पेरिस संधि: 35 प्रतिशत उत्सर्जन कटौती का लक्ष्य हासिल करने की ओर भारत

Submitted by Shivendra on Thu, 01/16/2020 - 12:42
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योजना, जनवरी 2020

फोटो - Down To earth

योजना, जनवरी 2020। केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन, सूचना और प्रसारण तथा भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्म मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 10 दिसम्बर, 2019 को स्पेन के मैड्रिड में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क संधि में शामिल देशों-कॉप के 25वें सम्मेलन में भारत का पक्ष रखा।
 
वक्तव्य के अंश इस प्रकार है

माननीय अध्यक्षा, महामान्य, देवियों और सज्जनों, आरम्भ में मैं महात्मा गांधी को उद्धृत करना चाहूंगा, जिन्होंने कहा था- ‘हमारा भविष्य वर्तमान में हम जो कुछ कर रहे हैं, उस पर निर्भर करता है।’ मैं बहुत थोडे समय में कॉप-25 सम्मेलन की मेजबानी संभालने और उत्कृष्ट प्रबंधों के लिए स्पेन की सरकार का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ। हम चिली की अध्यक्षता को सफल सम्मेलन के लिए अपने पूरे समर्थन का आश्वासन देते हैं। जलवायु परिवर्तन आज विश्व के समक्ष उपस्थित एक वास्तविक चुनौती है। पूरा विश्व इसकी गम्भीरता समझ चुका है और पेरिस में इसे लेकर एक व्यापक संधि स्वीकृत हो चुकी है। हमें पेरिस संधि के क्रियान्वयन पर ध्यान देना है। यदि जलवायु परिवर्तन के रूप में कोई असुविधा हमारे समक्ष है तो हम उसके लिए एक सुविधाजनक कार्रवाई योजना प्रस्तुत कर रहे हैं। हम बातचीत की ओर अग्रसर हैं।
 
भारत ने कार्बन उत्सर्जन में सकल घरेलू उत्पाद के 21 प्रतिशत की कमी की है और पेरिस संधि के संकल्प के अनुसार 35 प्रतिशत उत्सर्जन कटौती का लक्ष्य हासिल करने की ओर है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पेरिस समझौते में नवीकरणीय ऊर्जा के लिए 175 गीगावाट लक्ष्य की घोषणा की थी। हम 83 गीगावाट हासिल कर चुके हैं। प्रधानमंत्री ने हाल के संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई सम्मेलन में यह लक्ष्य बढ़ा कर 450 गीगावाट कर दिया है। हम सौर ऊर्जा, जैव ईंधन और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में लगातार प्रगति कर रहे हैं। हमने कोयले के उत्पादन पर प्रति टन 6 डॉलर की दर से कार्बन टैक्स लगाया है। हमारी संसद में 36 दलों का प्रतिनिधित्व है लेकिन हमने इसे सर्वसम्मति से पारित किया।
 
बड़ी और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि एक व्यावसायिक उड़ान शत प्रतिशत जैव ईंधन से संचालित हुई और हमने 2030 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथेनॉल का लक्ष्य रखा है। हमने वाहन उत्सर्जन नियमों के आधार पर भारत मानक-IV से भारत मानक- VI की छलांग लगाई है और पहली अप्रैल 2020 से सभी वाहन बीएस- VI के अनुपालन में होंगे। भारत के घरों में 36 करोड़ एलईडी बल्ब लगाए जा चुके हैं और एक करोड़ पारम्परिक स्ट्रीटलाइट की जगह एलईडी बल्बों ने ले ली है। विविध नीति हस्तक्षेप और प्रोत्साहनों के माध्यम से ई-वाहनों के इस्तेमाल के लिए भी काफी बड़ा दबाव है। हमने लकड़ी के चूल्हे के स्थान पर आठ करोड़ एलपीजी गैस कनेक्शन उपलब्ध कराए हैं। धरती का तापमान कम करने और समायोजित करने की कार्य योजनाएं अच्छी तरह काम कर रही हैं और यह अपना लक्ष्य हासिल करेंगी।
 
हम ढाई से तीन करोड़ टन अतिरिक्त कार्बन उत्सर्जन अवशोषित करने के लिए हरित क्षेत्र बढ़ा रहे हैं। पिछले 5 वर्ष में हमारे हरित क्षेत्र में 15 हजार वर्ग किलोमीटर की बढ़ोत्तरी हुई है। हम शहरी वन्यीकरण, स्कूल नर्सरी, कृषि वानिकी, जल और पशु चारा क्षेत्र बढ़ाने जैसी विशेष परियोजनाएं चला रहे हैं। भारत पर्यावरणीय समायोजन को जलवायु परिवर्तन की रोकथाम की दिशा में आवश्यक कार्रवाई का अभिन्न हिस्सा मानता है। इसलिए भारत जल संरक्षण के लिए लगभग 5 करोड़ डॉलर का निवेश कर रहा है। भारत ने दिल्ली में मरुस्थलीकरण की रोकथाम से सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र संधि में शामिल देशों के 14वें सम्मेलन के दौरान 2030 तक 2 करोड़ 60 लाख हेक्टेयर अनुत्पादक भूमि को उपयोगी बनाने का लक्ष्य रखा है। यह कार्बन अवशोषण को भूमि संसाधनों में बदलने के विश्व के सबसे बड़े कार्यक्रमों में एक है। 100 प्रतिशथ नीम कोटिंग के साथ यूरिया उर्वरक की सराहना पूरे विश्व ने की है और 17 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड भारत में मिट्टी की गुणवत्ता की देखरेख कर रहे हैं और इस प्रकार और अधिक कार्बन अवशोषण का प्रबंध कर रहे हैं।
 
हमने आपदा प्रबंधन की बुनियादी सुविधाओं के लिए अन्तरराष्ट्रीय भागीदारी की शुरुआत की है। यह विभिन्न देशों को जानकारी के आदान प्रदान तथा उन्नत आपदा और जलवायु प्रबंधन सुविधाएं विकसित करने के बारे में तकनीकी सहयोग मुहैया कराने की भागीदारी है। केवल 6 देश पेरिस संधि के अनुसार निर्धारित योगदान की प्रतिबद्धताएं पूरी कर रहे हैं। हम पूरी संधि का नेतृत्व कर रहे हैं। सतत जीवनशैली भारत के लोक आचरण का एक हिस्सा है।
 
हम वर्ष 2020 के आरम्भ के बिल्कुल निकट हैं। यह समय चिंतन मनन और आकलन का है। यह अपने भीतर झांकने का समय है। यह सोचने का है कि क्या विकसित विश्व ने अपने वायदे और संकल्प पूरे किए हैं? यह दुर्भाग्य है कि सम्बन्धित देशों ने क्योटो संधि के लक्ष्यों को पूरा नहीं किया है और न ही उनके राष्ट्रीय योगदान में निर्धारित प्रतिबद्धताएं पूरी करने या इसे बढ़ाने का संकेत मिलता है। मैं 2020 से पहले की प्रतिबद्धताएं पूरी करने के लिए 3 और वर्षों का प्रस्ताव रखता हूं ताकि तब तक कार्बन उत्सर्जन के अंतर को पाटने के लिए पर्याप्त समय मिल सके।
 
मैं आप सबका ध्यान वित्त प्रबंध के अत्यंत महत्त्वपूर्ण मुद्दे की ओर दिलाना चाहता हूँ। विकसित देशों ने पिछले 10 वर्षों में दस खरब डॉलर देने का वायदा किया था, लेकिन इसका 2 प्रतिशत भी पूरा नहीं हो सका है। यह वित्त प्रबंधन सार्वजनिक वित्त के रूप में होना चाहिए और इसका दोहरा लेखांकन नहीं होना चाहिए। वे देश, जिन्होंने कार्बन उत्सर्जन से लाभ उठाया है और स्वयं को विकसित बनाया है, उन्हें इसकी भरपाई करने होगी। विकासशील देशों के लिए प्रौद्योगिकी विकास और सुलभ लागत पर उसका हस्तांतरण महत्त्वपूर्ण है। यदि हम किसी आपदा से निपट रहे हैं, तो किसी को भी इसका लाभ नहीं उठाना चाहिए। इसलिए, मेरा प्रस्ताव और अधिक संयुक्त अनुसंधान और सहयोग, तथा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वित्त उपलब्ध कराने का है।
 
कॉप 25 सम्मेलन स्वच्छ, हरित और स्वस्थ धरती की दिशा में हमारी सामूहिक यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसमें बाजार और गैर-बाजार तंत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हम आशा करते हैं कि अनुच्छेद 6 के दिशानिर्देश क्योटो संधि के तहत स्वच्छ विकास तंत्र सुनिश्चित करेंगे और इसमें निवेश करने वाले निजी क्षेत्र के लिए प्रोत्साहन और सकारात्मक संकेत मुहैया कराएंगे। हम पूरे विश्व के संवेदनशील समुदायों को वित्तीय सहयोग के लिए हानि और नुकसान से सम्बन्धित वारसा अन्तरराष्ट्रीय तंत्र के साथ सहयोग और समर्थन का भी आग्रह करते हैं। यह समय दायित्व लेने और उत्तरदाई कदम उठाने का है। भारत अपने हिस्से की जिम्मेदारियां पूरी करता रहेगा और विकसित देशों से बहुपक्षीय कार्रवाई में नेतृत्व की अपेक्षा रखेगा। 
 
मैं थोरो को उद्धृत करते हुए अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा, ‘ऐसे घर का क्या उपयोग है, यदि आपके पास उसे संरक्षित रखने के लिए सुरक्षित धरती उपलब्ध न हो?’

(स्रोतः पत्र सूचना कार्यालय)

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