अधिकाँश उन राज्यों व क्षेत्रों में जहां वर्षा कम होती हो, मीठे पानी के जलाशयों की कमी हो तथा वहां बार-बार सुखा पड़ता हो या फिर वर्षा के देरी से आने पर वहां के कृषक अक्षर कृषि के लिए सिंचाई हेतु भूजल का अत्याधिक उपयोग करने लगते है l इससे न केवल भूजल का स्तर घटने लगता है बल्कि इससे फसलों के स्वास्थ व कृषि उत्पादन पर घहरा असर भी पड़ता है जिससे किसानों को अनायास आर्थिक हानि तो होती ही है वहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी कमजोर पड़ने लगती है l भूजल से सिंचाई द्वारा पैदा किये गए खाद्यानों अथवा अनाज, सब्जियों व फलों के सेवन से इंसानों के स्वास्थ पर भी बुरा पड़ता है वहीँ इस जल से सिंचित हरी घास व फसलों का सुखा चारा खाने पर घरेलु पालतू पशुओं के स्वास्थ पर भी हानिकारक प्रभाव देखें जा सकतें हैं जिसकी जानकारी अक्षर किसानों व पशुपालकों को नहीं हो पाती है l
ताजा प्रकाशित शोध अध्ययनों के अनुसार देश के अधिकाँश हिस्सों में भूमिगत जल फ्लोराइड रसायन से दूषित है l इस फ्लोराइडयुक्त जल को लम्बी अवधि तक सेवन अथवा पिने पर मनुष्यों व पालतू पशुओं में विकलांगता के अलावा कई तरह की ठीक नहीं होने वाली शारीरिक विकृतियाँ एक के बाद एक पनपने लगती है l इन विकृतियों को वैज्ञानिक भाषा में फ्लोरोसिस कहतें है l लेकिन इस फ्लोराइडयुक्त भूजल से सिंचाई करने पर खेत की मिट्टी भी फ्लोराइड से दूषित हो जाती है जिसके कारण इसमें उगी विभिन्न प्रकार की फसलों को अत्याधिक नुकसान होता है l फ्लोराइड के विषैलेपन के असर से फसलों की पतियाँ बांकी-टेड़ी हो कर पिली पड़ जाती है जो कमजोर पड़ कर एक-एक करके तने से गिरने लगती है l इसके विषैलेपन के कारण फसलों के तने भी कमजोर पड़ कर बांके-टेड़े हो जातें है अथवा निचे की ओर झुक कर जमींन पर गिर जातें है l खेतों में ऊगी फसलों का ऐसा दृश्य आसानी से देखा व पहचाना जा सकता है l क्योंकि यह दृश्य पुरे खेत में देखने को मिलता है l दर असल जल व मिटटी में मौजूद फ्लोराइड प्रदूषक खाद्यानों की विभिन्न फसलों की जैविक क्रियाओं को दूषित कर देता है जिससे इन फसलों में भोजन बनाने की अतिमहत्वपूर्ण जैविक प्रक्रिया यानी प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिन्थेसिस) की दर पहले प्रभावित होती है वहीं दूसरी ओर फसल के पोधों में श्वसन (रेस्पिरेशन) जैसी महत्वपूर्ण जैविक क्रिया भी बाधित होती है l इनका सीधा असर कृषि उत्पादन की दर पर पड़ता है जो किसानों को अक्षर दिखाई नहीं दे पड़ता है l
फ्लोराइडयुक्त भूमिगत जल से न केवल कृषि उत्पादन घटता है बल्कि ऐसे जल से उगाई गई सब्जियां, फल, दालें व अनाज को खाने से बच्चे, युवा तथा बूढ़े लोगों के स्वास्थ पर भी गहरा असर पड़ता है l क्योंकि इन खाध्य पदार्थों में अक्षर फ्लोराइड की मात्रा पाई जाती है l अनुसंधानों से यह भी पता चलता है कि इन्हें खाने पर गर्भवती महिला तथा गर्भ में पल रहे शिशु दोनों के स्वास्थ पर प्रतिकूल असर पड़ता है l इन फ्लोराइडयुक्त खाध्यानों के सेवन से माताओं के दूध में भी इसकी मात्रा पायी गयी है l ऐसे दूध के सेवने से बच्चों का मानासिक विकास भी अवरुद्ध होनेकी अधिक संभावना रहती है l इस के कारण बच्चों में स्मरण शक्ति व बुध्धि अथवा सोचने-समझने की क्षमता कमजोर होती है l जिसके कारण बच्चे अक्षर मंद्बुधि के होतें है l
भूमिगत जल का कृषि में अंधाधुंद उपयोग से न केवल भूजल का स्तर घटता है बल्कि यह विभिन्न खाद्यानों के उत्पादन की दर को भी कम कर देता है l इसलिए जहां तक संभव हो कृषि में वर्षा जल का ही उपयोग करना चाहिए l यह हर दृष्टि से ज्यादा फायदेमंद होता है l इसलिए वर्षा जल का संचय व संरक्षण के साथ-साथ इसका पुन:चक्रण बेहद जरुरी है l