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राजस्थान पत्रिका, 07 दिसम्बर, 2017
मोटे तौर पर कोई चक्रवात आए या न आए आपदा प्रबन्धन से जुड़े सिस्टम को तो सदैव सक्रिय ही रहना चाहिए। कोई भी कम्यूनिकेशन एकतरफा नहीं हो सकता। मौसम विभाग, राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एनडीएमए), गृह विभाग के साथ-साथ राज्य सरकारों में भी समन्वय जरूरी है।
चक्रवाती तूफान ‘ओखी’ धीरे-धीरे कमजोर पड़ता जा रहा है, यह राहत की बात है। लेकिन इससे पहले तमिलनाडु व केरल के तटों से टकराने के बाद इस चक्रवात ने जिस तरह की तबाही मचाई वह चिन्ताजनक तो है ही साथ ही हमारे आपदा प्रबन्धन तंत्र को और मजबूत करने की जरूरत की ओर संकेत करता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हिन्दुस्तान में ओखी से प्रभावित इलाकों में लोगों की जान बचाने के लिये भारतीय तट रक्षक दल ने तत्परता से प्रयास किए हैं अन्यथा इस चक्रवात की चपेट में आकर मरने वालों की तादाद और ज्यादा हो सकती थी। श्रीलंका से उठे ओखी ने केरल, लक्षद्वीप और पश्चिम समुद्र तट पर गहरा असर डाला है।ओखी का अलर्ट जारी करने से लेकर केरल सरकार का दावा है कि मौसम विभाग ने 30 नवम्बर को जब अलर्ट जारी किया तब तक तूफान आ चुका था। यह बात सही है कि प्राकृतिक आपदा कहकर नहीं आती लेकिन इससे निपटने के बन्दोबस्त समय पर कर लिये जाएँ तो जान-माल की हानि को एक हद तक कम किया जा सकता है। हर साल सरकारें आपदा प्रबन्धन के नाम पर करोड़ों रुपए का बजट प्रावधान रखती हैं। राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक आपदा प्रबन्धन तंत्र बना हुआ है। फिर भी ऐसे चक्रवातों की जानकारी समय रहते क्यों नहीं मिल पाती? तकनीकी तौर पर देखा जाए तो किसी भी चक्रवात की सूचना देने में दो बातें अहम होती हैं। पहला चक्रवात का साइंस पार्ट और दूसरा चक्रवात से जुड़ी सूचनाओं का आदान-प्रदान। आपदा प्रबन्धन के लिहाज से चक्रवातों की चेतावनी देने के स्तर अलग-अलग हैं। पहले चरण में प्री-साइक्लोन चेतावनी दी जाती है। इसके तहत यह बताया जाता है कि अमुक चक्रवात कब और कहाँ बनने की आशंका है।
श्रीलंका के पास से गुजरते हुए ओखी चक्रवात बंगाल की खाड़ी से अरब सागर होता हुआ केरल और तमिलनाडु के तटीय इलाकों को प्रभावित करेगा यह जानकारी पहले से ही थी। दूसरे चरण में साइक्लोन अलर्ट जारी किया जाता है। यह कम-से-कम 48 घंटे पहले दिया जाना चाहिए। वहीं तीसरे चरण में साइक्लोन चेतावनी होती है जो कम-से-कम 24 घंटे पहले दी जानी चाहिए। लेकिन समय की यह बाध्यता इस बात की नहीं है कि कोई जानकारी इससे पहले नहीं दी जाएगी। दरअसल केवल यह जानकारी देना ही पर्याप्त नहीं है कि कोई चक्रवात कब और कहाँ बनेगा बल्कि यह सूचना भी आम जनता तक पहुँचना जरूरी है कि अमुक चक्रवात की तीव्रता क्या होगी? किसी भी चक्रवात के साथ मुख्य रूप से हवा की रफ्तार, बारिश व समुद्र में उठने वाली लहरों की ऊँचाई से यह अनुमान लगाया जाता है कि चक्रवात की भयावहता क्या होगी? और, इसी के अनुरूप बचाव कार्यों और आपदा प्रबन्धन से जुड़ी दूसरी तैयारियाँ की जाती हैं।
इसलिये यह आरोप लगाना ठीक नहीं होगा कि हम साइक्लोन जैसी आपदा की सूचना समय पर नहीं दे पा रहे। बल्कि कहा यह जाना चाहिये कि ऐसे मौकों पर जिनको तैयारियाँ करनी चाहिए वे या तो समय पर काम शुरू नहीं कर पाते या फिर सम्बन्धित एजेंसियों में समन्वय का अभाव रहता है। दरअसल किसी भी साइक्लोन की तीव्रता का अन्दाजा इसी बात से लग जाता है कि समुद्र से उठने वाली लहरों की ऊँचाई कितनी है? केरल के मुख्यमंत्री ने चेतावनी मिलने का समय कम होने का जो मुद्दा उठाया है वह अपनी जगह सही हो सकता है। लेकिन इस तथ्य को भी रेखांकित किया जाना चाहिए कि आज के दौर में जब सूचना पाने के कई माध्यम दूसरे भी हैं तो ऐसे में किसी अधिकृत जानकारी का ही इन्तजार किया जाना उचित नहीं है। मोटे तौर पर कोई चक्रवात आए न आए आपदा प्रबन्धन से जुड़े सिस्टम को तो सदैव सक्रिय ही रहना चाहिए। कोई भी कम्युनिकेशन एकतरफा नहीं हो सकता। मौसम विभाग, राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एनडीएमए), गृह विभाग के साथ-साथ राज्य सरकारों में भी समन्वय जरूरी है।
अहम सवाल यही है कि जब मौसम विभाग ने अलर्ट जारी कर दिया था तो सम्बन्धित राज्य सरकारें क्यों नहीं एजेंसियों के सम्पर्क में रहती हैं? किसी के बताने पर ही काम शुरू होगा यह सोच तो काफी हास्यास्पद लगती है। वैसे भी हमारे देश में उड़ीसा, आन्ध्रप्रदेश और गुजरात ऐसे तटीय प्रदेश हैं जो ऐसे चक्रवातों से सबसे पहले और सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। जब भी चक्रवात जैसी स्थिति होती है तो इन राज्यों में सबसे ज्यादा नुकसान की आशंका रहती है। समुद्र में किसी भी प्रकार की हलचल हो तो इसका सबसे पहले शिकार होते हैं मछुआरे। मछुआरों को समुद्र में होने वाली गतिविधियों की जानकारी नहीं होती, न ही कोस्ट गार्ड और भारतीय नौसेना फौरन कोई सूचना साझा कर पाती है। मछुआरों को ऐसी आपदा की जानकारी के साथ इसके खतरों से निपटने का प्रशिक्षण जरूरी है।
सन्तोष की बात यह है कि हमारे समुद्र तटों पर बसे हमारे महानगर मुम्बई, चेन्नई व कोलकाता में अभी ऐसी आपदा के खतरों की आशंका कम हैं लेकिन जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों को नजरअन्दाज नहीं किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर ओखी चक्रवात हमारी आँखें खोलने वाला है। हमें इससे भी भयावह चक्रवातों के लिये तैयार रहना होगा।