दावानल (जंगल में आग) के लिए चीड़ की पत्तियों पिरूल को प्रमुख कारण माना जाता है। लेकिन सब कुछ ठीक ठाक रहा तो आने वाले दिनों में चीड़ लोगों की नगद आमदनी का साधन बन सकता है। चीड़ की पत्तियों से न केवल आर्गेनिक खाद बनेगी, बल्कि मृदा संरक्षण और चेकडैम बनाने में भी मददगार होगा। दावा तो यहां तक किया जा रहा है कि चीड़ की पत्तियों से पेंट व पाउडर भी तैयार किया जा सकेगा।
मसूरी फाॅरेस्ट डिवीजन ने चीड़ और पिरूल का नए सिरे से इस्तेमाल करने की योजना बनाई है। मसूरी फाॅरेस्ट डिवीजन में डीएफओ कहकशां नसीम के नेतृत्व में मसूरी वन प्रभाग जौनपुर रेंज के रेंजर मनमोहन सिंह बिष्ट व विभाग के कर्मचारियों के सहयोग से आग से निपटने का तरीका ढ़ूंढ़ निकाला है। डिवीजन के जौनपुर रेंज के मगरा, अलमस व साटागाट क्षेत्रों से पिरूल एकत्रित कर उससे जैविक खाद व चेकडैम बनाने में सफलता हासिल की है।
टीचर्स व स्टूडेंट्स की मदद
खास बात यह है कि इसमें बुरांसखंडा इंटर काॅलेज के स्टूडेंट्स व टीचर्स भी बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं। बताया गया है कि इससे जंगलों में लगने वाली आग की संभावनाओं को कम किया जा सकता है। इससे गांवों में रोजगार की संभावनाएं बन रही है। जीआईसी बुरांसखंडा के स्टूडेंट्स पर्यावरण संरक्षण के लिए खुलकर सामने आ रहे हैं।
जैविक कंपाउंड का छिड़काव करके तैयार की जाएगी खाद
पिरूल एकत्रित कर बांस के खंभों व तारजली से बने फ्रेम के बीच बारीक काट कर रख दिया जाता है। इसमें जैविक कंपाउंड का छिड़काव कर छोड़ दिया जाता है। करीब साढ़े चार माह में जैविक खाद बनकर तैयार हो जाती है। रेंज आफिसर का कहना है कि दिल्ली लैब में यह जैविक खाद गुणों से भरपूर पाई गई। वहीं चीड़ पिरूल का प्रयोग चैकडैम के रूप में देखा गया। गड्ढा खोदकर बांस की सहायता से मुर्गाजाली व तारजली फिट की जाती है। तारजली के अंदर नेट बिछाया जाता है। जिसमें चीड़ पिरूल की तह लगाकर मिट्टी और पिरूल की परत डालकर जाली से बंद किया जाता है। ऐसे नाले जहां पत्थरों का अभाव व चीड़, पिरूल ज्यादा मात्रा में है, वहां भूमि में नमी बनाए रखने के लिए भी इस प्रकार के पिरूल चेकडैम के लिए उपयोगी साबित हो रहे हैं।