नीति आयोग की रिपोर्ट 2030 तक भूजल स्तर की एक बड़े खतरे की तरफ इशारा करती है। रिपोर्ट बताती है कि 2030 तक देश में भूजल स्तर संकट के रूप में उभर कर सामने आएगा। वर्ष 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने भी घटते भूजल-स्तर को लेकर के आदेश दिए थे। बावजूद इसके प्रशासन भूजल घटते भूजल स्तर को लेकर के संजीदा नहीं है। केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने भूजल के दोहन पर सख्ती करने के बजाए रोजाना दस हजार लीटर से कम भूजल दोहन वाली औद्योगिक इकाइयों पर अब कोई पाबंदी नहीं लगाएगा।
केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने पानी की बर्बादी और बेवजह दोहन को रोकने के लिए 8 अक्टूबर 2020 को पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 की धारा 5 की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए प्राधिकरण और देश के सभी लोगों को संबोधित करते हुए अपने आदेश में कहा था कि इस आदेश को जारी होने की तारीख से संबंधित नगरी निकाय जो कि राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में पानी आपूर्ति नेटवर्क को चलाती हैं और जिन्हें जल बोर्ड, जल निगम, वाटर वर्क्स डिपार्टमेंट, नगर निगम, नगर पालिका, विकास प्राधिकरण, पंचायत या किसी भी अन्य नाम से जाना जाता है वह सुनिश्चित करें कि भूजल से हासिल होने वाले पोटेबल वॉटर - पीने योग्य पानी की बर्बादी और बेजा इस्तेमाल नहीं होगा। इस आदेश का पालन करें, सभी एक तंत्र विकसित करेंगे और आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही किए जाएंगे। देश में कोई भी व्यक्ति भूजल से हासिल पीने योग्य पानी का बेजा इस्तेमाल नहीं कर सकता है।
पानी की बर्बादी करने वालों के लिए एक बड़ी खबर थी कि कोई भी व्यक्ति और सरकारी संस्था यदि भूजल से हासिल पीने योग्य पानी की बर्बादी या बेजा इस्तेमाल करती हैं तो वह दंडात्मक अपराध माना जाएगा। इससे पहले भारत में पानी की बर्बादी को लेकर दंड का कोई प्रावधान नहीं था। सेंट्रल ग्राउंडवाटर अधिकरण के नए निर्देश के अनुसार पीने योग्य पानी का दुरुपयोग भारत में ₹एक लाख तक के जुर्माने और 5 साल तक की जेल की सजा के साथ दंडनीय अपराध होगा।
एनजीटी में दाखिल की गई थी याचिका
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में गैर सरकारी संस्था फ्रेंड्स के राजेंद्र चौहान त्यागी द्वारा पिछले साल 24 जुलाई 2019 को पर पानी की बर्बादी पर रोक लगाने के लिए याचिका डाली गई थी। बहरहाल इसी मामले में करीब 1 साल से ज्यादा समय के बाद केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने एनजीटी के आदेशों के अनुपालन के संबंध में आदेश जारी किए हैं।
यह आदेश जारी किए हुए मुश्किल से 1 महीना भी नहीं हुए थे कि उसमें लगातार संशोधनों का दौर चालू हो चुका है। 26 अक्टूबर 2010 को केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने उद्योगों के लिए जारी एक गाइडलाइन में कहा है कि रोजाना दस हजार लीटर से कम भूजल दोहन करने वाले उद्यमियों पर अब कोई पाबंदी नहीं होगी। इतना ही नहीं, यहां तक कि इन इकाइयों को भूजल दोहन के लिए प्राधिकरण से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेने की शर्त से भी छूट दी गई है।
दैनिक जागरण की संवाददाता रूमा सिन्हा की एक रिपोर्ट बताती है कि औद्योगिक गतिविधियों के जरिये आत्मनिर्भर बनने की मुहिम के बीच केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमियों (एमएसएमई ) को बड़ा तोहफा दिया है। इसके तहत रोजाना दस हजार लीटर से कम भूजल दोहन करने वाले उद्यमियों पर अब कोई पाबंदी नहीं होगी। इन इकाइयों को भूजल दोहन के लिए प्राधिकरण से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेने की शर्त से भी छूट दी गई है। यही नहीं, इन इकाइयों से भूजल दोहन की मात्रा के अनुसार किसी प्रकार की राशि भी नहीं ली जाएगी। माना जा रहा है की उत्तर प्रदेश की ही करीब पांच-छह लाख इकाइयां इस फैसले से लाभान्वित होंगी। प्राधिकरण का यह आदेश देश की सभी सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाइयों पर लागू होगा।
केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने 26 अक्टूबर को गाइडलाइन से जुड़े कई दिशा-निर्देशों पर अधिसूचना जारी की है।
प्राधिकरणों के लिए भी दिशा-निर्देश
इससे पूर्व केंद्रीय भूजल प्राधिकरण द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों के तहत गत 24 सितंबर को भारत में भूजल दोहन के नियंत्रण व रेगुलेशन की गाइडलाइन जारी की गई थी। यह गाइडलाइन पूरे देश में उद्योगों, इंफ्रास्ट्रक्चर, व्यावसायिक व खनन गतिविधियों में भूजल दोहन पर अंकुश लगाने के लिए है। जिन राज्यों में भूजल प्राधिकरण गठित हैं, उनको भी इसी गाइडलाइन के अनुसार कार्रवाई करनी होगी। उत्तर प्रदेश में अक्टूबर 2019 को भूजल प्रबंधन एवं विनियमन एक्ट लागू हो चुका है और इसके तहत राज्य भूजल प्राधिकरण का गठन भी किया गया है।
गाइडलाइन के मुख्य बिंदु
- अतिदोहित विकास खंडों में किसी भी नए उद्योग को भूजल दोहन की मंजूरी नहीं दी जाएगी।
- केवल मौजूदा उद्योगों, जिनके पास पूर्व से अनुमति है, उनको ही आगे एनओसी दी जाएगी
- क्रिटिकल और सेमी क्रिटिकल विकास खंडों में एनओसी लेने पर प्रतिबंध नहीं होगा।
- जिन उद्योगों व अन्य परियोजनाओं ने 24 सितंबर के बाद अनुमति के लिए आवेदन दिया है, उनको पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में एक लाख का अर्थ दंड देना होगा।
- गाइडलाइन के तहत कृषि क्षेत्र, ग्रामीण जलापूर्ति तथा सेना के अधिष्ठानों को छूट दी गई है।
- आवासीय समितियों, नगरीय पेयजल योजनाओं को प्राधिकरण से मंजूरी लेनी होगी।
- भूजल दोहन पर निगरानी के लिए उद्योगों को पीजोमीटर स्थापित करने के साथ नलकूप पर डिजिटल फ्लोमीटर लगाना होगा।