शैक्षिक घटक शामिल कर सकें। पर्यावरण-अनुकूल गतिविधि होने के कारण पर्यावरण-पर्यटन का लक्ष्य पर्यावरण मूल्यों और शिष्टाचार को प्रोत्साहित करना तथा निर्बाध रूप में प्रकृति का संरक्षण करना है। इस तरह यह पारिस्थिति-विषयक अखंडता में योगदान करके वन्य जीवों और प्रकृति को लाभ पहुँचाता है। स्थानीय लोगों की भागीदारी उनके लिये आर्थिक लाभ सुनिश्चित करती है जो आगे चलकर उन्हें बेहतर स्तर और आसान जीवन उपलब्ध कराती है। आज के समय में भारत सरकार की प्राथमिकता पर्यावरण पर्यटन है।
लेखक
डाॅ. दीपक कोहली, उपसचिव
वन एवं वन्य जीव विभाग, उत्तर प्रदेश
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