जलवायु परिवर्तन के कारण जमीन के बंजर होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। कम होती बारिश और घटता जल जमीन को सुखा रहा है। ऐसे में भारत की जमीन तेजी से मरुस्थलीकरण की चपेट में आ रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली आपदाएं इस समस्या को और बढ़ा देती हैं, लेकिन किसी भी आपदा से कई गुना बड़ी आपदा ‘सूखा’ है। क्योंकि भूंकप और बाढ़ जैसी आपदाएं पलभर में सब कुछ तबाह करके चली जाती हैं, और एक निश्चित इलाके को प्रभावित करती हैं, लेकिन सूखे का असर पूरे देश पर लंबे समय तक रहता है। क्योंकि इस जमीन से पैदा होती है फसल, जो करोड़ों लोगों के पेट की भूख मिटाती है। आंकड़ें बताते हैं कि वर्ष 1900 से लेकर 2010 के बीच दुनिया भर के दो अरब से ज्यादा लोग सूखे से प्रभावित हो चुके हैं, जबकि सूखे के कारण एक करोड़ से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। भारत के लिए भी सूखा नया नहीं है। हर साल भारत की लाखों हेक्टेयर जमीन सूखे की चपेट में आती है। करोड़ों लोग इससे प्रभावित होते हैं। कई बार तो सूखे के चलते किसान आत्महत्या तक कर लेते हैं।
1997 के बाद देश के सूखागस्त क्षेत्र में 57 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अर्थ सिस्टम साइंस ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार हाल के दशकों में मल्टी ईयर ड्राउट (24 महीने) में वृद्धि हुई है। डाउन टू अर्थ के अनुसार 1951 से 2010 के बीच 12 मल्टी ईयर ड्राउट दर्ज किए गए हैं, जबकि 1901 से 1950 के बीच ऐसे केवल 3 सूखे दर्ज किए गए थे। 1977 से 2010 के बीच सूखे की आवृत्ति बढ़ी है। 1901 से 2017 के बीच राजस्थान में 22 हल्के सूखे पड़े, जबकि 11 भयंकर सूखे का राजस्थान को सामना करना पड़ा था। तो वहीं राष्ट्रीय औसत से अधिक बारिश होने के बाद भी केरल के कुछ इलाकों को भी सूखे का सामना करना पड़ा था।
दैनिक जागरण की एक खबर में बताया गया कि केंद्रीय जल आयोग के आंकड़ों के अनुसार 1953 से 2017 के बीच भारत में बाढ़ से कुल 1,07,487 लोगों की मौत हुई है। इसमें 3,65,860 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। ड्राउट अर्ली वार्निंग सिस्टम के आंकड़ें दर्शाते हैं कि 6 जून 2018 (एक साल) तक देश का 43.2 प्रतिशत क्षेत्र सूखे से प्रभावित था, जो 16 जून 2019 में बढ़कर 43.79 प्रतिशत हो गया था। लेकिन 2020 में सूखे में भारी गिरावट दर्ज की गई है, यानि सूखे में रिकाॅर्ड कमी आई है। इस बार 16 जून तक केवल 6.66 प्रतिशत हिस्से पर ही सूख पड़ा है। सूखा कम पड़ने का कारण प्री-मानसून की मेहरबानी भी है।
भारत में सूखे के 2019 और 2020 के आंकड़ें
भारतीय मौसम विज्ञान के अनुसार इस साल पूरे देश में मानसून के दौरान लंबी अवधि के औसत यानी एलपीए से 31 प्रतिशत से अधिक बारिश हुई है। उत्तर पश्चिम भारत में 22.8 मिलीमीटर की अपेक्षा इस साल 27.2 मिलीमीटर अधिक बारिश हुई है, जो कि सामान्य से 19 प्रतिशत ज्यादा है। मध्य भारत में 46.9 मिलीमीटर की अपेक्षा 91 (94 प्रतिशत अधिक) मिलीमीटर बारिश हुई है। दक्षिण प्रायद्वीपीय भारत में 66.9 मिलीमीटर के स्थान पर 80.2 मिलीमीटर (20 प्रतिशत अधिक) बारिश हुई है। हालांकि पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में सामान्य से 4 प्रतिशत कम बारिश हुई है। यहां हर साल 137.4 मिलीमीटर बारिश होती है, लेकिन इस बार 131.8 मिलीमीटर ही बारिश हुई।
राजस्थान में तो प्री-मानसून इस बार काफी ज्यादा मेहरबान रहा। मार्च में यहां सामान्यतः 4.1 मिलीमीटर बारिश होती है, लेकिन इस बार 20.2 मिलीमीटर (394 प्रतिशत अधिक) बारिश हुई। हालांकि अप्रैल और मई में भी काफी बारिश दर्ज की गई है। इसका ही नजीता है कि इस बार सूखे में रिकाॅर्ड गिरावट दर्ज की गई है। वैसे तो सूखे में गिरावट खुशी की बात है, लेकिन इस प्रकार की बारिश जलवायु परिवर्तन को दर्शाती है, जिसका फसलों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे में जलवायु को रोकने के गंभीरता से उपाय करने होंगे। क्योंकि सूखे में गिरावट आना अस्थायी है और जलवायु परिवर्तन के कारण मरुस्थलीकरण का स्थायी प्रभाव नजर आ रहा है। इसलिए जलवायु परिवर्तन को रोकने की जरूरत है और इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
हिमांशु भट्ट (8057170025)