यह स्वच्छता की जिम्मेदारी है या कूड़े से पर्देदारी? इन दिनों हरिद्वार बाईपास रोड पर सड़क किनारे लगे पर्दे बरबस ही लोगों का ध्यान खींच रहे हैं। क्योंकि यहाँ न किसी तरह का निर्माण चल रहा है, नही कोई आयोजन। यह चलते देखने पर सिर्फ पर्दे लगे दिख रहे हैं और जब इनके पीछे झांककर देखा जाए, तब हकीकत पता चल रही है। पर्दो के पीछे सफाई कर्मी मुस्तैद हैं और महीनों से जमा कूड़े को हटाया जा रहा है। साथ ही यह जुगत है कि इस बीच लोग यहाँ कूड़ा न डाल पाएं।
यहाँ तक तो ठीक है, मगर अब भला निगम को अपनी जिम्मेदारी कैसे याद आ गई? यह सवाल हर एक दूनवासी के दिमाग में कौंध रहा है। इसका सीध जवाब है कि इन दिनों स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 के लिए केन्द्र सरकार की टीम दून में डटी है और यहाँ की सफाई व्यवस्था का परीक्षण किया जा रहा है। ताकि देशभर के शहरों की सफाई व्यवस्था के हिसाब से दून को भी रैंकिंग दी जा सके। बड़ा सवाल यह भी है कि दून की पिछली दो रैंकिंग देखी जाएं तो हम फिसड्डी शहरों में शामिल रहे हैं। आगे बढेंगे भी तो कैसे? तब तक तो कतई नहीं, जब तक स्वच्छ सर्वेक्षण के सिर पर आने पर ही जिम्मेदारी याद आएगी। प्रतियोगिता तो बस बहाना है, क्योंकि इसके पीछे का मकसद सिर्फ यह है कि नगर निकाय शहर की स्वच्छता को रोज की आदत में शामिल कर लें। मगर, सच तो सच है। जिस तरह परीक्षा के एक दिन पहले रातभर पढ़कर भी किसी छात्र का भला नहीं होता, तब कैसे किसी शहर को सर्वेक्षण के दौरान चकाचक करके अच्छी रैंकिंग दिलाई जा सकती है। खैर, स्वच्छ सर्वेक्षण के बहाने ही सही, शहर में कुछ अच्छा तो दिख रहा है। उम्मीद करनी चाहिए कि हमारा नगर निगम इस कवायद को सर्वेक्षण तक ही सीमित न रखे, बल्कि नियमित अंतराल पर भी ऐसा ही किया जाता रहे।
दूसरे नालों की भी आई याद
स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 के बहाने देहरादून के नगर निगम को शहर के तमाम गंदे नालों की याद आ गई है। जिधर भी सर्वेक्षण की टीम का दौरा प्रस्तावित हो रहा है, उससे पहले निगम के सफाई योद्धा वहाँ मोर्चा संभाल दे रहे हैं।
पिछली दफा मिली थी 384वीं रैंक
स्वच्छ सर्वेक्षण में दून को 384वीं रैंक मिली थी, जबकि बड़े शहरों में कुल 425 का परीक्षण किया गया था। यानी कि हम सिर्फ 21 शहरों से ही आगे रहे। इससे पहले के सर्वेक्षण 2017 की बात करें तो हमारा स्थान 259वां था। साफ है कि आगे बढ़ने की जगह हमारी प्रवृत्ति निरंतर पिछड़ने की दिख रही है। अबकी बार क्या होगा, यह भविष्य और हमारी व्यवस्थाओं पर निर्भर है। नगर निगम फौरी ही रही कुछ प्रयास जरूर कर रहा है। अंत में होगा वहीं जिसके हम हकदार हैं या जैसी हमारी व्यवस्था है।
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