मेघ प्रस्फोट
असामान्य रूप से भारी वर्षा जो अचानक होती है, और जिसके साथ प्रायः तड़ित झंझा (thunderstorm) भी आता है। यह वर्षा आमतौर पर एक लघु क्षेत्र में प्रवल स्थानीय संवहनी हवाओं के उठने के कारण हुआ करती है।
मौसम विज्ञान के एक जानकार, दिव्यांस श्रीवास्तव के अनुसार बादल फटना बारिश का एक चरम रूप है। इस घटना में बारिश के साथ कभी-2 गरज के साथ ओले भी पड़ते हैं। सामान्यतः बादल फटने के कारण सिर्फ कुछ मिनट तक मूसलाधार बारिश होती है। लेकिन इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बादल फटने की घटना प्रायः पृथ्वी से 15 किलोमीटर की ऊँचाई पर घटती है। इसके कारण होने वाली वर्षा लगभग 10 मिलीमीटर प्रतिघंटा की दर से होती है। कुछ ही मिनट में 2 सेन्टीमीटर से अधिक वर्षा हो जाती है जिस कारण भारी तबाही होती है।
मौसम विज्ञान के अनुसार जब बादल भारी मात्रा में आर्द्रता यानि पानी लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वो अचानक फट पड़ते हैं। यानि संघनन बहुत तेजी से होता है। इस स्थिति में एक सीमित क्षेत्र में कई लाख लीटर पानी एक साथ पृथ्वी पर गिरता है, जिसके कारण उस क्षेत्र में तेज बहाव वाली बाढ़ आ जाती है। इस पानी के रास्ते में आनेवाली हर वस्तु क्षतिग्रस्त हो जाती है। भारत के संदर्भ में देखें तो प्रति वर्ष मॉनसून के समय नमी को लिये हुये बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं, फलस्वरूप हिमालय पर्वत एक बड़े अवरोधक के रूप में सामने पड़ता है। जिसके कारण उत्तरी भारत के क्षेत्रों में भारी बारिश होती है।
दिनांक 16 जून 13, को दोपहर में उत्तराखण्ड के कई इलाकों में इसी वजह से फटने वाले बादलों से आने वाली बाढ़ ने जबरदस्त तबाही मचाई, जिसमें हजारों लोगों को अपनी जान-माल से हाथ धोना पड़ा, जब कोई गर्म हवा का झोंका ऐसे बादल से टकराता है, तब भी उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है। उदाहरण के तौर पर 26 जुलाई 2005 को मुंबई में बादल फटे थे, तब वहाँ बादल किसी ठोस वस्तु से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराये थे।
असामान्य रूप से भारी वर्षा जो अचानक होती है, और जिसके साथ प्रायः तड़ित झंझा (thunderstorm) भी आता है। यह वर्षा आमतौर पर एक लघु क्षेत्र में प्रवल स्थानीय संवहनी हवाओं के उठने के कारण हुआ करती है।
क्या होता है बादल फटना (What is Cloud Burst)
मौसम विज्ञान के एक जानकार, दिव्यांस श्रीवास्तव के अनुसार बादल फटना बारिश का एक चरम रूप है। इस घटना में बारिश के साथ कभी-2 गरज के साथ ओले भी पड़ते हैं। सामान्यतः बादल फटने के कारण सिर्फ कुछ मिनट तक मूसलाधार बारिश होती है। लेकिन इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बादल फटने की घटना प्रायः पृथ्वी से 15 किलोमीटर की ऊँचाई पर घटती है। इसके कारण होने वाली वर्षा लगभग 10 मिलीमीटर प्रतिघंटा की दर से होती है। कुछ ही मिनट में 2 सेन्टीमीटर से अधिक वर्षा हो जाती है जिस कारण भारी तबाही होती है।
मौसम विज्ञान के अनुसार जब बादल भारी मात्रा में आर्द्रता यानि पानी लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वो अचानक फट पड़ते हैं। यानि संघनन बहुत तेजी से होता है। इस स्थिति में एक सीमित क्षेत्र में कई लाख लीटर पानी एक साथ पृथ्वी पर गिरता है, जिसके कारण उस क्षेत्र में तेज बहाव वाली बाढ़ आ जाती है। इस पानी के रास्ते में आनेवाली हर वस्तु क्षतिग्रस्त हो जाती है। भारत के संदर्भ में देखें तो प्रति वर्ष मॉनसून के समय नमी को लिये हुये बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं, फलस्वरूप हिमालय पर्वत एक बड़े अवरोधक के रूप में सामने पड़ता है। जिसके कारण उत्तरी भारत के क्षेत्रों में भारी बारिश होती है।
दिनांक 16 जून 13, को दोपहर में उत्तराखण्ड के कई इलाकों में इसी वजह से फटने वाले बादलों से आने वाली बाढ़ ने जबरदस्त तबाही मचाई, जिसमें हजारों लोगों को अपनी जान-माल से हाथ धोना पड़ा, जब कोई गर्म हवा का झोंका ऐसे बादल से टकराता है, तब भी उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है। उदाहरण के तौर पर 26 जुलाई 2005 को मुंबई में बादल फटे थे, तब वहाँ बादल किसी ठोस वस्तु से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराये थे।
अन्य स्रोतों से
असामान्य रूप से होने वाली स्थानीकृत भारी वर्षा जो प्रायः बिजली की चमक तथा मेघगर्जन के साथ अचानक और तेजी से होती है। अल्पावधि में ही इतनी घनघोर वर्षा हो जाती है कि नदियों में बाढ़ें आ जाती हैं, निचले भाग जलमग्न हो जाते हैं और भूमि पर अपरदन से अवनलिकाएं बन जाती हैं। इस प्रकार की भारी वर्षा अधिकांशतः उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधों में उन पर्वतीय ढालों तथा निकटवर्ती क्षेत्रों में होती है जहाँ पर्याप्त जलवाष्प से पूर्ण हवाएं ढाल के सहारे ऊपर उठती हैं और उनके संघनन से सीमित क्षेत्र में तीव्र वर्षा होती है। शीतोष्ण कटिबंध में वायु में जलवाष्प की मात्रा अपेक्षाकृत् शीघ्र समाप्त हो जाती है अतः तीव्र वृष्टि की अवधि अत्यल्प होती है।