वैज्ञानिकों ने ढूंढा पर्यावरण संतुलन का तरीका

Submitted by Shivendra on Mon, 07/15/2019 - 11:12
Source
हिंदुस्तान, 15 जुलाई 2019

90 करोड़ हेक्टेयर में करना होगा पौधारोपण। 90 करोड़ हेक्टेयर में करना होगा पौधारोपण।

यह कोई रॉकेट साइंस नहीं है। सड़क चलते किसी आदमी से भी अगर आप पूछें कि पर्यावरण में बदलाव और प्रदूषण से लड़ने का क्या तरीका है, तो ज्यादातर मामलों में वह यही कहेगा कि पेड़ लगाओ और हरियाली बढ़ाओं। यह तकरीबन हर कोई जानता है कि जैसे-जैसे जंगल काटे गए, धरती प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन की चपेट में आती गई है। इसलिए यह आसानी से समझ में आ जाता है कि इसका उल्टा रास्ता ही हमारा कल्याण कर सकता है। वृक्षारोपण हमारी धरती के बहुत सारे वर्तमान और भावी दुखों को दूर कर सकता है। ऐसा तमाम तरह के वैज्ञानिक और विशेषज्ञ मानते हैं, लेकिन कितने पेड़ लगाए जाएं कि वह हमारी धरती के सारे दुख दर्द हर लें। इसका आकलन अब जाकर करने की कोशिश की गई है। यह सोचना आसान है कि पेड़ों से ग्लोबल वार्मिंग रुक जाएगी, लेकिन कार्बन उत्सर्जन जिस तरह से बढ़ रहा है, उसे अवशोषित करने के लिए हमें कितने पेड़ चाहिए यह आकलन आसान भी नहीं था। खासकर तब जब हमारा लक्ष्य धरती के तापमान को वहां पहुंचाने का है, जहां एक सदी पहले हमारे दादा के जमाने में था। क्रोेथर लैब और ईटीएच ज्यूरिख नाम की दो शोध संस्थाओं ने विस्तृत अध्ययन के बाद इस गणित को साधने की कोशिश की है।

इन संस्थाओं का निष्कर्ष है कि पर्यावरण परिवर्तन के रुझान को पलटने के लिए दुनिया में कम से कम 90 करोड़ हेक्टेयर में नए जंगल स्थापित करने होंगे। यानी लगभग उतनी जमीन पर जितना बड़ा पूरा अमेरिका है या दूसरी तरह से देखें तो भारत से लगभग 3 गुना बड़ी धरती पर। और हां यहां नए जंगलों की बात हो रही है, यानी पुराने जंगलों को नुकसान पहुंचाए बिना हमें नए जंगल लगाने होंगे। इसके लिए जहां-तहां, जैसे-तैसे पेड़ लगाने से काम नहीं चलेगा शोधकर्ताओं ने कहा है कि इसके लिए सही जगह पर सही तरह से पेड़ लगाकर ही समाधान पाया जा सकता है। यदि हम सब का बीड़ा उठा लें तो यह एक ऐसा अभियान होगा जितना बड़ा अभियान मानव जाति ने कभी नहीं चलाया। यह चुनौती जितनी बड़ी लगती है, उससे कहीं ज्यादा कठिन भी है। खासकर यह देखते हुए कि जंगल अभी भी कट रहे हैं और लगातार कट रहे हैं। हमारी समस्या का एक बड़ा कारण यह भी है कि बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही हमने दुनिया से बहुत बड़े जंगलों का सफाया किया है। इसी से जुड़ा सवाल यह भी है कि जमीन हम लाएंगे कहां से।

यह सब जितना कठिन है उतना ही मुश्किल है, उस मानसिकता को बदलना जो जंगलों को इंसान के फेफड़े मानने के बजाय उन्हें महज़ जरूरतें पूरी करने के संसाधन मानती है। मानसिकता के साथ ही तौर-तरीके, रीति-रिवाज और जीवनशैली सब कुछ बदलना पड़ेगा। इतना भर ही हो जाए तो हम समाधान की ओर बढ़ने लगेंगे। हमें यह भी याद रखना होगा कि जंगलों को बचाने और लगाने के साथ-साथ उन समुंद्री शैवलों की विशाल कॉलोनी को भी बचाना है, जो धरती के पर्यावरण में शायद सबसे बड़ा योगदान देती हैं और उन पर भी संकट मंडरा रहा है। खैर वैज्ञानिकों ने तो अपना आकलन दे दिया, अब यह संकल्प लेने का समय है।

 

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