क्या धरती पर जीवन का पूर्ण विराम आ चुका है। हमारे लिए एक ही धरती है, जो कि हम सब का घर है। धरती के हर जीव-जगत का दुख-सुख आपस में एक ही हैं। फिलहाल के सौर परिवार में जीवन को धरती जैसा विरासत कहीं नहीं मिली है। दुख है कि धरती की सेहत और उसके तंत्र (पारिस्थितिकी-तंत्र) की साँसें हमने धीरे-धीरे खतरे में डाल दी हैं। पौधे, जानवर, सूक्ष्म-जीव, मिट्टी, पानी, हवा, खाना, सबमें प्रदूषण के कारण दुनिया के मिट जाने का सवाल तो फिलहाल तो खड़ा ही हो गया है।
धरती का पारिस्थितिकी तंत्र बेहद नाजुक है। पृथ्वी पर मौजूद सभी तरह के पारिस्थितिकी तंत्रों के समृद्धि और सेहत में ही मानव सभ्यता का भी भविष्य है। 7000 मीलियन मानव के साथ ही बिलियन पशु, करोड़ों पौध प्रजातियों और जीव-जगत का यह घर है।पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ रखकर ही हम पृथ्वी पर किसी भी तरह के जीवन की कल्पना कर सकते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र गिरावट को रोकने और रिवर्स करने की प्रक्रिया पर हमें लगातार काम करना होगा। पारिस्थितिक तंत्र में सुधार और जैव विविधता को पुनःबहाली हमारा एक बड़ा लक्ष्य होना चाहिए।
भारत का इतिहास शानदार रहा है -
1 - भारत का चिपको आन्दोलन एक पर्यावरण-रक्षा का और पारिस्थितिकी तंत्र गिरावट को रोकने और रिवर्स करने की प्रक्रिया का आन्दोलन था। 1973 में उत्तराखण्ड के चमोली जिले से शुरु हुआ, यह आन्दोलन पूरे उत्तराखंड क्षेत्र में फैल गया था। चिपको आन्दोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया था। रेणी में 2400 से अधिक पेड़ों को काटा जाना था, इसलिए इस पर वन विभाग और ठेकेदार जान लड़ाने को तैयार बैठे थे, जिसे गौरा देवी जी के नेतृत्व में रेणी गांव की 27 महिलाओं ने प्राणों की बाजी लगाकर असफल कर दिया था।
२ - तरुण भारत संघ के कार्यकर्ताओं ने अलवर के अरवारी नदी के उद्गम स्थल पर जोहड़ का निर्माण किया जो कि कई वर्षों से मृत हो सूख चुकी थी। इसके अलावा नदी के कैचमेंट एरिया या अपवाह क्षेत्र में पड़ने वाले गांवों में सैकड़ों की संख्या में छोटे-छोटे मिट्टी के बांधों का निर्माण कराया गया। वर्ष 1990 में पिछले 60 सालों से सूखी पड़ी नदी में फिर पानी बहने लगा।कुछ इसी तरह से राजस्थान की अन्य चार नदियां भी जिंदा हो गईं. इन नदियों के नाम हैं रूपारेल, सरसा, भगनानी और जहाजवाली।
३ - सच्चिदानंद भारती ने पौड़ी-गढ़वाल जिले में वर्ष 1989 में बीरोंखाल के उफरैखाल में यह पर्यावरण आंदोलन शुरू किया था। इसके तहत उन्होंने छोटे-छोटे चाल-खाल बनाए जिनमें बरसाती पानी को रोककर उन्होंने क्षेत्र में करीब 30 हजार खाल बनाए। इन्हें उन्होंने जल-तलैया नाम दिया। उसके आस-पास के पहाड़ों पर बांज, बुरांस और उत्तीस के पेड़ लगाए। परिणाम यह हुआ कि दस साल बाद सूखा गदेरा सदानीरा नदी में बदल गया, जिसे ‘गाड गंगा’ नाम दिया गया है।
४- जयपुर-अजमेर राजमार्ग पर दूदू से 25 किलोमीटर की दूरी पर राजस्थान के सूखाग्रस्त इलाके का एक गांव है - लापोड़िया। यह गांव ग्रामवासियों के सामूहिक प्रयास की बदौलत आशा की किरणें बिखेर रहा है। इसने अपने वर्षों से बंजर पड़े भू-भाग को तीन तालाबों (देव सागर, फूल सागर और अन्न सागर) के निर्माण से जल-संरक्षण, भूमि-संरक्षण और गौ-संरक्षण का अनूठा प्रयोग किया है। कल तक जो गांव सूखा से पीड़ित था, आज स्थिति यह है कि 2000 की जनसंख्या वाला यह गांव प्रतिदिन 1600 लीटर दूध सरस डेयरी को उपलब्ध करा रहा है। इस वर्ष 34 लाख रूपए का दूध सरस डेयरी को बेचा गया। पिछले छ: वर्षों से आस-पास के गांव अकाल जैसी स्थिति से जूझ रहे हैं, किन्तु लापोड़िया में अन्न सागर से सिंचित फसल अकाल को हर बार झुठला देती है।
करना क्या है -
वैश्विक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और स्थानीय प्रतिबद्धताओं को बढ़ाना ताकि पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण के निरोध, ठहराव तथा पुनर्बहाली करने ( Prevent, Halt and Reverse) में मदद मिल सके। शिक्षा प्रणालियों तथा सभी सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों की निर्णय प्रक्रिया में पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्बहाली की समझ विकसित करना तथा लागू करना।
इस विज़न को पूरा करने के लिये संपूर्ण वैश्विक समुदाय के बीच सहयोग की आवश्यकता है। ऐसे में विभिन्न देशों की सरकारों से अपेक्षा की जाती है कि वे पुनर्बहाली प्रयासों को लागू करने के लिये राष्ट्रीय बजट बनाएँ। गैर-सरकारी संगठनों को स्थानीय समुदायों की क्षमता-निर्माण की दिशा में कार्य करना होगा। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियाँ विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय तथा पुनर्बहाली उपायों को राष्ट्रीय लेखांकन एवं स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करने का कार्य करेंगी।
शिक्षाविदों से पुनर्बहाली उपायों की निगरानी के लिये ऑन-द-ग्राउंड डेटा एकत्रित करने के लिये रिमोट सेंसिंग आधारित प्रणाली की दिशा में शोध कार्य करने हेतु कहा जाएगा। स्थानीय लोगों, महिलाओं, युवाओं के समूहों तथा नागरिक समाज से व्यापक स्तर पर परामर्श किया जाएगा तथा पारिस्थितिक तंत्र में पुनर्बहाली प्रयासों को ज़मीनी स्तर पर तैयार करके लागू किया जाएगा। अन्य पहलों में स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करना, कृषि-पारिस्थितिक प्रणालियों को लागू करना, स्थानीय गैर-सरकारी संगठन बनाना आदि कार्य शामिल होंगे।
धरती के पारिस्थितिक तंत्र पुनर्बहाली में भारत का इतिहास शानदार रहा है। आइए, भविष्य भी सुंदर बनाएं। आइए हम एक ऐसे धरती के निर्माण करने में लगें, जहाँ वर्तमान तथा भविष्य में पृथ्वी के सभी जीवों के स्वास्थ्य और कल्याण हेतु मनुष्यों और प्रकृति के बीच एक बेहतर रिश्ता बने। स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र हो, उम्दा पर्यावरण हो।