बूँद-बूँद को तरस रहा तीन नदियों से घिरा इलाका

Submitted by RuralWater on Mon, 01/11/2016 - 13:19


. जनपद इलाहाबाद में एक परियोजना है।
नाम है- वाण सागर नहर परियोजना ..
म.प्र. के शहडोल जिले में जो सोन नदी पर बाँध बना है वाण सागर। अब उसका पानी मिर्जापुर तथा इलाहाबाद के मेजा और कोरांव तहसीलों में आना है।
कैसे- नहर के माध्यम से
नहर बनाने में अब तक 24 साल का समय और 3148 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके हैं।

2012 में इस परियोजना में 1200 करोड़ रु. के घोटाले का मामला पकड़ा गया था... कई ठेकेदारों की ऐसी की तैसी हुई थी... लेकिन अब इस घोटाले की जाँच यूपी पुलिस की ईओडब्ल्यू शाखा कर रही है...

तीन साल हो गए.. जाँच रिपोर्ट का कुछ पता नहीं..चल रहा है, सरकार खामोश है.. विभाग खुश है.. इधर मेजा-कोरांव में भयंकर अकाल है... ।

वाण सागर के एक अभियन्ता कह रहे थे कि वाण सागर से कोई एक बूँद पानी लाकर दिखाये तो जाने...

सितम्बर में कोरांव चौराहे पर किसानों ने चक्का जाम किया था तो मेजा के सपा विधायक गामा पाण्डे जी ने अखबार में अपनी फोटो सहित बयान छपवाया था कि वह सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव से मिल आये हैं, सप्ताह भर में पानी मिल जाएगा। लेकिन इस इलाके के किसान अभी तक एक-एक बूँद पानी के लिये तरस रहे हैं..। उधर शहडोल से वाणसागर का पानी मेजा बार्डर पर टोंस नदी में धुँआधार बह रहा है..

डॉ. लेहिया कहते थे ‘‘मेरी राय में देश में किसानों की नाव का कोई कप्तान नहीं रहा। यह अपने आप बहती है, हर झोंके के साथ बहती है, खेवैया नहीं है। पहले भी खेवैया नहीं था। नाव पुरानी हो चली है। छेद बढ़ते जा रहे हैं। आज भयंकर अकाल, महंगाई और कर्ज के भँवर में फँसे किसानों को उबारने के लिये वर्तमान सरकारों के पास कोई ठोस नीति नहीं, कार्यक्रम नहीं’’

यहाँ भयानक सूखे की मार से चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है। 95 प्रतिशत किसान कर्ज के बोझ से दबे हुए छटपटा रहे हैं। मेजा व अदवा जलाशय में पानी समाप्त हो चुका है। नहरों में दर्रे फूटने वाले हैं। एक अनुमान के मुताबिक मेजा, कोरांव तहसील में दो अरब रुपए से अधिक की खरीफ की फसल बर्बाद हो चुकी है। अकाल की वजह से सिंचाई व पेयजल के अन्य साधन नवम्बर महीने में ही जवाब दे रहे हैं। रबी की फसल की भी कोई उम्मीद नहीं है।

ऐसे में हम आपका ध्यान ‘वाण सागर नहर परियोजना’ की तरफ खींचना चाहते हैं। यह परियोजना उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी व महंगी सिंचाई परियोजना है, जो पिछले करीब 24 सालों से अधूरी है। इस परियोजना में 3000 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो चुके हैं। लेकिन अब तक किसानों को बूँद भर पानी नहीं मिल सका है।

.मई 2012 में जाँच के दौरान परियोजना के धन से 1200 करोड़ रुपए की हेराफेरी यानि घोटाला सामने आ चुका है। लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई 2014 के समय मेजा जलाशय का पानी बेलन नहर में बहाकर किसानों को मूर्ख बनाने की साज़िश की गई कि वाणसागर का पानी आ रहा है और नहरें सदावाहिनी हो चुकी हैं। लाखों रुपए खर्च कर, वाणसागर का पानी दिखाते हुए होर्डिंग्स और बैनर लगवाए गए। जबकि हकीक़त तो यह है कि वाणसागर नहर परियोजना का काम अभी भी आधा-अधूरा है।

आशय यह है कि इस साल पड़े भयंकर अकाल से किसानों को सबक लेना होगा। वाण सागर नहर परियोजना पिछले 24 सालों में पूरी क्यों नहीं हुई?, किसानों को सरकारों से इसका हिसाब माँगना चाहिए। जनता के पैसे से मोटी तनख्वाह लेने वाले नौकरशाहों को भी कटघरे में खड़ा करने का वक्त आ चुका है।

आज जब नहरें मिर्जापुर से लेकर मेजा तक खाली शोपीस बनी हुई हैं तो सरकार और उसके मुखिया जी बता सकते हैं कि किसान क्या करे? क्या यह इलाका भी अब विदर्भ और बुन्देलखण्ड बनने जा रहा है? जहाँ सूखे व केसीसी के कर्ज से परेशान होकर किसान आत्महत्या करने को विवश हों? सरकार कह रही है कि राजधानी में मेट्रो रेल 2016 तक हर हाल में चलवाना है।

सरकार यह नहीं बताती कि नहरें कैसे चलेंगी? वाणसागर नहर परियोजना समय से पूरी क्यों नहीं हुई? इसका नाम लेने वाला कोई नहीं। न सांसद, न विधायक न कोई मंत्री। बल्कि हकीकत तो यह है कि वाणसागर नहर परियोजना में करोड़ों का ठेका लेने वालों में पिछली व वर्तमान सरकार के कई बाहुबली विधायक, मंत्री व इनके खास आदमी शामिल हैं। जिनकी लूट-खसोट की वजह से ही यह परियोजना 24 साल में भी पूरी नहीं हो सकी।

यह बात पूरी तरह से साफ हो चुकी है कि यूपी की समाजवादी व केन्द्र की मोदी सरकार पूरी तरह पूँजीपतियों बाहुबलियों के दबाव में काम कर रही है। उसे तड़पते हुए किसानों व मजदूरों की चिन्ता नहीं है। सूखे की मार से खेती उजड़ चुकी है। किसानी पर निर्भर खेतिहर मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट मुह बाये खड़ा है। कोई सरकारी व सार्वजनिक काम भी नहीं कराया जा रहा है, जहाँ हमारे मज़दूर मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पाल सकें।

मनरेगा योजना से 100 दिन का रोजगार गारंटी फाइलों में सिमटकर रह गया है। आज सबसे पहले वाणसागर नहर परियोजना में हजारों करोड़ रुपए के घोटाले के खिलाफ किसानों को एकजुट होना होगा। अधूरी परियोजना के विषय में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर सरकार से जवाब माँगना चाहिए। इसके लिये इलाके में एक पैदल किसान स्वाभिमान जन-जागरण यात्रा निकालकर किसानों और मजदूरों को एकजुट करने की आवश्यकता है।

किसान भारी संख्या में एकत्रित होकर सरकारों से सवाल करें, जवाब माँगे। क्रान्ति का बिगुल फूँके। किसान, संघर्ष की राह चुनें। वाणसागर नहर परियोजना का धन हड़पने वालों को जेल की सलाखों तक पहुँचाकर दम लें और अपने खेतों तक पानी पहुँचाने के लिये लखनऊ व दिल्ली में बैठी सरकारों को विवश कर दें।

.उधर किसानों का कहना है कि वाणसागर नहर का पानी यदि मेजा, अदवां जलाशय तक आ भी गया तो भी बेलन नहर के टेल पर स्थित कोहड़ार, खीरी, ईंटवा, सुजनी-समोधा, सलैया कला, धंधुआ, ककराही, दिघलो, चाँद-खमरिया, ढेरहन, खरका खास तथा शाहपुर कला आदि गाँवों में खेतों की सिंचाई के लिये किसानों को पर्याप्त पानी मिलना मुश्किल है। इन गाँवों में लाखों एकड़ उपजाऊ ज़मीन सिंचाई के अभाव में बेकार पड़ी है।

इसलिये विस्थापन विरोधी मोर्चा ने माननीय, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, उ.प्र., सांसद-यमुनापार व विधायक-मेजा, कोरांव जी से माँग की है -

1. कोहड़ार स्थित टोंस नदी में लिफ्ट पम्म कैनाल स्थापित कर उसका पानी डाबर गाँव के पास बेलन नहर में छोड़ा जाय।
2. धंधुआ, टोकवा में लिफ्ट पम्म कैनाल स्थापित कर उसका पानी दिघलो व जोरा के बीच छोड़ा जाय।
3. लपरी नदी में चेकडैम बनाकर छोटी लिफ्टपम्म स्थापित कर पानी चाँद-मोजरा, महुली व ढेरहन में छोड़ा जाय
4. पालपट्टी गाँव में अलग से लिफ्ट पम्म स्थापित की जाय, जिससे इलाके के सभी खेतों तक पानी पहुँच सके।
5. डिही डिवाई नहर को सलैया कला होते हुए डिहिया, सुजनी तक चलवाया जाय।
6. इन सभी लिफ्ट पम्मों को मेजा ऊर्जा निगम, एनटीपीसी कोहड़ार से 24 घंटे बिजली दी जाय।
7. वाणसागर नहर परियोजना में हजारों करोड़ के घोटाले की जाँच सीबीआई से कराई जाय।