चंद्र कलाएँ या चंद्रमा की कलाएँ (Phases of the moon)

Submitted by Hindi on Tue, 05/03/2011 - 11:46
चन्द्रमा, सूर्य और पृथ्वी की सापेक्ष स्थितियों में परिवर्तन होते रहने के कारण पृथ्वी से दिखाई पड़ने वाले चंद्रमा के प्रकाशमान भाग का आकार अमावस्या (black moon) से पूर्णिमा (full moon) तक क्रमशः बढ़ता है और पूर्णिमा के पश्चात् अमावस्या तक क्रमशः घटता जाता है। चन्द्रमा की प्रति रात परिवर्तनशील इन स्थितियों को चंद्र चलाएं या चंद्रमा की कलाएं कहा जाता है। अपनी कक्षा में चंद्रमा की स्थिति जब पृथ्वी और सूर्य के बीच में होती है,चंद्रमा का अंधकारमय भाग ही पृथ्वी के सम्मुख पड़ता है जिसके कारण रात में चंद्रमा अदृश्य रहता है। चंद्रमा की इस स्थिति को अमावस्या कहते हैं। इसके पश्चात् चंद्रमा अपनी कक्षा में आगे बढ़ता है और दूसरी रात को नवचंद्र दिखाई पड़ता है जिसके बाद प्रत्येक रात को चंद्रमा के प्रकाशित भाग में क्रमशः वृद्धि होती जाती है। चौथी रात जब चंद्रमा अपनी कक्षा का आठवां भाग पूरा करता है, वह पृथ्वी से लम्बवत् (quadrature) स्थिति में होता है और उसके प्रकाशित भाग की आकृति हंसिया जैसी (crescent shape) होती है। अतः इसे हंसिया चांद (crescent moon) कहते हैं। सप्तमी-अष्टमी को जब चंद्रमा अपनी कक्षा का एक-चौथाई भाग पूरा करता है उसका आधा भाग पृथ्वी से दिखाई पड़ता है; इसे अर्द्ध चंद्र (half moon) कहते हैं। कक्षा का 3/8 भाग पूरा कर लेने पर (एकादशी-द्वादशी) चंद्रमा का तीन-चौथाई भाग दिखाई पड़ता है जिसे कुबड़ा चांद (gibbous moon) कहते हैं। 15 वें दिन चंद्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी होती है और चंद्रमा का संपूर्ण प्रकाशित (गोल) भाग दिखाई पड़ता है जिसे पूर्णिमा (full moon) कहते हैं।
अमावस्या के पश्चात् 15 दिन को शुक्ल पक्ष या उजाला पक्ष कहा जाता है। पूर्णिमा के पश्चात् चंद्रमा के प्रकाशित भाग में क्रमशः कमी आने लगती है और अगली 15वीं रात (अमावस्या) को चंद्रमा अदृश्य हो जाता है। इस दूसरे 15 दिनों को कृष्ण पक्ष या अंधेरा पक्ष कहते हैं। कृष्ण पक्ष की चौथी रात को कुबड़ा चांद और ग्यारहवीं-बारहवीं रात को हंसिया चाँद दिखाई पड़ता है।

अन्य स्रोतों से

Phases of the moon in Hindi (चंद्र-कलाएं, चंद्रमा की कलाएं)


पृथ्वी का परिभ्रमण करने के दौरान चंद्रमा की विभिन्न प्रावस्थाएँ, जो पृथ्वी, चंद्रमा तथा सूर्य की सापेक्ष स्थिति में होने वाले परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होती हैं। चंद्रमा की इन्हीं प्रावस्थाओं को नवचंद्र, पूर्णचंद्र आदि की संज्ञा दी जाती है।



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