1. दरिया हमारे भाई हैं, क्योंकि वे हमारी प्यास बुझाते हैं। नदियां हमारी नौकाओं का परिवहन करती हैं और हमारे बच्चों का पेट भरती हैं।
2. ‘‘बिना जानवरों के मनुष्य का अस्तित्व ही क्या है? जिस दिन पशु नहीं रहेंगे, उस दिन मनुष्य अपनी आत्मा के भयानक एकाकीपन में घुटकर मर जाएगा। जो कुछ पशुओं के साथ होता है वह जल्द ही मनुष्य के साथ भी गुजरेगा। सभी चीजें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
मेजा वन रेंज के अधिकारियों के लिए दुर्लभ काले हिरणों की मौत से शायद कोई फर्क नहीं पड़ता। पिछले महीने कुत्तों की शिकार बनीं दो गर्भवती हिरणों की मौत के बाद भी वन विभाग नहीं जागा। ग्रामीणों के काफी हो-हल्ला मचाने पर वन रेंज का एक दरोगा मौके पर पहुंचा और मारी गई हिरण के शव को उठाकर चला गया। उसके बाद उधर कोई अधिकारी झांकने नहीं गया। काले हिरण मर रहे हैं। वन विभाग के अधिकारी आँख मूंदे हुए हैं। काश ये बोल पाते तो खुद के उपर हो रहे जुल्म के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते। तब काले हिरणों इलाके में राजनैतिक मुद्दा बन सकते। तब शायद सरकारें इस ओर थोड़ा ध्यान देतीं। 1854 में जब गोरे लोग अमरीका में रेड इंडियनों से ज़मीन खरीदने का समझौता कर रहे थे तब सिएटल के एक रेड इंडियन नेता ने गोरों पर उपरोक्त टिप्पणी की थी। यह जैव विविधता व पर्यावरण को समझने के लिए सबसे अच्छा वक्तव्य है। इलाहाबाद के मेजा-कोरांव अंचल में बनाए जा रहे पॉवर प्लांट के कारण उपजे त्रिविध मानवीय संकट व जैव विविधता पर आसन्न खतरे को देखकर उस रेड इंडियन की याद आती है, जिसकी भविष्यवाणी आज पूरे दुनिया में सच साबित हो रही है। बिजली विकास के लिए लगाए जा रहे कारखाने, अधाधुंध अवैध खनन, बाजार पैदा होने की लालच में रात-दिन बनाई जा रहीं दुकानों व बढ़ते आवागमन के शोर-गुल से यहां दुर्लभ काले हिरणों को जिस तरह से अपनी जान गँवानी पड़ रही है, उसे देखकर लगता है कि मनुष्यों व जानवरों के बीच सदियों का सहअस्तित्व जीवन बड़े ही दर्दनाक ढंग से समाप्त होने की कगार पर पहुंच गया है। शायद यह मानवीय जगत के लिए काफी भयावह होगा। उस रेड इंडियन ने दुनिया को इसी भयनाक परिणाम के लिए ही तो चेताया था।
निर्माणाधीन थर्मल पॉवर प्लांट केवल आदमी ही नहीं, बल्कि जीव जंतुओं के लिए बड़ी त्रासदी बन चुका है। जिस इलाके में प्लांट निर्माणाधीन है, वहां पर सदियों से काले हिरणों की दुर्लभ प्रजाति रह रही थी। जंगल में बिजली उत्पादन कारखाना लगने से अब काले हिरणों का परिवार इधर-उधर छुपता हुआ अपनी जान बचाते फिर रहा है। एक माह पूर्व जंगल में दो हिरण मृत पाए गए। गांव वालों ने बताया कि यह हिरण अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी के स्रोतों के नज़दीक जाते हैं और घात लगाए बैठे शिकारी उनका शिकार कर लेते हैं। इसके अलावा जंगली कुत्तों ने दो गाभिन हिरणों को मार डाला। ककराही गांव के बुजुर्ग महावीर सिंह बताते हैं-कोहड़ार, चांद खमरिया से लेकर यहां-जहां आज बिजली बनाने का कारखाना लग रहा हैं -तक हजारों हिरण थे। वह आज से 55 साल पहले अपने बचपन को याद करते हैं, जब इसी ककराही के पहाड़ी पर 50-50 हिरणों का झुंड कुलांचें भरता नजर आता था। इन सुन्दर सलोने हिरणों के उछल-कूद को देख कर ही शायद यहां के बुजुर्ग गवैयों ने कभी एक होली गीत बनाया था, जो आज भी इस अंचल में गाया जाता है। गीत कुछ इस प्रकार है-
‘‘चैंकि-चैंकि बन चरना, अरे हिरना ...
चैंकि-चैंकि बन चरना.. रे..!
इस गीत में छुपा हुआ भाव हमें याद दिलाता है कि कैसे इस इलाके में हिरणों व मनुष्यों के बीच एक सह-अस्तित्व जीवन था। सुजनी समोधा गांव के पूर्व प्रधान दीनानाथ आदिवासी अभी भी इस गीत को इतने सुन्दर लय में भाव विभोर होकर गाते हैं कि सुनने वालों की आँखें भर आती हैं।
सदियों से इतने सारे हिरण इस छोटे से पहाड़ीनुमा जंगल में क्यों और कैसे रह रहे थे? इस बारे में इसी जंगल से पलाश के पत्तों से पत्तल बनाने वाले मैनेजर मुसहर बताते हैं-बहुत सारे जीव-जन्तु उनके मित्र थे। कई हिरण परिवारों से उनकी दोस्ती थी। मैनेजर ने वर्षों तक इस जंगल में रहकर यह जाना कि हिरणों को प्यास बहुत लगती है। बिना पानी के वह रह नहीं सकते और पहाड़ी के बीच-बीच में अनेक नाले व झरने हिरणों के लिए जीवन रेखा की भांति विद्यमान थे। इन नालों व झरनों में बारहों महीने पानी रहता था। वह पानी शुद्ध तो था ही, मीठा भी बहुत था, जिसे उधर से गुजरने वाले राहगीर, चरवाहे, हलवाहे व मज़दूर भी बिना किसी हिचक के पीते थे। मैनेजर याद करते हैं वे दिन जब वह इन नालों व झरनों में हिरणों के झुंड के झुंड पानी पीने के लिए आते देखा करते थे। गर्मी के मौसम में हिरण नाले का पानी पीते और किनारे-किनारे पर लगे महुए के वृक्ष की ठंडी छांव में आराम करते थे। अब न तो इन नालों व झरनों में कहीं पानी नजर आ रहा है और न ही हिरणों का झुंड।
अब इन नालों व झरनों में बारहों महीने पानी क्यों नहीं रहता? कहां खो गया हिरणों का झुंड? यह सवाल अंचल के हर एक संवेदनशील मनुष्य को कचोटता है। दरअसल इस पहाड़ी पर हो रहे अवैध खनन से न केवल यहां पर्यावरण को भारी क्षति पहुंची है, बल्कि हजारों वर्षों से नदी किनारे की संस्कृति और जैव विविधता भी करीब-करीब समाप्त होने के कगार पर है। पांच वर्ष पूर्व इस इलाके में पॉवर प्लांट का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। भारी-भरकम मशीनों से जंगल को उजाड़कर वहां बड़े-बड़े व्यालर व कालोनियां बनाईं जाने लगीं। टनों बारूद से जंगल के बीचों-बीच छोटी-छोटी पहाड़ी को ब्लास्ट कर वहां विशालकाय गड्ढा बना दिया गया जिसे पॉवर प्लांट की भाषा में ऐश पॉन्ड कहा जा रहा है। इसी पॉन्ड यानि तालाब में प्लांट से निकलने वाली राख सड़ाई जाएगी।
बारूद के विस्फोट से कई कि.मी. तक धरती हिल गई। इस कंपन के कारण यहां के भू-गर्भ जल के स्रोत नष्ट हो गए। जलस्तर बहुत नीचे गिर गया। जहां पहले 80 से 100 फिट नीचे पीने का पानी आसानी से मिल जाता था, वहीं अब 400 से 800 फिट नीचे पानी मिल पा रहा है। इससे भी ज्यादा बुरा असर उन नालों व झरनों पर पड़ा, जिनमें बारहों महीने जल उपलब्ध रहता था। जंगल में अधाधुंध अवैध खनन व ब्लास्टिंग के कारण धरती के भीतर चट्टानों के बीच मौजूद जल स्रोतों का तार छिन्न-भिन्न हो गया। वर्तमान में इन नालों व झरनों के पानी के सारे स्रोत विलुप्त हो चुके हैं। रही सही कसर पॉवर प्लांटों के बड़े विस्फोटों ने पूरी कर दी। अब इस इलाके के करीब एक दर्जन गाँवों की बस्तियों में पीने के पानी के लिये त्राहि-त्राहि मची है। ऐसे में दुर्लभ काले हिरणों की हालत क्या होगी? उनकी प्यास कैसे बुझेगी? पानी के लिए उन्हें कहां-कहां भटकना पड़ेगा, इसकी चिंता कौन करे। जिस चांद खमरियां के जंगल में इस समय इन काले हिरणों का झुंड नजर आ रहा है, वहां भी इन्हें पीने के पानी के लिए मौत मिल रही है।
काले हिरणों को बचाने के लिए प्रयासरत एडवोकेट अश्विनी जैन कहते हैं कि स्थिति विकराल है। चांद खमरियां के जंगल के बगल से एक छोटी सी लपरी नदी बहती है, जो गर्मी के मौसम में सूख जाती है। इस नदी में जहां थोड़ा बहुत पानी अवशेष है, वहां पर शिकारी पहले से घात लगाकर बैठे रहते हैं। प्यास से व्याकुल यह हिरण जैसे ही पानी पीने के लिए नदी के तलहटी में पहुंचते हैं, उन्हें गोली का शिकार होना पड़ता है। पिछले पांच सालों में सैकड़ों काले हिरणों का शिकार किया जा चुका है। गांव में पल रहे खतरनाक कुत्तों द्वारा काले हिरणों को मारने की खबर मिल चुकी है, बावजूद इसके वन विभाग इनकी सुरक्षा के लिए इंतज़ाम नहीं कर रहा है। अनुमान तो यह है कि चोरी छिपे प्रतिदिन काले हिरणों को मारा जा रहा है। पहाड़ीनुमे जंगल में इस समय चिलचिलाती धूप के बीच यह हिरण प्यास के मारे तड़प रहे हैं। कई गर्भवती हिरणों की हालत ऐसी है कि वह ज्यादा दूर चल नहीं पा रही हैं और जब भी पानी पीने के चक्कर में गांव के नज़दीक जाती हैं, उन्हें या तो शिकारी या फिर खतरनाक कुत्ते मार डालते हैं।
मेजा वन रेंज के अधिकारियों के लिए दुर्लभ काले हिरणों की मौत से शायद कोई फर्क नहीं पड़ता। पिछले महीने कुत्तों की शिकार बनीं दो गर्भवती हिरणों की मौत के बाद भी वन विभाग नहीं जागा। ग्रामीणों के काफी हो-हल्ला मचाने पर वन रेंज का एक दरोगा मौके पर पहुंचा और मारी गई हिरण के शव को उठाकर चला गया। उसके बाद उधर कोई अधिकारी झांकने नहीं गया। इधर जंगल में बन रहे पॉवर प्लांट के अधिकारियों ने इस मौके का लाभ उठाते हुए बयान जारी किया कि मेजा ऊर्जा निगम प्रा.लि. इन दुर्लभ काले हिरणों को संरक्षित करने के लिए कुछ धन खर्च करेगा। इस बावत जब वन रेंजर अशोक दुबे से आरटीआई के माध्यम से पूछा गया तो उनका कहना था कि ऐसी कोई बात उनके संज्ञान में नहीं है। जबकि मेजा उर्जा निगम प्रा. लि. लगातार दावा कर रहा है कि उसने वन विभाग से काले हिरणों को बचाने के लिए एक प्रोजेक्ट बनाने का अनुरोध किया हुआ है। जब इस बारे में सच्चाई जानने की कोशिश की गई तो पता चला कि यह मेजा उर्जा निगम प्रा लि. की पर्यावरण प्रदूषण मंत्रालय से पॉवर प्लांट के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेने की एक नई चाल है। काले हिरण मर रहे हैं। वन विभाग के अधिकारी आँख मूंदे हुए हैं। काश ये बोल पाते तो खुद के उपर हो रहे जुल्म के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते। तब काले हिरणों इलाके में राजनैतिक मुद्दा बन सकते। तब शायद सरकारें इस ओर थोड़ा ध्यान देतीं।
2. ‘‘बिना जानवरों के मनुष्य का अस्तित्व ही क्या है? जिस दिन पशु नहीं रहेंगे, उस दिन मनुष्य अपनी आत्मा के भयानक एकाकीपन में घुटकर मर जाएगा। जो कुछ पशुओं के साथ होता है वह जल्द ही मनुष्य के साथ भी गुजरेगा। सभी चीजें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
मेजा वन रेंज के अधिकारियों के लिए दुर्लभ काले हिरणों की मौत से शायद कोई फर्क नहीं पड़ता। पिछले महीने कुत्तों की शिकार बनीं दो गर्भवती हिरणों की मौत के बाद भी वन विभाग नहीं जागा। ग्रामीणों के काफी हो-हल्ला मचाने पर वन रेंज का एक दरोगा मौके पर पहुंचा और मारी गई हिरण के शव को उठाकर चला गया। उसके बाद उधर कोई अधिकारी झांकने नहीं गया। काले हिरण मर रहे हैं। वन विभाग के अधिकारी आँख मूंदे हुए हैं। काश ये बोल पाते तो खुद के उपर हो रहे जुल्म के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते। तब काले हिरणों इलाके में राजनैतिक मुद्दा बन सकते। तब शायद सरकारें इस ओर थोड़ा ध्यान देतीं। 1854 में जब गोरे लोग अमरीका में रेड इंडियनों से ज़मीन खरीदने का समझौता कर रहे थे तब सिएटल के एक रेड इंडियन नेता ने गोरों पर उपरोक्त टिप्पणी की थी। यह जैव विविधता व पर्यावरण को समझने के लिए सबसे अच्छा वक्तव्य है। इलाहाबाद के मेजा-कोरांव अंचल में बनाए जा रहे पॉवर प्लांट के कारण उपजे त्रिविध मानवीय संकट व जैव विविधता पर आसन्न खतरे को देखकर उस रेड इंडियन की याद आती है, जिसकी भविष्यवाणी आज पूरे दुनिया में सच साबित हो रही है। बिजली विकास के लिए लगाए जा रहे कारखाने, अधाधुंध अवैध खनन, बाजार पैदा होने की लालच में रात-दिन बनाई जा रहीं दुकानों व बढ़ते आवागमन के शोर-गुल से यहां दुर्लभ काले हिरणों को जिस तरह से अपनी जान गँवानी पड़ रही है, उसे देखकर लगता है कि मनुष्यों व जानवरों के बीच सदियों का सहअस्तित्व जीवन बड़े ही दर्दनाक ढंग से समाप्त होने की कगार पर पहुंच गया है। शायद यह मानवीय जगत के लिए काफी भयावह होगा। उस रेड इंडियन ने दुनिया को इसी भयनाक परिणाम के लिए ही तो चेताया था।
निर्माणाधीन थर्मल पॉवर प्लांट केवल आदमी ही नहीं, बल्कि जीव जंतुओं के लिए बड़ी त्रासदी बन चुका है। जिस इलाके में प्लांट निर्माणाधीन है, वहां पर सदियों से काले हिरणों की दुर्लभ प्रजाति रह रही थी। जंगल में बिजली उत्पादन कारखाना लगने से अब काले हिरणों का परिवार इधर-उधर छुपता हुआ अपनी जान बचाते फिर रहा है। एक माह पूर्व जंगल में दो हिरण मृत पाए गए। गांव वालों ने बताया कि यह हिरण अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी के स्रोतों के नज़दीक जाते हैं और घात लगाए बैठे शिकारी उनका शिकार कर लेते हैं। इसके अलावा जंगली कुत्तों ने दो गाभिन हिरणों को मार डाला। ककराही गांव के बुजुर्ग महावीर सिंह बताते हैं-कोहड़ार, चांद खमरिया से लेकर यहां-जहां आज बिजली बनाने का कारखाना लग रहा हैं -तक हजारों हिरण थे। वह आज से 55 साल पहले अपने बचपन को याद करते हैं, जब इसी ककराही के पहाड़ी पर 50-50 हिरणों का झुंड कुलांचें भरता नजर आता था। इन सुन्दर सलोने हिरणों के उछल-कूद को देख कर ही शायद यहां के बुजुर्ग गवैयों ने कभी एक होली गीत बनाया था, जो आज भी इस अंचल में गाया जाता है। गीत कुछ इस प्रकार है-
‘‘चैंकि-चैंकि बन चरना, अरे हिरना ...
चैंकि-चैंकि बन चरना.. रे..!
इस गीत में छुपा हुआ भाव हमें याद दिलाता है कि कैसे इस इलाके में हिरणों व मनुष्यों के बीच एक सह-अस्तित्व जीवन था। सुजनी समोधा गांव के पूर्व प्रधान दीनानाथ आदिवासी अभी भी इस गीत को इतने सुन्दर लय में भाव विभोर होकर गाते हैं कि सुनने वालों की आँखें भर आती हैं।
सदियों से इतने सारे हिरण इस छोटे से पहाड़ीनुमा जंगल में क्यों और कैसे रह रहे थे? इस बारे में इसी जंगल से पलाश के पत्तों से पत्तल बनाने वाले मैनेजर मुसहर बताते हैं-बहुत सारे जीव-जन्तु उनके मित्र थे। कई हिरण परिवारों से उनकी दोस्ती थी। मैनेजर ने वर्षों तक इस जंगल में रहकर यह जाना कि हिरणों को प्यास बहुत लगती है। बिना पानी के वह रह नहीं सकते और पहाड़ी के बीच-बीच में अनेक नाले व झरने हिरणों के लिए जीवन रेखा की भांति विद्यमान थे। इन नालों व झरनों में बारहों महीने पानी रहता था। वह पानी शुद्ध तो था ही, मीठा भी बहुत था, जिसे उधर से गुजरने वाले राहगीर, चरवाहे, हलवाहे व मज़दूर भी बिना किसी हिचक के पीते थे। मैनेजर याद करते हैं वे दिन जब वह इन नालों व झरनों में हिरणों के झुंड के झुंड पानी पीने के लिए आते देखा करते थे। गर्मी के मौसम में हिरण नाले का पानी पीते और किनारे-किनारे पर लगे महुए के वृक्ष की ठंडी छांव में आराम करते थे। अब न तो इन नालों व झरनों में कहीं पानी नजर आ रहा है और न ही हिरणों का झुंड।
क्यों सूख गए ये नाले व झरने?
अब इन नालों व झरनों में बारहों महीने पानी क्यों नहीं रहता? कहां खो गया हिरणों का झुंड? यह सवाल अंचल के हर एक संवेदनशील मनुष्य को कचोटता है। दरअसल इस पहाड़ी पर हो रहे अवैध खनन से न केवल यहां पर्यावरण को भारी क्षति पहुंची है, बल्कि हजारों वर्षों से नदी किनारे की संस्कृति और जैव विविधता भी करीब-करीब समाप्त होने के कगार पर है। पांच वर्ष पूर्व इस इलाके में पॉवर प्लांट का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। भारी-भरकम मशीनों से जंगल को उजाड़कर वहां बड़े-बड़े व्यालर व कालोनियां बनाईं जाने लगीं। टनों बारूद से जंगल के बीचों-बीच छोटी-छोटी पहाड़ी को ब्लास्ट कर वहां विशालकाय गड्ढा बना दिया गया जिसे पॉवर प्लांट की भाषा में ऐश पॉन्ड कहा जा रहा है। इसी पॉन्ड यानि तालाब में प्लांट से निकलने वाली राख सड़ाई जाएगी।
बारूद के विस्फोट से कई कि.मी. तक धरती हिल गई। इस कंपन के कारण यहां के भू-गर्भ जल के स्रोत नष्ट हो गए। जलस्तर बहुत नीचे गिर गया। जहां पहले 80 से 100 फिट नीचे पीने का पानी आसानी से मिल जाता था, वहीं अब 400 से 800 फिट नीचे पानी मिल पा रहा है। इससे भी ज्यादा बुरा असर उन नालों व झरनों पर पड़ा, जिनमें बारहों महीने जल उपलब्ध रहता था। जंगल में अधाधुंध अवैध खनन व ब्लास्टिंग के कारण धरती के भीतर चट्टानों के बीच मौजूद जल स्रोतों का तार छिन्न-भिन्न हो गया। वर्तमान में इन नालों व झरनों के पानी के सारे स्रोत विलुप्त हो चुके हैं। रही सही कसर पॉवर प्लांटों के बड़े विस्फोटों ने पूरी कर दी। अब इस इलाके के करीब एक दर्जन गाँवों की बस्तियों में पीने के पानी के लिये त्राहि-त्राहि मची है। ऐसे में दुर्लभ काले हिरणों की हालत क्या होगी? उनकी प्यास कैसे बुझेगी? पानी के लिए उन्हें कहां-कहां भटकना पड़ेगा, इसकी चिंता कौन करे। जिस चांद खमरियां के जंगल में इस समय इन काले हिरणों का झुंड नजर आ रहा है, वहां भी इन्हें पीने के पानी के लिए मौत मिल रही है।
काले हिरणों को बचाने के लिए प्रयासरत एडवोकेट अश्विनी जैन कहते हैं कि स्थिति विकराल है। चांद खमरियां के जंगल के बगल से एक छोटी सी लपरी नदी बहती है, जो गर्मी के मौसम में सूख जाती है। इस नदी में जहां थोड़ा बहुत पानी अवशेष है, वहां पर शिकारी पहले से घात लगाकर बैठे रहते हैं। प्यास से व्याकुल यह हिरण जैसे ही पानी पीने के लिए नदी के तलहटी में पहुंचते हैं, उन्हें गोली का शिकार होना पड़ता है। पिछले पांच सालों में सैकड़ों काले हिरणों का शिकार किया जा चुका है। गांव में पल रहे खतरनाक कुत्तों द्वारा काले हिरणों को मारने की खबर मिल चुकी है, बावजूद इसके वन विभाग इनकी सुरक्षा के लिए इंतज़ाम नहीं कर रहा है। अनुमान तो यह है कि चोरी छिपे प्रतिदिन काले हिरणों को मारा जा रहा है। पहाड़ीनुमे जंगल में इस समय चिलचिलाती धूप के बीच यह हिरण प्यास के मारे तड़प रहे हैं। कई गर्भवती हिरणों की हालत ऐसी है कि वह ज्यादा दूर चल नहीं पा रही हैं और जब भी पानी पीने के चक्कर में गांव के नज़दीक जाती हैं, उन्हें या तो शिकारी या फिर खतरनाक कुत्ते मार डालते हैं।
संवेदनहीन बना वन विभाग!
मेजा वन रेंज के अधिकारियों के लिए दुर्लभ काले हिरणों की मौत से शायद कोई फर्क नहीं पड़ता। पिछले महीने कुत्तों की शिकार बनीं दो गर्भवती हिरणों की मौत के बाद भी वन विभाग नहीं जागा। ग्रामीणों के काफी हो-हल्ला मचाने पर वन रेंज का एक दरोगा मौके पर पहुंचा और मारी गई हिरण के शव को उठाकर चला गया। उसके बाद उधर कोई अधिकारी झांकने नहीं गया। इधर जंगल में बन रहे पॉवर प्लांट के अधिकारियों ने इस मौके का लाभ उठाते हुए बयान जारी किया कि मेजा ऊर्जा निगम प्रा.लि. इन दुर्लभ काले हिरणों को संरक्षित करने के लिए कुछ धन खर्च करेगा। इस बावत जब वन रेंजर अशोक दुबे से आरटीआई के माध्यम से पूछा गया तो उनका कहना था कि ऐसी कोई बात उनके संज्ञान में नहीं है। जबकि मेजा उर्जा निगम प्रा. लि. लगातार दावा कर रहा है कि उसने वन विभाग से काले हिरणों को बचाने के लिए एक प्रोजेक्ट बनाने का अनुरोध किया हुआ है। जब इस बारे में सच्चाई जानने की कोशिश की गई तो पता चला कि यह मेजा उर्जा निगम प्रा लि. की पर्यावरण प्रदूषण मंत्रालय से पॉवर प्लांट के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेने की एक नई चाल है। काले हिरण मर रहे हैं। वन विभाग के अधिकारी आँख मूंदे हुए हैं। काश ये बोल पाते तो खुद के उपर हो रहे जुल्म के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते। तब काले हिरणों इलाके में राजनैतिक मुद्दा बन सकते। तब शायद सरकारें इस ओर थोड़ा ध्यान देतीं।