सफाई की आर्थिक बाजू है, मैले आदि का खाद के तौर पर उपयोग करना। फसलों को याने जमीन को खाद की कितनी जरूरत है, यह सभी जानते हैं। खाद, खातर (गुजराती), खत (मराठी) आदि शब्द शायद ‘खाद्य’ शब्द से बने हैं। याने खाद, भूमाता का खाद्य-अन्न-है। जिस तरह गोमाता घास आदि खाद्य खाकर हमें मधुर दूध देती है, वैसे ही यह दूसरी गो याने पृथ्वी-माता खाद-रूपी खाद्य खाकर फसलों के रूप में हमें मधुर रस देती है।सभ्यता और सम्पत्ति, दोनों को कायम रखने वाला सफाई का जो तरीका हमें चाहिए, वह हमने देखा। पुरानी भाषा में धर्म और अर्थ, दोनों देने वाला तरीका हमें चाहिए। गांधीजी ने कहा है कि जो धर्म और अर्थ एक-दूसरे की कसौटी पर खरे नहीं उतरते, वे टिकने वाले नहीं है। सफाई की आर्थिक बाजू है, मैले आदि का खाद के तौर पर उपयोग करना। फसलों को याने जमीन को खाद की कितनी जरूरत है, यह सभी जानते हैं। खाद, खातर (गुजराती), खत (मराठी) आदि शब्द शायद ‘खाद्य’ शब्द से बने हैं। याने खाद, भूमाता का खाद्य-अन्न-है। जिस तरह गोमाता घास आदि खाद्य खाकर हमें मधुर दूध देती है, वैसे ही यह दूसरी गो याने पृथ्वी-माता खाद-रूपी खाद्य खाकर फसलों के रूप में हमें मधुर रस देती है। खाद का महत्व आदमी को खेती के आरम्भ-काल से ही अवश्य मालूम हुआ होगा। खाद से फसलों को होनेवाले लाभों का वर्णन संक्षेप में हम इस प्रकार कर सकते हैं।
“पौधों की संतोषजनक बाढ़ के लिए, जिसे हम साँस के द्वारा बाहर छोड़ते हैं, वह कार्बन-डाई-आक्साइड, जल, प्राणवायु, नाइट्रोजन, फास्फोरस अधिक मात्रा में और पोटाश, गंधक, चूना, मैगनेशियम, लोहा, आयोडीन, वोरन और मैंगनीज सूक्ष्म मात्रा में चाहिए। नाइट्रोजन से धड़, शाखाएँ और पत्ते पुष्ट होते हैं। इसलिए बढ़ने के दिनों में नाइट्रोडजन युक्त खाद की जरूरत होती है। यों तो सभी फसलों को इससे लाभ होता है, परन्तु पत्तेदार और फूलदार पौधे इससे विशेष प्रभावित होते हैं। फास्फोरस से, पहले जड़ों की पुष्टि होती है और बाद में फल और बीज के लिए उसका उपयोग होता है। फास्फोरस से पौधों के दृढ़ और निरोग होने में सहायता पहुँचती है और फसलें कुछ जल्द तैयार होती हैं। फलदार पौधों के लिए फास्फोरसयुक्त खाद जरूर देनी चाहिए। पोटाश से कंददार (यथा शकरकंद, गाजर, मूली, आलू, वगैरा) और फलदार फसल को लाभ होता है। नाइट्रोजन की अधिकता से होनेवाले नुकसान को यह रोकता है।”
ऊपर के उद्धरण से एक बात ध्यान में आयेगी की खाद में अनेक द्रव्य होते हैं, लेकिन उनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश ही मुख्य हैं। इसलिए खाद का महत्व इससे निश्चित किया जाता है कि ऊपर के तीन द्रव्य उसमें कितनी मात्रा में हैं। तीन द्रव्यों में भी नाइट्रोजन का महत्व सबसे अधिक है, इसलिए खाद-द्रव्य में नाइट्रोजन कितनी मात्रा में है, इतना ही कभी-कभी देखा या बोला जाता है।
खाद के बारे में सोचते हुए, बोलने-लिखने में, सजीव, जीवित या सेंद्रिय (आर्गेनिक) और निर्जीव, मृत या निरिंद्रिय (इन-ऑर्गेनिक), इन दो शब्दों का बहुत उपयोग होता है। इसलिए हम इनकी थोड़ी जानकारी कर लें। दो हिस्सों में सारी चीजों को बाँटने की रीति के अनुसार विज्ञान में सारे पदार्थों को सेंद्रीय और निरिंद्रिय ऐसे दो विभागों में बाँटा जाता है। जिनकी उत्पत्ति सजीव याने चेतन वस्तु से होती है, उन्हें सेंद्रिय और जिनकी उत्पत्ति जड़ वस्तु से होती है, उन्हें निरिंद्रिय करते हैं। पेड़, पत्ते, जड़े, हड्डियाँ, बाल आदि सेंद्रिय और पत्थर, धातु आदि निरिंद्रिय हैं। असल में इनके चेतनमूल व जड़मूल, ऐसे नाम अधिक अर्थबोधक होते, लेकिन अंग्रेजी में उन्हें ऑर्गेनिक और इन-ऑर्गनिक कहते हैं और ऑर्गन याने इंद्रिय, इसलिए सेंद्रिय और निरिंद्रिय शब्द रूढ़ हुए दिखते हैं।
पदार्थों की तरह खाद भी दो प्रकार की होती है। सजीव या सेंद्रिय (ऑर्गेनिक) और निर्जीव, निरिंद्रिय या कृत्रिम (इनॉर्गनिक या केमिकल फर्टिलाइजर्स)। सजीव खाद याने घास-पात, पशुओं और मनुष्यों के मल-मूत्र से बनी हुई खाद। निर्जीव खाद याने भिन्न-भिन्न प्रकार के खनिज द्र्व्यो से बनी हुई खाद। इनमें से सजीव खाद का महत्व नीचे के उद्धरण से मालूम होगा।
“जमीन एक तरह से पौधों के लिए भोजन बनाने का कारखाना है, जिसमें हवा व नमी की सहायता से असंख्य जीवाणु दिन-रात अपना कार्य करते रहते हैं। जमीन के अन्दर यह कार्य व्यवस्थित रूप से चलते रहने के लिए इस बात की आवश्यकता है कि जमीन की ऊपरी सतह के रजकण हमेशा खुले रहें, उनमें हवा खेलती रहे और केशाकर्षण शक्ति से जमीन के रस का बिना रुकावट जमीन में अभिसरण होता रहे। जिसे जमीन का पोत कहते हैं, वह मिट्टी के कणों की व्यवस्थिति का ही नाम है। कुदरती कारणों में कोई जमीन चिकनी होती है और कोई बहुत फोसन (भुरभुरी)। चिकनी जमीन के रज-कण एक दूसरे अति नजदीक या चिपके हुए रहते हैं, तो फोसन के प्रति दूर। इन दोनों हालतों में अभिसरण-क्रिया ठीक नहीं चल सकती। यदि गले हुए सेंद्रिय द्रव्य जमीन में काफी हों, तो दोनों प्रकार की जमीनों की अभिसरण की शक्ति बढ़ जाती है। चिकनी जमीन के रज-कण एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। और पोसन जमीन के कण सेंद्रीय कणों से जोड़े जाते हैं। इस तरह दोनों प्रकार की जमीनों की रचना व्यवस्थित हो जाने से जमीन के जीवाणु पोषक द्रव्यों को पौधों के भोजन-योग्य बनाने में सफल बन सकते हैं। जमीन के पोत यदि ठीक हालत में न हों, तो खाद द्वारा दिये हुए पोषक द्रव्यों का पूरा-पूरा उपयोग नहीं हो सकता। इस तरह जमीन को कारगर रखने का काम गले हुए सेंद्रिय द्रव्यों का है, और यह काम बुनियादी होने से उसका महत्व है। भारत जैसे गरम देश में इसका बहुत महत्व है, क्योंकि गरमी की वजह से सेंद्रीय द्रव्य कुदरती तौर पर धीरे-धीरे जमीन से नष्ट होते रहते हैं। और उसकी पूर्ति करते रहना भारतीय कृषि की बड़ी-से-बड़ी समस्या है।”
पौधे जमीन में से जो द्रव्य लेते हैं, उन्हें वापस करने की जरूरत हमने देखी। पौधे ये द्रव्य किस तरह, किस मात्रा में लेते हैं, यह हम थोड़े में देखें। वैज्ञानिक यह जानने के लिए पौधों का पृथकरण करते हैं। पौधों में जो द्रव्य होते हैं, उनको वे तीन मुख्य भागों बाँटते हैं: 1. पानी, 2. जलनेवाला कार्बनी हिस्सा और 3. निरिंद्रिय द्रव्य। कार्बनी हिस्से में कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, सल्फर मुख्य हैं। निरिंद्रिय द्रव्य में पोटाश, सोडा, चूना, बालू आदि मुख्य हैं। यह तीन हिस्से किस मात्रा में होते हैं, इसकी कुछ कल्पना चरागाह के घास के नीचे दिये पृथक्करण से ध्यान में आयेगी।जिस तरह खूँटा हिला-हिलाकर मजबूत किया जाता है, उसी तरह सजीव खाद का यह महत्व, निर्जीव खाद के सौ-सवा सौ साल के उपयोग के और वैज्ञानिक जाँच के बाद, प्रस्थापित हुआ है। 1840 में ‘लीबिंग’ नाम के एक जर्मन वैज्ञानिक ने इस मत का प्रति पादन किया कि फसलों के पौधे अपने लिए कार्बन, वायुमण्डल में स्थित “कार्बन-डाई-ऑक्साइड” से लेते हैं, तथा खनिज द्रव्य और नाइट्रोजन जमीन से खींच लेते हैं, जमीन का उपजाऊपन कायम रहने देने के लिए यह परमावश्यक है कि पौधे इस तह जितना द्रव्य जमीन में से खींच लेते हैं, उतना उसे वापस कर दिया जाए। उसका यह भी कहना था कि सेंद्रिय स्वरूप में ही वे द्रव्य जमीन को वापस किए जायँ, यह जरूरी नहीं है। लिबिंग का यह मत और उसके विरुद्ध मत का वाद-विवाद उसी समय शुरू हुआ था। 1843 में राथमस्टेड में लांस और गिलबर्ट द्वारा किए गये प्रयोगों से यह निःसंशय सिद्ध हुआ था कि योग्य प्रमाण में नाइट्रोजन, फास्फेट और पोटाश दिया जाय, तो अनेक बरसों तक जमीन में से ठीक फसल मिल सकती है। लीबिंग के बाद के एक सौ साल के भीतर के खेती-केमिस्टों की यह राय रही कि ज्यादा-से-ज्यादा फसल लेने के लिए इतने-इतने पौंड नाइट्रोजन आदि देना काफी है। खेती-केमिस्टों की राय और राथमस्टेड में आये हुए ऊपर के अनुभव से यूरोप में अनेक किसानों ने कृत्रिम-निर्जीव-खाद का उपयोग करना जोरों से शुरू किया। कुछ समय तक ठीक चलता सा दिखा। लेकिन आगे ध्यान में आया, और आज वाद-विवाद के परे यह मान्य हुआ है कि जमीन को सेंद्रीय द्रव्य-सजीव खाद-चाहिए ही। इतना ही नहीं कृत्रिम-निर्जीव-खादों का भी पूरा फायदा उठाना हो, तो भी सेंद्रीय द्रव्य-सजीव खाद-अवश्य चाहिए।
पौधे जमीन में से जो द्रव्य लेते हैं, उन्हें वापस करने की जरूरत हमने देखी। पौधे ये द्रव्य किस तरह, किस मात्रा में लेते हैं, यह हम थोड़े में देखें। वैज्ञानिक यह जानने के लिए पौधों का पृथकरण करते हैं। पौधों में जो द्रव्य होते हैं, उनको वे तीन मुख्य भागों बाँटते हैं: 1. पानी, 2. जलनेवाला कार्बनी हिस्सा और 3. निरिंद्रिय द्रव्य। कार्बनी हिस्से में कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, सल्फर मुख्य हैं। निरिंद्रिय द्रव्य में पोटाश, सोडा, चूना, बालू आदि मुख्य हैं। यह तीन हिस्से किस मात्रा में होते हैं, इसकी कुछ कल्पना चरागाह के घास के नीचे दिये पृथक्करण से ध्यान में आयेगी।
चरागाह की घास-काटते समय वजन 5 टन, 11200 पौंड (सूखने के बाद वजन डेढ़ टन), उसमें पानी 8378 पौंड। कार्बन 1315, हाइड्रोजन 144, नाइट्रोजन 49, ऑक्सीजन व सल्फर 1105 कुल सेंद्रिय द्रव्य 2613 पौंड। पोटाश 56, सोडा 12, चूना 28, सिलिका 57, बालू 4, अन्य बाकी बचा हुआ 52। कुल निरिंद्रिय द्रव्य-ऑश-209 पौंड।
मान लीजिये, किसी चरागाह में न तो कोई पशु चरते हैं और न वहाँ का घास काटकर दूसरी जगह ले जाया जाता है, तो वहाँ का घस उगकर,वहीं सड़कर जमीन में मिल जायगा। उस दशा में जमीन में से घास के लिए हुए करीब-करीब सब द्रव्य उसे वापस मिल जायेंगे। चरागाह में जंगली जानवर चरते हैं, वहीं रहते हैं, वहीं मरते हैं, तो उस दशा में जमीन में निरिंद्रिय द्रव्यों में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन नाइट्रोजन का कुछ नाश होगा। क्योंकि पशुओं का मल-मूत्र खुला पड़ा रहने से और मरने के बाद उनके शव सड़ने से गैस के रूप में नाइट्रोजन का नाश होगा। आगे जाकर मान लीजिये कि वहाँ का घास काटकर बाहर कहीं भेजा जाता है या वहाँ खेती की जाती है और वह धान्य कहीं भेजा जाता है। तो उन फसलों द्वारा जमीन में से खींचे हुए द्रव्य वापस मिलने की गुंजाइश न होने से वे द्रव्य खाद देकर पूरे करने होंगे। जमीन में से पैदा हुई फसलों का मुख्य उपयोग मनुष्य और पशुओं के आहार आदि में खर्च होता है। इसलिए यह जरूरी है कि उन दोनों के उत्सर्ग और अवशेष-मल-मूत्र, हड्डी, राख आदि जमीन को वापस दिये जायँ।
“पौधों की संतोषजनक बाढ़ के लिए, जिसे हम साँस के द्वारा बाहर छोड़ते हैं, वह कार्बन-डाई-आक्साइड, जल, प्राणवायु, नाइट्रोजन, फास्फोरस अधिक मात्रा में और पोटाश, गंधक, चूना, मैगनेशियम, लोहा, आयोडीन, वोरन और मैंगनीज सूक्ष्म मात्रा में चाहिए। नाइट्रोजन से धड़, शाखाएँ और पत्ते पुष्ट होते हैं। इसलिए बढ़ने के दिनों में नाइट्रोडजन युक्त खाद की जरूरत होती है। यों तो सभी फसलों को इससे लाभ होता है, परन्तु पत्तेदार और फूलदार पौधे इससे विशेष प्रभावित होते हैं। फास्फोरस से, पहले जड़ों की पुष्टि होती है और बाद में फल और बीज के लिए उसका उपयोग होता है। फास्फोरस से पौधों के दृढ़ और निरोग होने में सहायता पहुँचती है और फसलें कुछ जल्द तैयार होती हैं। फलदार पौधों के लिए फास्फोरसयुक्त खाद जरूर देनी चाहिए। पोटाश से कंददार (यथा शकरकंद, गाजर, मूली, आलू, वगैरा) और फलदार फसल को लाभ होता है। नाइट्रोजन की अधिकता से होनेवाले नुकसान को यह रोकता है।”
ऊपर के उद्धरण से एक बात ध्यान में आयेगी की खाद में अनेक द्रव्य होते हैं, लेकिन उनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश ही मुख्य हैं। इसलिए खाद का महत्व इससे निश्चित किया जाता है कि ऊपर के तीन द्रव्य उसमें कितनी मात्रा में हैं। तीन द्रव्यों में भी नाइट्रोजन का महत्व सबसे अधिक है, इसलिए खाद-द्रव्य में नाइट्रोजन कितनी मात्रा में है, इतना ही कभी-कभी देखा या बोला जाता है।
खाद के बारे में सोचते हुए, बोलने-लिखने में, सजीव, जीवित या सेंद्रिय (आर्गेनिक) और निर्जीव, मृत या निरिंद्रिय (इन-ऑर्गेनिक), इन दो शब्दों का बहुत उपयोग होता है। इसलिए हम इनकी थोड़ी जानकारी कर लें। दो हिस्सों में सारी चीजों को बाँटने की रीति के अनुसार विज्ञान में सारे पदार्थों को सेंद्रीय और निरिंद्रिय ऐसे दो विभागों में बाँटा जाता है। जिनकी उत्पत्ति सजीव याने चेतन वस्तु से होती है, उन्हें सेंद्रिय और जिनकी उत्पत्ति जड़ वस्तु से होती है, उन्हें निरिंद्रिय करते हैं। पेड़, पत्ते, जड़े, हड्डियाँ, बाल आदि सेंद्रिय और पत्थर, धातु आदि निरिंद्रिय हैं। असल में इनके चेतनमूल व जड़मूल, ऐसे नाम अधिक अर्थबोधक होते, लेकिन अंग्रेजी में उन्हें ऑर्गेनिक और इन-ऑर्गनिक कहते हैं और ऑर्गन याने इंद्रिय, इसलिए सेंद्रिय और निरिंद्रिय शब्द रूढ़ हुए दिखते हैं।
पदार्थों की तरह खाद भी दो प्रकार की होती है। सजीव या सेंद्रिय (ऑर्गेनिक) और निर्जीव, निरिंद्रिय या कृत्रिम (इनॉर्गनिक या केमिकल फर्टिलाइजर्स)। सजीव खाद याने घास-पात, पशुओं और मनुष्यों के मल-मूत्र से बनी हुई खाद। निर्जीव खाद याने भिन्न-भिन्न प्रकार के खनिज द्र्व्यो से बनी हुई खाद। इनमें से सजीव खाद का महत्व नीचे के उद्धरण से मालूम होगा।
जमीन : पौधों के भोजन का कारखाना
“जमीन एक तरह से पौधों के लिए भोजन बनाने का कारखाना है, जिसमें हवा व नमी की सहायता से असंख्य जीवाणु दिन-रात अपना कार्य करते रहते हैं। जमीन के अन्दर यह कार्य व्यवस्थित रूप से चलते रहने के लिए इस बात की आवश्यकता है कि जमीन की ऊपरी सतह के रजकण हमेशा खुले रहें, उनमें हवा खेलती रहे और केशाकर्षण शक्ति से जमीन के रस का बिना रुकावट जमीन में अभिसरण होता रहे। जिसे जमीन का पोत कहते हैं, वह मिट्टी के कणों की व्यवस्थिति का ही नाम है। कुदरती कारणों में कोई जमीन चिकनी होती है और कोई बहुत फोसन (भुरभुरी)। चिकनी जमीन के रज-कण एक दूसरे अति नजदीक या चिपके हुए रहते हैं, तो फोसन के प्रति दूर। इन दोनों हालतों में अभिसरण-क्रिया ठीक नहीं चल सकती। यदि गले हुए सेंद्रिय द्रव्य जमीन में काफी हों, तो दोनों प्रकार की जमीनों की अभिसरण की शक्ति बढ़ जाती है। चिकनी जमीन के रज-कण एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। और पोसन जमीन के कण सेंद्रीय कणों से जोड़े जाते हैं। इस तरह दोनों प्रकार की जमीनों की रचना व्यवस्थित हो जाने से जमीन के जीवाणु पोषक द्रव्यों को पौधों के भोजन-योग्य बनाने में सफल बन सकते हैं। जमीन के पोत यदि ठीक हालत में न हों, तो खाद द्वारा दिये हुए पोषक द्रव्यों का पूरा-पूरा उपयोग नहीं हो सकता। इस तरह जमीन को कारगर रखने का काम गले हुए सेंद्रिय द्रव्यों का है, और यह काम बुनियादी होने से उसका महत्व है। भारत जैसे गरम देश में इसका बहुत महत्व है, क्योंकि गरमी की वजह से सेंद्रीय द्रव्य कुदरती तौर पर धीरे-धीरे जमीन से नष्ट होते रहते हैं। और उसकी पूर्ति करते रहना भारतीय कृषि की बड़ी-से-बड़ी समस्या है।”
पौधे जमीन में से जो द्रव्य लेते हैं, उन्हें वापस करने की जरूरत हमने देखी। पौधे ये द्रव्य किस तरह, किस मात्रा में लेते हैं, यह हम थोड़े में देखें। वैज्ञानिक यह जानने के लिए पौधों का पृथकरण करते हैं। पौधों में जो द्रव्य होते हैं, उनको वे तीन मुख्य भागों बाँटते हैं: 1. पानी, 2. जलनेवाला कार्बनी हिस्सा और 3. निरिंद्रिय द्रव्य। कार्बनी हिस्से में कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, सल्फर मुख्य हैं। निरिंद्रिय द्रव्य में पोटाश, सोडा, चूना, बालू आदि मुख्य हैं। यह तीन हिस्से किस मात्रा में होते हैं, इसकी कुछ कल्पना चरागाह के घास के नीचे दिये पृथक्करण से ध्यान में आयेगी।जिस तरह खूँटा हिला-हिलाकर मजबूत किया जाता है, उसी तरह सजीव खाद का यह महत्व, निर्जीव खाद के सौ-सवा सौ साल के उपयोग के और वैज्ञानिक जाँच के बाद, प्रस्थापित हुआ है। 1840 में ‘लीबिंग’ नाम के एक जर्मन वैज्ञानिक ने इस मत का प्रति पादन किया कि फसलों के पौधे अपने लिए कार्बन, वायुमण्डल में स्थित “कार्बन-डाई-ऑक्साइड” से लेते हैं, तथा खनिज द्रव्य और नाइट्रोजन जमीन से खींच लेते हैं, जमीन का उपजाऊपन कायम रहने देने के लिए यह परमावश्यक है कि पौधे इस तह जितना द्रव्य जमीन में से खींच लेते हैं, उतना उसे वापस कर दिया जाए। उसका यह भी कहना था कि सेंद्रिय स्वरूप में ही वे द्रव्य जमीन को वापस किए जायँ, यह जरूरी नहीं है। लिबिंग का यह मत और उसके विरुद्ध मत का वाद-विवाद उसी समय शुरू हुआ था। 1843 में राथमस्टेड में लांस और गिलबर्ट द्वारा किए गये प्रयोगों से यह निःसंशय सिद्ध हुआ था कि योग्य प्रमाण में नाइट्रोजन, फास्फेट और पोटाश दिया जाय, तो अनेक बरसों तक जमीन में से ठीक फसल मिल सकती है। लीबिंग के बाद के एक सौ साल के भीतर के खेती-केमिस्टों की यह राय रही कि ज्यादा-से-ज्यादा फसल लेने के लिए इतने-इतने पौंड नाइट्रोजन आदि देना काफी है। खेती-केमिस्टों की राय और राथमस्टेड में आये हुए ऊपर के अनुभव से यूरोप में अनेक किसानों ने कृत्रिम-निर्जीव-खाद का उपयोग करना जोरों से शुरू किया। कुछ समय तक ठीक चलता सा दिखा। लेकिन आगे ध्यान में आया, और आज वाद-विवाद के परे यह मान्य हुआ है कि जमीन को सेंद्रीय द्रव्य-सजीव खाद-चाहिए ही। इतना ही नहीं कृत्रिम-निर्जीव-खादों का भी पूरा फायदा उठाना हो, तो भी सेंद्रीय द्रव्य-सजीव खाद-अवश्य चाहिए।
पौधे जमीन में से जो द्रव्य लेते हैं, उन्हें वापस करने की जरूरत हमने देखी। पौधे ये द्रव्य किस तरह, किस मात्रा में लेते हैं, यह हम थोड़े में देखें। वैज्ञानिक यह जानने के लिए पौधों का पृथकरण करते हैं। पौधों में जो द्रव्य होते हैं, उनको वे तीन मुख्य भागों बाँटते हैं: 1. पानी, 2. जलनेवाला कार्बनी हिस्सा और 3. निरिंद्रिय द्रव्य। कार्बनी हिस्से में कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, सल्फर मुख्य हैं। निरिंद्रिय द्रव्य में पोटाश, सोडा, चूना, बालू आदि मुख्य हैं। यह तीन हिस्से किस मात्रा में होते हैं, इसकी कुछ कल्पना चरागाह के घास के नीचे दिये पृथक्करण से ध्यान में आयेगी।
चरागाह की घास-काटते समय वजन 5 टन, 11200 पौंड (सूखने के बाद वजन डेढ़ टन), उसमें पानी 8378 पौंड। कार्बन 1315, हाइड्रोजन 144, नाइट्रोजन 49, ऑक्सीजन व सल्फर 1105 कुल सेंद्रिय द्रव्य 2613 पौंड। पोटाश 56, सोडा 12, चूना 28, सिलिका 57, बालू 4, अन्य बाकी बचा हुआ 52। कुल निरिंद्रिय द्रव्य-ऑश-209 पौंड।
मान लीजिये, किसी चरागाह में न तो कोई पशु चरते हैं और न वहाँ का घास काटकर दूसरी जगह ले जाया जाता है, तो वहाँ का घस उगकर,वहीं सड़कर जमीन में मिल जायगा। उस दशा में जमीन में से घास के लिए हुए करीब-करीब सब द्रव्य उसे वापस मिल जायेंगे। चरागाह में जंगली जानवर चरते हैं, वहीं रहते हैं, वहीं मरते हैं, तो उस दशा में जमीन में निरिंद्रिय द्रव्यों में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन नाइट्रोजन का कुछ नाश होगा। क्योंकि पशुओं का मल-मूत्र खुला पड़ा रहने से और मरने के बाद उनके शव सड़ने से गैस के रूप में नाइट्रोजन का नाश होगा। आगे जाकर मान लीजिये कि वहाँ का घास काटकर बाहर कहीं भेजा जाता है या वहाँ खेती की जाती है और वह धान्य कहीं भेजा जाता है। तो उन फसलों द्वारा जमीन में से खींचे हुए द्रव्य वापस मिलने की गुंजाइश न होने से वे द्रव्य खाद देकर पूरे करने होंगे। जमीन में से पैदा हुई फसलों का मुख्य उपयोग मनुष्य और पशुओं के आहार आदि में खर्च होता है। इसलिए यह जरूरी है कि उन दोनों के उत्सर्ग और अवशेष-मल-मूत्र, हड्डी, राख आदि जमीन को वापस दिये जायँ।