डारविनवाद
डार्विन द्वारा सन् 1859 में प्रतिपादित विकास प्रक्रम का एक सिंद्धांत इसके अनुसार जीव की उन विचल विविधताओं का प्राकृतिक वरण होता है जो वातावरण के अनुकूलतम होती है। इस प्रकार उपयुक्ततम जीव ही जीवन-संघर्ष में सफल होते हैं। इस प्रकार उपयुक्ततम जीव ही जीवन-संघर्ष में सफल होते हैं और उपयुक्त जीवों के जीवित रहते ही नई जातियों की उत्पत्ति होती है।
डार्विन द्वारा सन् 1859 में प्रतिपादित विकास प्रक्रम का एक सिंद्धांत इसके अनुसार जीव की उन विचल विविधताओं का प्राकृतिक वरण होता है जो वातावरण के अनुकूलतम होती है। इस प्रकार उपयुक्ततम जीव ही जीवन-संघर्ष में सफल होते हैं। इस प्रकार उपयुक्ततम जीव ही जीवन-संघर्ष में सफल होते हैं और उपयुक्त जीवों के जीवित रहते ही नई जातियों की उत्पत्ति होती है।