संजीव गुप्ता, नई दिल्ली, दैनिक जागरण, 25 फरवरी 2020
25 फीसद प्रदूषण कम करने के बाद अब दिल्ली अत्यंत महीन प्रदूषण कण पीएम 1 की निगरानी और इसके निदान में भी आगे निकलने की तरफ बढ़ रही है। देश में पहली बार अगले महीने से राजधानी में न केवल इसका रियल टाइम डाटा मिलने लगेगा, बल्कि इसके कारक भी पता चल सकेंगे। इसी आधार पर इसे नियंत्रित करने के प्रयास किए जाएंगे।
देश-दुनिया में जब भी प्रदूषण की बात होती है तो पीएम 10 और पीएम 2.5 तक ही सिमट जाती है। हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र में भी वायु प्रदूषण पर तो विस्तृत चर्चा हुई, लेकिन पीएम 1 के रूप में एक महत्वपूर्ण और खतरनाक प्रदूषक कण को नजरअंदाज कर दिया गया। इसको लेकर अधिक शोधपरक रिपोर्ट और जानकारी भी उपलब्ध नहीं है। वातावरण में इसकी कितनी मात्र सामान्य या खतरनाक श्रेणी में होनी चाहिए, इसे लेकर भी मानक तय नहीं हैं। बाल की मोटाई से 170 गुना महीन : पीएम 2.5 इंसान के बाल की मोटाई की तुलना में लगभग 30 गुना जबकि पीएम 170 गुना तक महीन होता है। पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार प्रदूषक कण जितना बारीक होगा, नुकसान उतना ही अधिक होगा। पीएम 2.5 जहां फेफड़ों तक पहुंचता है, वहीं पीएम 1 रक्त के जरिये समूचे शरीर में प्रवेश कर सकता है। इसके प्राथमिक स्रोत वाहन और औद्योगिक उत्सर्जन है। बॉयोमास से भी इसकी मात्र में इजाफा हुआ है। स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव और इसकी विषाक्तता पर दुनियाभर में अध्ययन हो रहा है।स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक : अब तक उपलब्ध शोध बताते हैं कि पीएम 1 के कण का आकार प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों का एक अहम निर्धारक है। ये कण फेफड़ों के पैरेन्काइमा (बाहरी सतह पर पाया जाने वाला एक पदार्थ) में जमा होने की अधिक संभावना रखते हैं। इन कणों का पृष्ठीय क्षेत्रफल और आयतन अनुपात अधिक होता है, जिससे तनाव और सूजन को बढ़ावा मिलता है। धातु मिश्रित होने के कारण ये कण जीन की क्षति और कैंसर का कारक भी बन सकते हैं।
देश में इस पर बहुत कम हुआ काम : 2009 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रलय ने पीएम 1 पर एक अध्ययन कराया तो 2010 में पुणो स्थित इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटारोलॉजी ने इस पर कार्यक्रम की शुरुआत की। आइआइटी दिल्ली में भी इस पर थोड़ा-बहुत अध्ययन हुआ। हालांकि इसके कारकों, अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक प्रभावों तथा इसके नियंत्रण के लिए मानक और दिशा- निर्देश तय करने के लिए और अध्ययन कराए जाने की आवश्यकता है। दिल्ली में वा¨शगटन डीसी यूनिवर्सिटी के सहयोग से हो रही पहल : दिल्ली सरकार ने 2019 में वा¨शगटन डीसी यूनिवर्सिटी के साथ प्रदूषण से जंग के लिए करार किया। इसके तहत यहां के विशेषज्ञों ने वर्ष भर तक दिल्ली के प्रदूषण, इसके स्वरूप और कारणों पर अध्ययन किया है और इस पर नियंत्रण के उपाय भी खोज रहे हैं। जल्द ही इसकी रिपोर्ट आएगी। दूसरी तरफ नेशनल स्टेडियम में एक ऐसा रियल टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम भी स्थापित किया जा रहा है जो महीने भर में पीएम 10 और पीएम 2.5 सहित पीएम 1 का रियल टाइम डाटा देने लगेगा। दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय का कहना है कि दिल्ली सरकार प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ‘रियल टाइम डाटा’ एकत्र करेगी। इसकी सहायता से प्रदूषण के कारक पता चलेंगे। उनसे होने वाले प्रदूषण के स्तर को मापना आसान होगा। इसी आधार पर सरकार एक रिपोर्ट तैयार करेगी, जिसके आधार पर तय होगा कि वायु प्रदूषण को कैसे कम किया जा सकता है।
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